For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

डूब गया बचपन प्यारा सा
डिम हो गयी किलकारी
गुड्डे-गुड्डी टूट गए सब
फट गई टोपी जरतारी
बचपन मेरा भाग गया है
क्योंकि
जमाना कम्प्यूटर का आ गया है।
बिखर गए सब घर घरौंदे
गिल्ली के डंडे टूट गए
कबड्डी की टीम छितरा गई
आंख मिचौली के अड्डे उजड़ गए
बचपन मेरा भाग गया है
क्योंकि
जमाना कम्प्यूटर का आ गया है।
पतंग मेरी जो लटकी थी
हेलीकॉप्टर से उतारूंगा
अपनी गायब गिल्ली को
रिवॉल्वर लेकर ढूढ़ूंगा
बचपन मेरा भाग गया है
क्योंकि
जमाना कम्प्यूटर का आ गया है।
दादी से नहीं सुनुँगा रामायण
कॉमिक्स हमारा आया है
हनुमान आदर्श नहीं अब
साबू हमारा प्यारा है
बचपन मेरा भाग गया है
क्योंकि
जमाना कम्प्यूटर का आ गया है।
वीडियोगेम ही मेरा
अब छुपा-छुपी का खेल है
मिट्टी के रेलों से क्या मतलब
जब रियल हमारा रेल है
बचपन मेरा भाग गया है
क्योंकि
जमाना कम्प्यूटर का आ गया है।
अब दूध में वह नहीं जायका
जो कॉम्पलैन में आता है
बॉन्वीटा का तो क्या कहना
वही तो मुझको भाता है
बचपन मेरा भाग गया है
क्योंकि
जमाना कम्प्यूटर का आ गया है।
वह दिन अब भूल गया हूं
जब माँ हमको दूध पिलाती थी
न पीने पर वह छड़ी से
प्यार से मार खिलाती थी
कम से कम अब तो उससे
पिंड हमारा छूट गया
बचपन मेरा भाग गया है
क्योंकि
जमाना कम्प्यूटर का आ गया है।
कसरत मल्ल से क्या मतलब
जब कट्टा मेरे हाथ है
चाकू मेरी में है
रिमोट बम भी साथ है
बचपन मेरा भाग गया है
क्योंकि
जमाना कम्प्यूटर का आ गया है।
पोटम पढ़ने में कहाँ मजा
जब रीमिक्स का कैसेट घर में है
मक्खन मिस्री में क्या मजा
जब चॉकलेट मुँह में है
बचपन मेरा भाग गया है
क्योंकि
जमाना कम्प्यूटर का आ गया है।
कहाँ से पकड़ूं कलम-दवात
जब कप-प्लेट है हाथ में
हस्ता कैसे सिर पर ढोऊं
जब गारे का तसला माथ पे
बचपन मेरा भाग गया है
क्योंकि
जमाना कम्प्यूटर का आ गया है।
कैसे सीखूं सोशल विहैवर
जब गाली मुझको मिलती है
बुरा करूं तो मैं साला
अच्छे पे माँ साली बनती है
बचपन मेरा भाग गया है
क्योंकि
जमाना कम्प्यूटर का आ गया है।
कैसे सीखूं नारी इज्जत
जब माँ का इज्जत लुटता है
आखिर भाई पेट के खातिर
कुछ तो करना पड़ता है
बचपन मेरा भाग गया है
क्योंकि
जमाना कम्प्यूटर का आ गया है।
जिस घर में माँ झाड़ू करती है
मालिक उसको तड़ता है
ताक-तूक लखि सून सान
सीने से उसे लगाता है
बेबस बेचारी सी माँ
बिबस तड़पती रहती है
सनरौ पाती जब भी मालकिन
माँ को ही डपटती है
बचपन मेरा भाग गया है
क्योंकि
जमाना कम्प्यूटर का आ गया है।
पाँच बरष के सब साथी
आठ बरष में परदेश गए
कैसे खेलूं लुका-छिपी
वे अब भदेश भए
बचपन मेरा भाग गया है
क्योंकि
जमाना कम्प्यूटर का आ गया है।

Views: 778

Replies to This Discussion

इस प्रयास के लिये शुभकामनाएँ. 

वैसे, रचना की कहन अच्छी है लेकिन लेखन पर अभी बहुत प्रयास करना है.  अभी कई अशुद्धियाँ रह गयी हैं.जो खलती हैं.  इस रचना को आपने बाल-साहित्य के अंतर्गत पोस्ट किया है, उस लिहाज आखीर की कुछ पंक्तियाँ एकदम से खटक रही हैं.  रचना-लेखन मात्र भाव प्रस्तुतिकरण न होकर साधना और उत्तरदायित्त्व भी है.  बाल साहित्य अनगढ़ रचनाओं के लिये मंच नहीं हुआ करता. 

शुभेच्छा

इस मार्ग निर्देशन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी!वास्तव में इस रचना से ज्यादा अनगढ़ अभी मेरी रचनाधर्मिता है, इसे भी परिष्कृत करने की आवश्कता है जो आप जैसे पारखियों के द्वारा ही सम्भव है।
पूज्य सौरभ जी क्या आपको मैं अपना साहित्यिक गुरू मानने का अधिकारी हूँ।यदि आप ऐसा कुछ स्वीकार करते हैं तो आप से निवेदन है कि अपना आशीर्वाद प्रेषित करने और समय समय पर मार्ग निर्देशन करने की कृपा कीजिएगा।
पूज्य गुरुदेव को पुनश्च प्रणाम।
(यह रचना बहुत पुरानी है शायद मैंने कक्षा-10 में लिखा था किन्तु परखी नजर न होने के कारण मैं इसकी कमियों को पहचान न सका।)
एडमिन से मेरा सादर निवेदन है कि गलत व खटकने वाली पक्तियों को तुरंत हटा दें।

मैं सौरभ जी की बात से सहमत हूँ आपकी कविता का भाव बहुत अच्छा है एक कोमल हर्दय को परिस्थितियों के समक्ष मर्माहत होते हुए गलत राह पर पड़ जाने पर मन को उद्वेलित होते हुए दर्शाया गया है आप इस कविता को बच्चों के कक्षा की बजाय सामाजिक व्यंग के रूप में डालेंगे तो ठीक रहेगा आपका प्रयास बहुत सराहनीय है.

धन्यवाद राजेश कुमारी जी!आपका सुझाव अनुमन्य है।आपका आभार।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted discussions
5 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
5 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
17 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
17 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
yesterday
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service