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आप सबको बहुत बहुत बधाई सफ़ल आयोजन की।
मेरी अनुपस्थिति के लिये क्षमाप्रार्थी हूँ। समयाभाव का बंधन है। अपनी रचना लगाकर शॉंत हो जाने से भी एक खलबली दिमाग़ में मची रहती है। कभी मिली फ़ुर्सत तो.......
//इस बार रचनायों का स्तर पहले किसी भी उत्सव की बनिस्बत बहुत ही बेहतर रहा ! इस बार "क्वालिटी" का पलड़ा "क्वांटिटी" से कहीं भारी रहा !//
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आदरणीय योगराज भाईसाहब की इस एक पंक्ति ने सारा कुछ समेट कर encapsulate किया और सामने रख दिया है.
[ तभी तो.. अब मतले अता हो रहे हैं, मितलियाँ नहीं... :-)).. ]
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