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 श्री त्रिलोक सिंह ठकुरेला जी द्वारा सम्पादित “कुंडलिया छंद के नये शिखर” में 14 कुण्डलियाकारों के कुंडलिया छंद है | इन छन्दों के बारे में प्रोफ. सोम ठाकुर ने इस पुस्तक पर अपने राय में ये उद्गार प्रकट किये है “कुंडलिया छंद के के इस संकलन में कुण्डलियाकारों ने अपने भावों को सरस और प्रभावपूर्ण ढंग से पाठको के समक्ष रखा है | नीति, व्यवहार एवं समसामयिक सन्दर्भों से परिपूर्ण यह संकलन पाठकों को प्रभावित करने में सक्षम है” इस संकलन में सर्वश्री अशोक ‘अंजुम’ इंद्र बहादुर सिंह ‘इन्द्रेश’ ऋता शेखर ‘मधु’ डॉ. थम्म्नलाल वर्मा ‘विकल’ ब्रजभूषण चतुर्वेदी ‘ब्रजेश’ महावीर सिंह ‘खुर्शीद’ आचार्य राकेश बाबू ‘ताबिश’ राजेंद्र वर्मा, डॉ. रंजना वर्मा. लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला, वैशाली चतुर्वेदी, डॉ. सतीश चन्द्र शर्मा ‘सुधांशु’ शिव कुमार ‘चन्दन’ और श्री हरिओम श्रीवास्तव जी की कुंडलिया सम्मिलित है |

जहाँ श्री अशोक ‘अंजुम’ वर्तमान माहौल पर अपनी बैचेनी प्रकट करते हुए लिखते है कि “अँधियारा अब रोज ही, दिखा रहा है आँख, पंछी अब ईमान के खोल न पाते पाँख | खोल न पाते पाँख, कि पल पल मिले शिकारी, भ्रष्ट हुआ परिवेश, फैलती मारामारी |” वही इंद्र बहादुर सिंह ‘इन्द्रेश’ ने एक ओर भारत माँ और गीता के सन्देश पर कलम चलाई है तो दूसरी ओर दहेज़ और धूम्र-पान जैसे बुराइयों के विरुद्ध भी आवाज उठाई है | कवियत्री ऋता शेखर ‘मधु’ आच्छिदित हरियाली, बसंत के मौसम की बहार आदि पर सुंदर शब्द चित्र उकेरे है | डॉ. थम्म्नलाल वर्मा ‘विकल’ हवा, पानी सहित वातावरण को दूषित करने के विरुद्ध चेतावनी दी है | श्री महावीर सिंह खुर्शीद न एक ओर जल के संचय, और वृक्षारोपण की आवश्यकता पर बल दिया है तो दूसरी ओर वायु प्रदूषण के खतरों से सावधान किया है |  श्री राजेंद्र वर्मा, कवयित्री रंजना वर्मा और लक्ष्मण रामानुज लडीवाला ने सभी सामजिक बुराइयों, दुश्चरित्र. स्वार्थ भावना से रिश्तों में खटास आदि मानव मूल्यों के गिरते स्तर पर चिंता व्यक्त की है और भारतीय गंगा जमनी सभ्यता और संस्कृति को बचाने पर जोर त्गेते हुए यहाँ के होली, दीपवाली और ईद त्याहारों का महत्त्व बताया है और राम राज्य के आदर्शों पर जोर दिया है | कवियत्री वैसाली चतुर्वेदी, शतीश चन्द्र ‘दुधान्शु’ शिव कुमार ‘चन्दन’ और हरिओम श्रीवास्तव ने आभासी दुनिया, डिजिटल, भाषा, कर्म, नारी के उत्थान, सुख-दुख, जीवन-मरण पर चिंतन प्रस्तुत किया है |

       इस प्रकार कुल मिलकर सभी कुण्डलियाकरों के समग्र कुंडलिया छन्दों में ऐसा कोई विशन नहीं बचा जिस पर इस संकलन में कलम कलम न चली हो | निस्न्देह श्री त्रिलोक सिंह ठकुरेला जी द्वारा

छन्दों का चयन सराहनीय है और श्री सोम ठाकुर जी का विश्वास है कि साहित्य जगत में इस संकलन का व्यापक स्वागत होगा |

प्रकाशक राजस्थान ग्रंथागार, जोधपुर (राज), मूल्य 200/- सम्पादक श्री त्रिलोल सिंह ठकुरेला द्वारा 14 कुंडलियाकरों कि कुल 210 कुण्डलियों को संग्रह में सम्मिलित किया है |

समीक्षक - लक्ष्मण रामानुज लडीवाला, जयपुर  

(समीक्षा स्वलिखित व अप्रकाशित)

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Replies to This Discussion

सुंदर समीक्षा आदरणीय लड़ीवाला साहब “कुंडलिया छंद के नये शिखर” में सम्मिलित सभी कुण्डलियाकारों को बहुत-बहुत बधाई. सादर.

कुंडलिया छंद के नये शिखर” संकलन कल ही प्राप् हुआ है | किसी पुस्तक मेरे द्वारा ये मेरे काव्य संग्रह के बाद प्रथम समीक्षा है | इस आपकी उत्साहवर्धक टिपण्णी से होंसला बढ़ा है | हार्दिक आभार आपका श्री अशोक रक्ताले जी |

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