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अखबारों और दूरदर्शनी खबरियों का दायित्व

चर्चा: अखबारों और दूरदर्शनी खबरियों का दायित्व 

 कवरेज में जनता के असभ्य व्यवहार को कवरेज देकर भीड़ को उकसाया है। लाइव कवरेज के नाम पर अधिकांश टीवी चैनलों में संपादकीय नीति अनुपस्थित थी। मसलन् सरकारी संपत्ति तोड़ती भीड़ को कवरेज दिया। भीड़ में फांसी की मांग करने वालों को कवरेज देकर सही नहीं किया। टीवी पत्रकारों ने लगातार उत्तेजना पैदा करने का काम किया। पत्रकारों ने अपनी जिम्मेदारी को संयम के साथ नहीं निभाया। बलात्कार की घटना पर मीडिया ने उत्तेजना पैदा करने का काम करने जनता की अपूर्णीय क्षति की है। हाल ही में अमेरिका में 27 बच्चों की हत्या की घटना पर मीडिया ने वहां पर आम जनता को संयम बरतने और धैर्य से काम लेने की भूमिका अदा की। भारत में सामूहिक बलात्कार कांड पर आम जनता को उत्तेजित करने से बचा जाना चाहिए। पहले से ही उत्तेजित भीड़ को भड़काया है।

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निश्चित रूप से मीडिया चाहे वह टीवी हो या अख़बार  , के महत्त्व वो झुटलाया नहीं जा सकता है पर साथ साथ यह भी नहीं भूलना होगा कि उनका मूल दायित्व / सरोकार समाज की उस तश्वीर को  उसके वास्तविक स्वरुप के साथ , प्रस्तुत करना होना चाहिए जो जन सामान्य को उससे  अनभिज्ञ या उससे दूरस्थ होने के कारण उपलब्ध नहीं होता , परन्तु दुर्भाग्य है कि इस क्षेत्र में कॉर्पोरेट घरानों की उपस्थिति से मानवीय सरोकारों और सामाजिक दायित्वों का सारा का सारा  ताना  बाना कही उलझ कर रह गया है और हम वही सुनने ,देखे वो विवश हैं जो वे हमें दिखाने को तत्पर हैं ,,,,,तब कोई खबरिया कैसे भावात्मक और सामाजिक सरोकारों का दामन पकडे रह सकता हैं और कब तब , उसे पेट और घर भी तो पालना  होता है  

अजय जी!

आपकी बात सही है . मीडिया जब तक कारोबारी घरों से मुक्त न होगा वह एक समान्तर गैर कानूनी ताकत  बनने से नहीं बच  सकेगा। इस दिशा में सोच-समझ कर पहल तो करना ही होगी।

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