चर्चा: अखबारों और दूरदर्शनी खबरियों का दायित्व 
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निश्चित रूप से मीडिया चाहे वह टीवी हो या अख़बार , के महत्त्व वो झुटलाया नहीं जा सकता है पर साथ साथ यह भी नहीं भूलना होगा कि उनका मूल दायित्व / सरोकार समाज की उस तश्वीर को उसके वास्तविक स्वरुप के साथ , प्रस्तुत करना होना चाहिए जो जन सामान्य को उससे अनभिज्ञ या उससे दूरस्थ होने के कारण उपलब्ध नहीं होता , परन्तु दुर्भाग्य है कि इस क्षेत्र में कॉर्पोरेट घरानों की उपस्थिति से मानवीय सरोकारों और सामाजिक दायित्वों का सारा का सारा ताना बाना कही उलझ कर रह गया है और हम वही सुनने ,देखे वो विवश हैं जो वे हमें दिखाने को तत्पर हैं ,,,,,तब कोई खबरिया कैसे भावात्मक और सामाजिक सरोकारों का दामन पकडे रह सकता हैं और कब तब , उसे पेट और घर भी तो पालना होता है
अजय जी!
आपकी बात सही है . मीडिया जब तक कारोबारी घरों से मुक्त न होगा वह एक समान्तर गैर कानूनी ताकत बनने से नहीं बच सकेगा। इस दिशा में सोच-समझ कर पहल तो करना ही होगी।
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