आदरणीय साथिओ,
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दाह संस्कार
एकाएक फोन रखते ही सारी फिल्म उस के जेहन में चलने लगी. यह उस वक्त की बात है जब वह दूसरे शहर नौकरी कर रहा था. मां गांव में अकेली खेतीबाड़ी कर के गुजारा करती थी. तब अचानक मां को देहांत हो गया था. उसी धर्मपुत्र ने मां की मिट्टी को ठिकाने लगाया था. पुत्रधर्म का पालन किया था. जब कि वह मां का कुछ नहीं लगता था. वह तीन दिन बाद घर पहुंचा था. तब तक वहीं धर्मपुत्र सब कार्य करता रहा था.
मगर, आज वह उसी धर्मपुत्र के पिता के क्रियाकर्म पर जा नहीं पाया था. पत्नी से कहा था. उस का जवाब था, '' वह कौनसा अपना सगा या रिश्तेदार है जो वहां जाओगे. हमें किसी धर्मभाई का रिश्ता नहीं निभाना है.''
उस ने पत्नी की बात मान ली थी.
आज उसी धर्मपुत्र का फोन आया था, '' भैया ! आप बड़े है. आप को ही पगड़ी बंधनी थी. आप नहीं आए. पिताजी नहीं रहे और आप भी ....'' और वह फोन पर रोने लगा. आगे कुछ बोल नहीं पाया.
वह भी फोन पर कोई जवाब नहीं दे पाया. आखिर क्या कहता ? शहरी चकाचौंध और पत्नी की आधुनिक प्रवृत्ति और सोच ने उसे गांव जाने से रोक दिया था.
'' क्या हुआ ?'' तभी पत्नी ने पास आ कर उसे हिला कर पूछा , '' अरे ! इस तरह धम् से जमीन पर क्यों बैठ गए. जैसे कोई मर गया हो !''
यह सुनते ही वह वर्तमान में लौट आया. उस के मुंह से केवल यही निकला, '' आज मैं ने अपने एक पवित्र रिश्ते का दाह संस्कार कर दिया है. लगता है कि अब कभी मुंह उठा कर जी नहीं पाऊंगा,'' यह कहते हुए वह फफक कर रो पड़ा.
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(मौलिक और अप्रकाशित)
आ. भाई ओमप्रकाश जी, बहुत मार्मिक कथा हुई है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आप का हार्दिक आभार . आप को मेरी रचना अच्छी लगी. इस से मेरी मेहनत सार्थक हो गई.
बहुत भावपूर्ण और मार्मिक रचना विषय पर, स्वार्थ मनुष्य को अँधा बना देता है. बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए आ ओम प्रकाश क्षत्रिय प्रकाश जी
आदरनीय विनय कुमार जी आप की समीक्षा बहुत सटीक और सार्थक होती है. आप का हार्दिक आभार आप को यह रचना अच्छी लगी.
आदाब। एक नये कथानक पर विषयांतर्गत बढ़िया विचारोत्तेजक रचना के साथ आग़ाज़ के लिए हार्दिक बधाई जनाब ओमप्रकाश क्षत्रीय 'प्रकाश' जी। वसंत पंचमी पर्व की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ओबीओ परिवार को।
आदरणीय शेख़ शहजाद उस्मानी जी आप को भी बसंत पंचमी की शुभकामनाएं । आप को मेरी लघुकथा अच्छी लगी । यह पढ़ कर लगा कि मेरी मेहनत सार्थक हो गई।
बहुत जी मर्मस्पर्शी और कसी हुई लघुकथा कही है आ० ओमप्रकाश क्षत्रिय भाई जी. बहुत-बहुत बधाई प्रेषित है.
आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई साहब, आप का मार्गदर्शन हमारे लिए प्रेरक और दिशा बोध होता है । आप को मेरी लघुकथा मार्मिक लगी, यह जानकर अच्छा लगा । हार्दिक आभार आपका ।
बहुत मार्मिक एवं हृदय को छू लेने वाली रचना के लिए हार्दिक बधाई आ0
हार्दिक बधाई आदरणीय भाई ओम प्रकाश जी।बहुत ही लाज़वाब और हृदय स्पर्शी लघुकथा। कुछ लोग जरूरत और समय के हिसाब से रिश्ते बदलते रहते हैं।
आदरणीय तेजवीर सिंह जी आप की प्रतिक्रिया जाने क्यों मुझे अपनीअपनी सी लगती है । आप का हार्दिक आभार और धन्यवाद प्रतिक्रिया के लिए।
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