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हमारे देश में आतंकवादियो की खातिरदारी अतिथियो से भी ज्यादा बढ़ चढ़ कर होती है!अब अजमल कस्साब को ही ले लीजिये ...महोदय ने १६६ लोगो को मौत के नींद सुला दिया ...लेकिन फिर भी भारत में डेढ़ साल से आराम कर रहा है !क्या इस को देखने के बाद ये नहीं लगता है की हमारी काननों कुछ ज्यादा ही ढीला नहीं है आतंकवाद के लिए ....पूरी दुनिया जानती है की कसाब आतंकवादी है जिसने १६६ लोगो को मौत के नींद सुला दिया ....फिर किस बात की इंतज़ार हो रही है ....की कोई और कंधार विमान अपहरण कांड जैसा कांड हो जाये और ....कसाब को दुल्हे रजा की तरह भारत से विदा कर दिया जाये !
मैं लगातर एक हफ्ते से सुन रहा हु की कसाब को आज फासी हो ..कल फासी होगी...लेकिन एक एक दीं बढ़ता ही जा रहा है ....जब मेरा ये हाल है तो जरा सोचिये की उन माँ बाप का क्या होता होगा जिसके लाडले को कसाब ने मौत के घाट उतर दिया ..
इन सारी चीजो को देखने के बाद तो यही लगता है की भारत में अतिथियो की ज्यादा सेवा हो रही है.जो की नहीं होना चाहिए
मुझे अब भी नहीं लगता है की कसाब को फासी होगी सिवाय उमर्कैद के .....और अगर ऐसा नहीं हुआ तो मैं क्या किसी के मुह से यह अचानक ही निकल जाएगी की ...क्या १६६ लोगो का हत्या का सजा उमर्कैद ही होती है ?
और भारत पर ऐसे हमले रोज होंगे क्योंकि आतंकवादियो को पता है की भारत के सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीस के सामने भी अगर मैं किसी को मरूँगा तो भी, वही न्यायाधीस अगले दिन कोर्ट में सबूत मांगेगे ....आखिर भारतीय कानून जो है ..
अरे कानून तो ऐसी होनी चाहिए की आतंकवादियो को पकड़ने के एक हफ्ते के भीतर ही उन्हें बिना किसी सबूत और गवाह की मांग किये फासी पर लटका देना चाहिए .....ताकि ऐसा मंजर देखने के बाद ...उनका भारत पर हमला तो दूर आँख उठा कर देखने की भी कोसिस करे तो रूह काप जाये !

रत्नेश रमण पाठक (यांत्रिक अभियंत्रण,छात्र)

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वन्दे मातरम बंधुवर,
ये हमारा ही क़ानून है जो हमारे ही भाइयों की निर्ममता से हत्या करने वालों को दामाद की तरह पाल कर रखता है ..... जिस गुनाह को सारा संसार टेलीविजन के माद्यम से होता देख रहा था उस गुनाह को साबित करने के लिए हमारे यहाँ अभी सबूतों की तलाश जारी है ......... सचमुच अंधी है हमारी क़ानून व्यवस्था और हमारे माननीय न्यायाधीश ......... आतंकी हमारे देश को ऐश गाह समझते हैं . जब चाहे बेगुनाहों के खून से होली खेलते हैं ...... इन्हें कोई डर नही है जानते हैं रंगे हाथों पकड़े जाने के बाद भी इनका कुछ नही बिगड़ेगा ......... दिक्कत ये है की इनके हमलों मैं अधिकतर आम और गरीब आदमी ही मारा जाता .......सत्ता के ऊँचे पायदान पर बैठे लोग इनके हाथों मारे जाये तो सम्भवत हमारे न्यायाधीश भी पैसे और समय की बर्बादी से बच कर जल्दी फैसले कर सके......
एक बात और है जिससे आज तक भरतीय रणनीति कारों ने कोई सीख नही ली की आखिर क्यों अमेरिका मे फिर कोई 9/11नही हुआ .... क्योंकि एक 9/11 के चलते अमेरिका ने एक बड़े युद्ध को अंजाम दे डाला .........
thanks a lot bhai jee .......for ur views
Kya kare, mere to samajh me hi nhi aata ki ek gunahgar ko is tarah ki suraksha kyo di gayi hai. Use fansi nahi janta k bich chhod diya. Matlab aam janta kya chahti hai iska v khyal kiya jay. Aaj tk pal posh kr rakhne ka auchity samajh me nhi aata. Use usi smay bhid me chhod dena chahiye tha. Fir to laat aur mukko ki anginat chote kisi v aatanjwadi ko sochne pe majbur karti. Lekin isi tarah bithakar khilayenge aur uski roj ki aawashyaka pura karenge to ye wajib nhi. Aur ye sarasar anyay h. Jb sja ho gayi hai, aur pakka subut h sabne dekha tha to der nhi honi chahiye.
अब देखिये माननीय अतिथि जी का जलवा ------सुनवाई के दौरान ऐसी हरकते कर रहे थे जैसे मानो भारतीयों को ललकार रहा था ,अब बताइए की इससे ज्यादा शर्मनाक हम भारतीयों के लिए क्या हो सकती है .
पढ़िए कुछ लाइन --कसाब सुबह ठीक 11 बजे बड़े पर्दे पर दिखा। ऐसा लगा कि कार्यवाही में उसकी कोई रुचि नहीं है। वह पूरी अवधि मुस्कुराता और जम्हाई लेता रहा। कई बार उसने अपना सिर खुजलाया, जेल की ड्रेस के बटन से खेलते दिखा और बांहें फैलाता हुआ भी दिखा।
पूरा पढ़े ---इस लिंक पर http://www.livehindustan.com//news/desh/nationalnews/39-39-142632.html
रत्नेश जी धन्यवाद इतना गंभीर मुद्दा को यंहा उठाने के लिए...लचर क़ानून...न्याय में देरी...ये देरी कंही और किसी कांधार को अंजाम ना दे दे?
भाईरत्नेश,
आपका कथ्य कई कारणों से समीचीन है:
१. इस मुद्दे ने भारतीयों की भावनाओं को कई लिहाज से आहत किया है.
२. मुद्दा न्यायालय में अन्यथा लम्बित न रहे.
३. भारतीय जन-मानस की प्रतिक्रियाएँ स्प्ष्ट और प्रबल हैं.
४. यह प्रक्रिया अन्यथा मोड़ न पा जाय.

किन्तु, मैं एक बात आपसे और आपके माध्यम से कहना चाहूँगा कि कुछ मुद्दों को भावनाओं के स्तर पर प्राण नहीं मिलता. जोश और ज़ज़्बा ज़रूरी है मगर कथ्य की प्रामाणिकता भी उतनी ही ज़रूरी है. किसी व्यक्ति को सिर्फ़ इस लिए कि वह आतंकवादी है फाँसी पर नहीं चढ़ा दिया जाता. चढ़ाया जाना भी नहीं चाहिए. कई पहलू हैं जिनका संतुष्ट होना भी उतना ही ज़रूरी है. अन्यथा, भविष्य बड़ा भारी न्यायी हुआ करता है. उसके सवालात के जवाब इत्मीनान चाहते हैं. Spurt against emotional issues और balanced in emotion issues में दूसरे वाले का अनुमोदन अपनी गीता भी ’उभे सुकृतदुष्कृते’ कह कर देती है. प्रक्रिया शिथिल दीख रही होगी परन्तु अव्यवस्थित नहीं होनी चाहिए. न्याय-व्यवस्था से अन्यमनस्क होना उचित नहीं. उचित है न्याय-व्यवस्था के प्रति तिरस्कारा का भाव न पनपने पाए. हमारे-आपके मध्य जी रहे राजनीतिबाजों से देश की भावनाएँ अधिक आहत होती हैं, हमारे पास इनके विरुद्ध के लिए क्या साधन हैं? इन राजनीतिबाजों के कारण कसाब जैसे आतंकवादियों को शह मिलती है.

अतः, हमारा प्रयास मुद्दे को संवेदनशील बना उसको असहजता देना नहीं, बल्कि, हमारी कोशिश मुद्दे को तथ्यात्मक गंभीरता देना होनी चाहिए. कुछ पोस्ट की हुई प्रतिक्रियाओं को पढ़ने के पश्चात मैं ऐसा कह रहा हूँ.

आपका सार्थक प्रयास विभिन्न मतों को साथ ले कर सुदृढ़ता से आगे बढ़े, यही कामना है.
मुबारकवाद कबूलें रत्नेश जी आपने जता दिया कि आज का युवा देश के गभीर मुद्दों को लेकर कितना जागरूक है. बधाई .आज वास्तव में अपने विचारों को अभिव्यक्ति देने की आवश्यकता है और ओ ब ओ एक सार्थक मंच बन रहा है.हम आवाज़ उठाएंगे तो बात दूर तक जायेगी ही .
YOU ARE VERY RIGHT
आतंकवादी सिर्फ़ कसाब नही हमारी क़ानून व्यवस्था का हवाला देने वाली सरकार भी है |आख़िर जिसने मासूमों का खून बहाया उसको मारने के लिए आख़िर हम किस सबूत का इंतजार कर रहे हैं समझ मे नही आ रहा है |की किस दिन हमें इन खोखलेबाजी से निजात मिलेगी|
अभिषेक जी सिर्फ जज्बातों में बह के किसी भी फैसले को उचित नन्ही ठहराया जा सकता...माना की न्याय प्रक्रिया धीमी है..और कभी कभी इतनी देर हो जाती है की फैसला आने का कोई औचित्य नन्ही रह जाता....मेरे विचार से न्याय प्रक्रिया को और गतिशीलता प्रदान करने की जरूरत है..लेकिन साथ ही साथ न्याय प्रक्रिया से खिलवाड़ मेरी नजर में सर्वथा अनुचित है...बिना पुख्ता सबूत के ...और बिना सबूतों की प्रमाणिकता जांचे परखे कोई भी निर्णय...निर्णय नन्ही कहा जा सकता...माना की कसाब के सन्दर्भ में ना ही सबूतों की कमी है..ना ही उनकी प्रमाणिकता की..फिर भी मेरी राय में..न्याय प्रक्रिया को अपना काम करते देना चाहिए..ताकि वादी और प्रतिवादी को ही नन्ही..पूरे विश्व को लगना चाहिए की हाँ न्याय हुआ...यदि तुरत फुरत ही न्याय करना है तो फिर हममें और तालिबान में क्या फर्क?
न्यायिक प्रक्रिया में तेजी जरूर एक मुदा है..और सबों के इसपर गंभीरता से विचार करना चाहिए..इसका हल ढूंढना चाहिए....
आज पूरा देश २६/११ के शहीद हुए जवानों,आम नागरिको,तथा विदेशी पर्यटकों को भावभीनी श्रधांजलि अर्पित कर रही है.हर कोई उस मौत के तांडव को याद कर रहा है ,जब हमारे देश के वीर जवानों ने अपनी जान की कुरबानी देकर हमलोगों को सुरक्षित रखा .मैं एक बात डंके के चोट पर कह सकता हूँ की जिसने भी २६/११ को याद किया होगा ,उसका खून दो मिनट के लिए ही सही, लेकिन उबला जरुर होगा.लेकिन पुनः संतुलित होगया होगा.क्योकि हमारी भलाई इसी में है की हम अपने उबलते हुए खून की भाप बाहर नहीं आने दे.
आज पूरा मुंबई ग़मगीन होकर उन शहीदों को याद कर रहा होगा ,और उसी मुंबई शहर में कोई "विशिष्ट अतिथि " अपने खून पर, अपने ताकत पर,अपने बहादुरी,साहस,पर गर्व कर रहा होगा.क्योकि उसी अतिथि के कारन आज हमलोग उन शहीदों को श्रधांजलि दे रहे है.वह अतिथि कोई और नहीं बल्कि दो सालो से जेल में बंद अजमल कसाब है.जिसे भारत सरकार पिछले दो सालो से अतिथियो वाली सुख सुविधा मुहैया करा कर .....अतिथि देवो भवः को सार्थक साबित करने में लगी हुई है.आखिर किस बात की देर हो रही है उसको फासी की सजा देने में ..बड़े से बड़े मामले का निपटारा हो जाता है ,फास्ट ट्रैक कोर्ट है फिर भी इतनी देर क्यों?
क्या यह उन शहीद वीरो के श्रधांजलि में चुक नहीं है.क्या उन शहीदों ने ये सोचा होगा की जिसने हमें मारा उसे हमारी सरकार इस तरह से सेवा करेगी.और नखरे में हमारे तस्वीरों पर साल में एक माला चढाएगी .
हकीकत में श्रधांजलि तो उन्हें तब मिलेगा जब कसाब को फासी पर चढ़ाया जायेगा.जरा सोचिये उन १६० लोगो के परिवार वालों पर आज क्या बीत रही होगी ........किसी ने अपना बेटा खोया तो किसी ने अपना पति ,किसी ने भाई तो किसी ने भतीजा .अभी कुछ ही दीं पहले कसाब ने विडियो कांफ्रेस्सिंग के दौरान कैमरे पर थूक दिया था और गन्दी गालिया भी दी थी ,लेकिन फिर भी भारत सरकार अपना रवैया नहीं बदल रही है.अगर ऐसा ही चालत रहा तो वो दिन दूर नहीं जब उस हमले में मारे गए लोगो के परिजन सड़क पर उतरेंगे और कसाब के लिए मौत मांगेंगे.
वन्दे मातरम भाई रत्नेशजी,
जिस देश के न्यायाधीशों की आँखे बंद नही हुई बल्कि फूट चुकी हैं क्योंकि जिसका गवाह पूरा देश है, संसार के बड़े हिस्से ने टी वी के माध्यम से मौत का नंगा नाच देखा उसके लिए न्यायाधीशों को किस सबूत का इन्तजार है, जो उनकी फूटी आँखों को रौशनी दे सके मैं और आम जन आज तक समझ ही नही पाया.........
मैंने कभी भी धर्म विशेष पर नही कहा मगर आज बेहद अफ़सोस के साथ मैं कह रहा हूँ की हमारे देश की सरकार में वोट के भूखे हिजड़ों की पूरी फौज बैठी हो, जो मुस्लिम वोट बेंक की खातिर नही चाहती की कसाब को फांसी हो, आखिर हम कहाँ और क्यों इतने मजबूर हैं की कसाब और उस जैसे अन्य देश के दुश्मनों को तड़पा तड़पा कर कुत्ते की मौत नही मार सके? आखिर कब तक ये वोट के भूखे हिजड़े नेता, देश की अवाम की लाशों पर खड़े होकर घडियाली आंसू बहाते रहेंगे,?..........
मुझे कोई खेद नही है की मैं कुछ नेताओं को हिजड़ा कह रहा हूँ , मुझे ख़ुशी होगी अगर मेरी बात पड़ कर एक भी हिजड़े नेता की मर्दानगी जागे और कसाब जैसे देश के दुश्मनों को त्वरित फांसी दिलाने की पहल करे बेशक उसके बाद अपने आप को हिजड़ा कहे जाने पर मुझे कोर्ट में घसीट ले.........
मुझे इस बात का खेद है की एक सभ्य परिवार का सदस्य होकर मेरी कलम इतने घटिया शब्दों का इस्तेमाल कर रही है, मगर दुःख इस बात का है की इन शब्दों से अधिक घटिया शब्दों का प्रयोग करने में मैं अपने आप को असमर्थ पा रहा हूँ

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