For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

देवभूमि के इतिहास का गौरव-पृष्ठ है –यह उपन्यास ‘चन्द्रवंशी’ ::डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव

अतीत से जुड़ना भी एक मानवीय प्रवृत्ति है I जिन साहित्यकारों को अतीत से मोह होता है वे प्रायशः भारतीय इतिहास के किसी गौरवशाली पृष्ठ को टटोलते हैं और उसमे निहित सामग्री या इतिवृत्त के आधार पर कथा या काव्य रचते हैं I रामायण और महाभारत पर आधारित साहित्यिक रचनाये भी हमारे इतिहास की ही विविधामयी अभिव्यक्ति है I भारत का उत्तराखंड जिसे देवभूमि भी कहा जाता है, उसका अपना एक गरिमामयी इतिहास है I संभव है कि पहाड़ की आंचलिक भाषा (गढ़वाली / कुमायनी) में उसके दस्तावेज भी मौजूद हों I यह भी हो सकता है कि अंचल की दंतकथाओं और किंवदंतियों में उन कथाओं के उत्स मिलते हों I अतः इस संभावना को नकारा नहीं जा सकता कि इन सब सामग्रियों और उत्स के आधार पर पहाडी भाषा में प्रभूत उपन्यास या काव्य लिखे गए हैं I हिन्दी मे खासकर कुमायूंनी संस्कृति और सभ्यता को साहित्य की विधा में उतारने वाले साहित्यकारों में शैलेश मटियानी, शिवानी, हिमांशु जोशी, पंकज बिष्ट और मनोहरश्याम जोशी प्रमुख नाम हैं, जिन्होंने पर्वतांचल की गौरव गाथाओं को अपने अनमोल शब्द-चित्र दिए हैं I इस परंपरा में एक नया नाम कौस्तुभ आनन्द चंदोला है, जिन्होंने देवभूमि के कथानकों पर लेखनी चलाकर प्रतिष्ठा और पुरस्कार दोनों अर्जित किये हैं I इन्होने उत्तराखंड के प्रख्यात न्याय देवता गोलू देव की जीवन गाथा पर अपना पहला लोकप्रिय उपन्यास ‘सन्यासी योद्धा’ लिखा था I विवेच्य उपन्यास ‘चन्द्रवंशी’ इनका दूसरा उपन्यास है I         

चन्द्रवंशी’ उपन्यास में उत्तराखंड के कुमायूँनी क्षेत्र के चन्द्रवंशी राजा कल्याणचंद (शा.का.1729-47 ) का इतिवृत्त प्रस्तुत किया गया है I इतिहास के ब्याज से हम सभी जानते हैं कि राजगद्दी पाने के लिए राजपरिवारों में हमेशा ही अपने भाई और बन्धु-बांधवों को जान से मार देने की कुत्सित परम्परा रही है I इन हत्याओं और दुरभिसंधियों से बचने के लिये लोग असमर्थ, अवयस्क और सुकुमार उत्तराधिकारियों को उनके संरक्षक राज्य से बाहर किसी सुरक्षित स्थान पर अज्ञातवास के लिए भेज देते थे ताकि यदि कभी अनुकूल समय आता तो उस जायज उत्तराधिकारी को राज्य सिंहासन पर बिठाया जा सके I प्रजा भी राजवंश के उस धरोहर को हाथों हाथ स्वीकार कर लेती थी I 

चन्द्रवंशी’ उपन्यास के कथानायक कल्याणचंद भी एक ऐसे ही राजा थे जिन्हें उनके नाना सुमेर सिंह ने अपने विश्वासपात्रों के सहयोग से कुमायूं क्षेत्र के अल्मपुरी का शासक बनाया I राजा बनने से पूर्व कल्याणचंद ने मुफलिसी का जो जीवन जिया उसमें महज रोटी जुटाने के लिए उन्हें जी-तोड़ मेहनत करनी पड़ती थी I जाहिर है कि किसी राजपुत्र के समान उन्हें कोई शिक्षा-दीक्षा या शस्त्र प्रशिक्षण प्राप्त नहीं हुआ था I उपन्यासकार ने स्वयं इस राजा को कई बार माटी का माधो कहा है I एक दरिद्र को अगर अचानक सारी राजसी सुविधाएं, सम्मान और भोग सुलभ हो जायें और जिसका सूत्र उन मुठ्ठी भर लोगों पर हो जिनके अपने दुराग्रह और प्रतिशोध हों तो वह कठपुतली राजा सिवाय उन मुठ्ठी भर लोगों के इशारे पर नाचने के अतिरिक्त और कर ही क्या सकता है I राजा कल्याणचंद के साथ भी यही हुआ I उनके नाना सुमेर सिंह ने कृतज्ञ-विवश राजा से आदेश प्राप्त कर पूर्व राजा के विश्वासपात्रों की हत्याएं करवाई I केवल संदेह के आधार पर कितने ही निर्दोषों को फाँसी दे दी गयी I अनेक प्रकांड विद्वानों की आँखे निकलवा ली गयीं I यह अनाचार केवल इसलिए हुआ कि राजा का खौफ कायम हो सके और राज्यसत्ता निर्विघ्न हो जाए I राजा की असहायता, निर्बलता और उसकी मानसिक विपन्नता के बीच गहरे द्वंद्व को उपन्यासकार चंदोला जी ने जिस खूबी से स्वाभाविकता का जामा पहनाया है, उसके लिए वे बधाई के पात्र हैं I हर गलत निर्णय के बाद राजा में जो धीरे-धीरे सकारात्मक (Positive) परिवर्तन उभरता है उसका बड़ा ही वास्तविक (Realistic) वर्णन उपन्यास में मिलता है I राजा के नाना सुमेर सिंह ने कल्याणचंद को राजा अवश्य बनाया, पर वे स्वयं और उनका विश्वासपात्र दल इतना योग्य नहीं था, जो राजा को सन्मार्ग पर ले जा सके I इसलिए राजा कुमन्त्रणा के दलदल में धंसते चले गए I उन्होंने अपने विवेक से जिन योग्य लोगों को उच्च पद प्रदान किये उन पर भी राजा को भरोसा न करने दिया गया I परिणाम यह हुआ कि रूहेल सरदार हाफिज रहमत खां ने राजा को परास्त कर उसकी राजधानी अल्मपुरी पर कब्जा कर लिया I राजा कल्याणचंद को गढ़वाल प्रदेश के राजा प्रदीप्तशाह की शरण लेनी पड़ी I प्रदीप्तशाह एक उदार शासक था I उसने अल्मपुरी की सहायता हेतु रूहेल सरदार हाफिज रहमत खां की कठिन संधि शर्तों को स्वीकार कर कल्याणचंद को पुनः अल्मपुरी का राजा बनाया I अब तक कल्याणचंद में परपक्वता आ चुकी थी I रुहेलों से मिली हार ने उसका सारा मनोविज्ञान ही बदल कर रख दिया I राजा अब स्वतंत्र निर्णय लेने लगा I उसने नई फ़ौज का संगठन किया I धन और जन-बल बढ़ाया I कूटनीति से काम लिया और एक बड़ी लड़ाई में रुहेलों को अपने राज्य से बहिष्कृत कर फिर से सर्वशक्ति संपन्न राजा बना I उपन्यास का कथानक यहीं तक है I

इस उपन्यास के शिल्प में नवीनता है I राजा कल्याणचंद वृद्ध हो चुके हैं i उनकी आँखें भयानक संक्रमण का शिकार हैं  I  वे मानो उबली पड़ती हैं I  इससे राजा का चेहरा डरावना हो गया है I किसी भी उपचार से पीड़ा शांत नहीं होती I राजा को अपना अतीत याद आता है I कहीं यह उस पाप की सजा तो नहीं I राजा ने कुमंत्रणा में फंसकर कितने ही निर्दोषों की आँखें निकलवा ली थीं I राजा को मृत्यु के पदचाप त्रस्त करते रहते हैं I उनका चिंतन दार्शनिक हो उठता है और वह जीवन, उसकी नश्वरता पर विचार करता है I वह  जीवन जिस पर मानव का कोई वश नहीं है I इन्ही विराग-क्षणों में राजा अपने स्मृति की पोटली खोलता है और अपनी जीवन कथा का दिग्दर्शन करता है I

यह उपन्यास प्रथम पुरुष के रूप में आत्म-कथन के रूप में लिखा गया है  परन्तु विशेष बात यह है कि हर नये दृश्य में पात्र-परिवर्तन होने पर नया पात्र भी अपनी कथा प्रथम पुरुष में ही व्यक्त करता है I उप-शीर्षकों में पात्र बार-बार भी  आते है पर उनका स्वरुप सदैव प्रथम पुरुष जैसा ही रहता है I मजे की बात यह है कि इससे उपन्यास के संगठन और उसकी संप्रेषणीयता में कोई कमी नहीं आयी है I एक लेखकीय ईमानदारी जो इस उपन्यास में विशेष रूप से दिखती है वह है कथाकार द्वारा कथानक पर कसाव बनाए रखना I वह सामान्य पाठक की अपेक्षाओं के अनुसार नृत्य-संगीत, रास-रंग और प्रेम के उद्दाम प्रसंगों की ओर ज़रा भी आकर्षित नहीं हुआ, उसका सारा ध्यान कथानक से न्याय करना रहा है I यही कारण है कि इस उपन्यास में रंजक तत्वों की कुछ कमी हो सकती है पर वह कथाकार की अपनी ईमानदारी है I

राजा कल्याणचंद कथानायक हैं I उनका चरित्र उपन्यास का सबसे सशक्त चरित्र है I उसमे खामियां भी हैं और महनीयता भी I जिन परिस्थितियों से गुजर कर वह राजा बने और जिस प्रकार जिन लोगों द्वारा बनाए गए वह सब बड़ा ही स्वाभाविक है I कथाकार ने ढेर सारी खामियों के बाद भी राजा कल्याणचंद के चरित्र को कहीं भी अप्रिय नहीं होने दिया, यह उनके लेखन का अपना कौशल है I अन्य चरित्र जो प्रभावित करते हैं, उनमें शिवदेव जोशी का चरित्र अनुकरणीय है I वह  एक विद्वान् और वीर योद्धा है I उनके अंदर सूझ- बूझ और उच्च विचार शक्ति है I देशप्रेम और राज्य निष्ठा तो मानो उनकी पूंजी ही है I पं० शिवानन्द, पं० लक्ष्मी चंद, पं रमावल्ल्भ पन्त, राजा के नाना सुमेरु, राजा की दासी रानी, राजा के मित्र अनूप, रूहेल सरदार हाफिज रहमत खां आदि उपन्यास के अन्य मुख्य चरित्र हैं I गढ़वाल नरेश प्रदीप्तशाह विशिष्ट भूमिका में है I उनका चरित्र आदर्श है I उन्होंने जिस तरह अपने धन और जन-बल से राजा कल्याणचंद की सहायता की और रुहेलों से हुयी संधि के एक प्रस्ताव का उल्लंघन कर कल्याणचंद को फिर से अल्मपुरी का राजा बनाया यह स्वत अनुकरणीय चरित्र है I कथाकार के संवाद प्रभावशाली है I कहीं-कहीं कुछ बड़े हैं पर कथा के तारतम्य में होने के कारण अखरते नहीं हैं I मनोरंजन के लिए उपन्यास पढ़ने वालों को इस कथा से कुछ मायूसी हो सकती है पर साहित्य और इतिहास के जो गंभीर अध्येता हैं, जिन्हें कुछ नया जानने की सदैव ललक रहती है, उन्हें यह उपन्यास अवश्य आप्यायित करेगा, मेरा ऐसा विश्वास है I

                                                                                                                537ए /005 , महाराजा अग्रसेन नगर

                                                                                                                 सीतापुर रोड से ताड़ीखाना मोड़ पर

                                                                                                                 निकट डॉ. पंवार चौराहा, लखनऊ I

 (मौलिक एवं अप्रकाशित )                                         

 

Views: 272

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"शुक्रिया आदरणीय चेतन जी इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए तीसरे का सानी स्पष्ट करने की कोशिश जारी है ताज में…"
2 hours ago
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"संवेदनाहीन और क्रूरता का बखान भी कविता हो सकती है, पहली बार जाना !  औचित्य काव्य  / कविता…"
7 hours ago
Chetan Prakash commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"अच्छी ग़ज़ल हुई, भाई  आज़ी तमाम! लेकिन तीसरे शे'र के सानी का भाव  स्पष्ट  नहीं…"
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सुरेद्र इन्सान जी, आपकी प्रस्तुति के लिए बधाई।  मतला प्रभावी हुआ है. अलबत्ता,…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ जी आपके ज्ञान प्रकाश से मेरा सृजन समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 182 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

गजल - सीसा टूटल रउआ पाछा // --सौरभ

२२ २२ २२ २२  आपन पहिले नाता पाछानाहक गइनीं उनका पाछा  का दइबा का आङन मीलल राहू-केतू आगा-पाछा  कवना…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"सुझावों को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय सुशील सरना जी.  पहला पद अब सच में बेहतर हो…"
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . .

 धोते -धोते पाप को, थकी गंग की धार । कैसे होगा जीव का, इस जग में उद्धार । इस जग में उद्धार , धर्म…See More
Wednesday
Aazi Tamaam commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"एकदम अलग अंदाज़ में धामी सर कमाल की रचना हुई है बहुत ख़ूब बधाई बस महल को तिजोरी रहा खोल सिक्के लाइन…"
Tuesday
surender insan posted a blog post

जो समझता रहा कि है रब वो।

2122 1212 221देख लो महज़ ख़ाक है अब वो। जो समझता रहा कि है रब वो।।2हो जरूरत तो खोलता लब वो। बात करता…See More
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service