For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा- अंक १९-सभी प्रविष्टियाँ एक साथ



मिलती है ख़ूए-यार[1] से नार[2] इल्तिहाब[3] में 
काफ़िर हूँ गर न मिलती हो राहत अ़ज़ाब[4] में 

कब से हूँ क्या बताऊँ जहां-ए-ख़राब में 
शब-हाए-हिज्र[5] को भी रखूँ गर हिसाब में 

ता फिर न इन्तज़ार में नींद आये उम्र भर 
आने का अ़हद[6] कर गये आये जो ख़्वाब में 

क़ासिद[7] के आते-आते ख़त इक और लिख रखूँ 
मैं जानता हूँ, जो वो लिखेंगे जवाब में 

मुझ तक कब उनकी बज़्म में आता था दौर-ए-जाम 
साक़ी ने कुछ मिला न दिया हो शराब में 

जो मुन्किर-ए-वफ़ा[8] हो फ़रेब उस पे क्या चले 
क्यों बदगुमां हूँ दोस्त से, दुश्मन के बाब[9] में 

मैं मुज़्तरिब[10] हूँ वस्ल में ख़ौफ़-ए-रक़ीब[11] से 
डाला है तुमको वह्म ने किस पेच-ओ-ताब में 

मै और हज़्ज़-ए-वस्ल[12] ख़ुदा-साज़[13] बात है 
जां नज़्र देनी भूल गया इज़्तिराब[14] में 

है तेवरी चढ़ी हुई अंदर नक़ाब के 
है इक शिकन पड़ी हुई तर्फ़-ए-नक़ाब में

लाखों लगाव, एक चुराना निगाह का 
लाखों बनाव, एक बिगड़ना इताब[15] में 

वो नाला दिल में ख़स के बराबर जगह न पाये 
जिस नाले से शिगाफ़ पड़े आफ़ताब[16] में 

वो सेह़र[17] मुद्दआ़-तलबी[18] में न काम आये 
जिस सेहर से सफ़ीना[19] रवां[20] हो सराब[21] में 

'ग़ालिब' छूटी शराब, पर अब भी कभी-कभी 
पीता हूँ रोज़-ए-अब्रो[22]-शब-ए-माहताब[23] में

1. प्रेयसी का स्वभाव 2. आग(नरक) 3. लपट 4.दुःख 5. वियोग की रातें 6. वादा 7. संदेशवाहक 8. वफ़ा से इंकार करनेवाला 9. सम्बंध 10. बेचैन 11. प्रतिद्वंदी 12. मिलने का खुशी 13. खुदा की देन 14. विकलता 15. गुस्सा 16. सूरत 17. जादू-मंत्र 18. इच्छापूर्ती 19. नाव 20. चलता 21. मरीचिका 22. जिस दिन बादल छाया हो 23. चाँदनी रात

******************************************************************************************************************

 Yogendra B. Singh Alok Sitapuri

मुल्ला फंसे हुए हैं अजाब-ओ-सवाब में

पंडित की पंडिताई हिसाब-ओ किताब में,

 

छोटा है घर जरूर मगर दिल तो है बड़ा

आने की खबर दीजिए खत के जवाब में,

 

खुशबू तेरे बदन की गुलों में समा गयी

चंपा चमेली रात की रानी गुलाब में,

 

शाम-ए-गम-ए फिराक़ का आलम न पूछिए

दिल छटपटा रहा है गमें इज़तिराब में,

 

बच्चों नें जो लिखाया वही खत में लिख दिया

मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगें जवाब में,

 

हाथों में है कमाल तो जादू निगाह में

देखो बदल न जाय ये पानी शराब में,

 

आओगे सनम बन के तो फिर जा न पाओगे

'आलोक' ला के देखिये तशरीफ़ ख्वाब में,

*******************************************************************************************************************

 Arvind Kumar 

ख़त दूसरा रख आऊँ, फिर से चनाब में
मैं जानता हूँ, जो वो लिखेंगे जवाब में.

कोई राह भी दिखती नहीं, इतना अँधेरा है,
खुर्शीद छुप के बैठा है, क्यूँ कर नकाब में.

मद्धम सी रौशनी हुई, मायूस रात है,
कैसा ये दाग अबके लगा, माहताब में.

जो दिन ख़ुशी के थे, यूँही पल में गुज़र गए,
अब देखें क्या बचा है, जहान-ए-खराब में.

मिट्टी की कोख चीर के सोना निकाल दे,
इतना सकत कहाँ है अब, दरिया के आब में.

इससे निकलने की कोई तरकीब भी तो दे,
तू मुझको ले के, आ तो गया है अज़ाब में.

आजिज़ थे ऐसी कतरा-कतरा मैकशी से हम,
आखिर डुबो के छोड़ दी, प्याली शराब में.

घटायें देस की, परदेस में संदेशा लायी हैं,
अब लौट चल, हासिल है क्या आखिर सराब में.

********************************************************************************************************************

Dr.Brijesh Kumar Tripathi 

क्या पूंछें क्या लिखा है उनकी किताब में
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगें जवाब में

उनकी तो फितरतों में बसा एक ही नशा
सत्ता की डोज़ तगड़ी मिली हो शराब में

दागी खड़े किये हैं सभी ने उम्मीदवार
आओ चटायें धूल इनको इस चुनाव में

गाफिल न बैठें हम मिला अवसर ये बेमिसाल
छुट्टी का कोई मौका नहीं है हिसाब में

तब तक न होगी कम, चलेगी दबंगई 
जबतक चुनाव के दिन निकलें न ताव में

दागी-दबंगियों की धमकी से क्यों डरें
वोटों का जब ब्रह्मास्त्र लिए हैं जवाब में

********************************************************************************************************************

dilbag virk 

देखा किए सदा तुझको यार ख्वाब में |

अक्सर दिखा मुझे अपनापन जनाब में |

 

शामिल करो मुझे अपनी फेहरिस्त में 

मैंने लिखा तुझे दिल वाली किताब में |

 

सब छोडकर सदा पढना बाब प्यार का 

पा लोगे जिन्दगी बस इस एक बाब में |

 

दिल को सकूं मिला बस खत भेजकर उसे 

मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में |

 

खुद को भुला देना गर इस राह पर चलो 

वो इश्क क्या करेंगे पड़े जो हिसाब में |

 

छोडो न साथ जो पकड़ो हाथ एक बार 

दोस्ती सदा निभाना ख़ुशी में , अजाब में |

 

पहचान क्या करूं उनकी विर्क क्या कहूं 

जो चेहरा छुपाकर रखते नकाब में |

********************************************************************************************************************

धर्मेन्द्र कुमार सिंह 

जिसमें था फ़ायदा, लिया वो ही हिसाब में

यूँ तो लिखा हुआ था बहुत कुछ किताब में

 

नादान दिल कभी भी सुनेगा नहीं मेरी

मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में

 

पीके नज़र से उनकी हुआ जो नशा इसे

दिल ढूँढता है आज वही हर शराब में

 

जब जिस्म से लिबास हया का उतर गया

तब रूह ने छिपा लिया चेहरा नकाब में

 

चिनगी वो पहली आग की दिल में तड़प रही

यूँ तो तपिश है आज बहुत आफ़ताब में

********************************************************************************************************************

AVINASH S BAGDE 

दौरे-मोहब्बत में हो या इन्कलाब में.'

मै जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में.

अपने लिये तू जाके कोई घर तलाश कर

दो  पैर कैसे  आयंगे इक  ही जुर्राब में!

भ्रष्ट - आचरण का सफाया हो पेट से ,

आस है "अन्ना" के दिखाए जुलाब में.

फैले हुए हैं हाँथ हर इक वोट के लिये,

क्या फर्क रह गया है फकीरों-नवाब में?

दिन में सुकून रात का तलाश ना करो,

ढूंढो न चांदनी किसी भी आफ़ताब में!

'अविनाश' सैर बाग की कम ही किया करें,

कांटे भी छिप के बैठे है अब तो गुलाब में.

********************************************************************************************************************

N .B. Nazeel 

अल्लाह जो लिखे किस्मत की किताब में |
कोई  कमी  न  रहे  कभी  उस  हिसाब में ||

माना कि बहुत दिलकश अदा है जनाब में |
मालूम है  उसे  हम  भी  हैं  शबाब  में

ख़त  है  लिखा  उसे   इजहारे-इश्क  में पर ,
मै  जानता  हूँ  जो  वो  लिखेंगे जवाब  में||

उनसे  जुदा  हुआ , जिंदगी ही बिखर गई ,
बस   ढूंढता  रहा   उनको   मै  शराब  में ||

पाया   क्या  ,क्या   खोया  है   इश्क   में.
उलझा  रहूँ  इसी  अनसुलझे  हिसाब  में |

उसने  दिया  कभी  नजराना -ए- उंस मुझे,
है आज भी महक उस सूखे गुलाब में ||

वादा  करो  अगर  मुझसे  तो "नजील"मैं,
सोया   रहूँ  उम्र  भर  तेरे  ख्वाब  में

********************************************************************************************************************

rajesh kumari 

अरमान घुट रहे हैं यूँ दर्दे अज़ाब में 
ढूंढे कहाँ सुकूने दिल फरेबी सराब में

वो ले गया नींदे भी मेरी देखो लूट कर 
कैसे यकीं हो अब वो आएगा ख़्वाब में

शाखों से फूल तोड़ कर राहों में फेंक दो 
यूँ छोड़ दी कश्ती मेरी उसने सैलाब में

रोशन नहीं होती अब सितारों की महफिलें 
वो चाँद भी जा बैठा है देखो हिज़ाब में

मौसम तो बदलता है मेरा उसके ही आने से 
अब ख़ाक भी शौखी न बची रूहे शबाब में

ना नज्म ना मौसिक़ी ना ग़ज़ल अब कोई 
जब बरखे ही दफ़न हो गए दिल की किताब में

आगोश ए तसव्वुर में ही आ जाओ एक बार 
कुछ फर्क ना होगा तेरे हिज्रे हिसाब में

कैसे लिखूं अब ख़त कोई पूछता है दिल 
मैं जानती हूँ जो वो लिखेगा जबाब में

ये होगा मुहब्बत का सबब इब्तदा से जानती 
क्यूँ 'राज' ढूँढती वफ़ा इस जहाने खराब में !

********************************************************************************************************************

Sanjay Mishra 'Habib' 

बेदार हो के मुन्तजिर चला अज़ाब में |

वादा करे, नहीं मगर मिले वो ख्वाब में |१|

 

नीची नजर शरारती वो मुस्कुरा रहे,

मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में |२|

 

छू के महक उठा ये चमन गेसु शबनमी,     

के हुस्न यार का महक रहा गुलाब में |३|

 

उस्ताद खुश कि हो के मगन पढ़ रहां हूँ मैं,  

तस्वीर सनम की इधर छुपी किताब में |४|

      

है पूछना बहेच वजह जामबलब से,

क्यूँ छोड़ इश्क डूब रहा वो शराब में |५|

 

पाले हुए अभी तलक खिला पिला रहे,

शायद खुदा का नूर दिखे है 'कसाब' में ! |६|

 

संकल्प लें सभी कि जगायें सभी को हम; 

फंसना नहीं फजूल के लब्बो लुआब में |७|

 

माथे से लफ्ज चू कर पा तक पहुंच गये,

बनते नहीं अशार भटकता इताब में |८|  :))

 

चालाक है बड़े वो मेरा मुल्क लूटते,

वो जानते 'हबीब' है जाहिल हिसाब में |९|

*बहेच = व्यर्थ | जामबलब = पीने वाला |

********************************************************************************************************************satish mapatpuri 

लिख दूँ तो हाले दिल खतो - क़िताब में.

मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में .

लब भींच के हंसते हैं, बोलते नहीं.
जब भी हुई है बात, हुई है ख़्वाब में.

चाँद सा मुखड़ा है पर चाँद वो नहीं.
दिखता है दाग दूर से, माहताब में.

वोटर भी अबके उतने भोले नहीं रहे.
वो जानते हैं क्या छिपा, है आदाब में.

रोना कहाँ हंसना कहाँ , जानते हैं वो.
गिरगिट सा बदलने की अदा, है ज़नाब में.

दर- ब- दर क्यों ढुंढते महबूब को मियाँ.
दिखता है अक्स उनका, ग़ज़ल की क़िताब में.

********************************************************************************************************************

AVINASH S BAGDE 

वो मेरे और उनके मै  जाता हूँ ख्वाब में,

मै सोचता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में.

उल्फत में ज़माने का बता के यूँ डर मुझे,

काँटों की बात करते हो बज्मे-गुलाब में!

साकी से हाँथ छूते ही लगने लगा मुझे,

डूबी है सारी कायनात ज्यूँ  शराब में.

रह गए तड़प के जो  नज़रे नहीं मिली,

चिलमन में थे वो और थे हम भी नकाब में.

यारों ने आके तोडा जो यादों का सिलसिला,

हड्डी से जैसे लग रहे थे वो कबाब में!

********************************************************************************************************************

Mumtaz Aziz Naza 

हम भी ज़रा अनाड़ी हैं उल्फ़त के बाब में

कच्चे हैं थोड़े वो भी वफ़ा के हिसाब में 

देखे हैं कैसे कैसे हसीं रंग ख़्वाब में
कितने ही अक्स तैर रहे हैं हुबाब में 

क्या फायदा है ऐसी सहर से भी दोस्तों
अब तो सियाही दिखने लगी आफ़ताब में 

बढ़ चढ़ के काटते हैं दलीलें ख़िरद की हम
ज़िद का सबक़ पढ़ा है जुनूँ की किताब में 

राहत, सुकून, मस्तियाँ, बचपन, शबाब, घर
सामान कितना छूट गया है शिताब में 

अब तो कोई इलाज है लाजिम हयात का
कब तक सुकून पाते रहें हम अज़ाब में 

लिख तो दिया है हाल ए तबाही उन्हें मगर
"मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में " 

शायद ये तश्नगी का सफ़र मुस्तक़िल रहे
'मुमताज़ ' आज देखा है सेहरा जो ख़्वाब में 

बाब= पाठ, हिसाब= गणित, हसीं= सुन्दर, ख़्वाब= सपना, अक्स= प्रतिबिम्ब, हुबाब= बुलबुला, सहर= सुबह, सियाही= कालिख, आफ़ताब= सूरज, ख़िरद= बुद्धिमानी, जुनूँ= पागलपन, शबाब= जवानी, शिताब= जल्दी, लाज़िम= ज़रूरी, हयात= ज़िन्दगी, अज़ाब= यातना, तश्नगी= प्यास, मुस्तक़िल= लगातार, सेहरा= रेगिस्तान

********************************************************************************************************************

arun kumar nigam 

इक रोज रख गये थे वो दिल की किताब में

ताउम्र बरकरार है खुशबू गुलाब में.


कच्ची उमर की हर अदा ओ चाल नशीली
वो मस्तियाँ ना मिल सकीं कच्ची शराब में.


दोनों रहे गुरूर में हाय मिल नहीं सके
मैं रह गया रुवाब में और वो शवाब में.


आईना तोड़ देते हैं वो खुद को देख कर
वो कुछ दिनों से दिख रहे अक्सर हिजाब में.


कमबख्त नौकरी ने यूँ मजबूर कर दिया
बीबी से मुलाकात भी होती है ख्वाब में.


हुश्नोशवाब पर तो गज़ल खूब लिखी हैं
रोटी ही नजर आती है अब माहताब में .


दिल जोड़ना ही सीखा, धन जोड़ ना सके
नाकाम रह गये जमाने के हिसाब में.


पहले से खत जवाबी लिखके भेज दे ‘अरुण’
"मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में"

********************************************************************************************************************

satish mapatpuri 

चुपचाप रख दिया है ख़त उनकी किताब में . 
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में .


महफ़िल में शराफ़त से काम लीजिये हुज़ूर. 
थम्सअप को मिला लीजिये अपनी शराब में. 

भूल जाएँ सब, वो शख्स भूलता नहीं. 
जिसका रहा उधार कुछ भी हिसाब में. 

तेज लौ को देख खुश होइए नहीं. 
बुझने के पहले ऐसा ही होता चिराग़ में. 

महबूब के ईन्कार से होती है क्या जलन. 
वैसी जलन भला कहाँ होगा तेज़ाब में. 

मौक़ा मिले सबाब का तो लूट लीजिये. 
कुछ तो इज़ाफा होगा दीने निसाब में. 

मस्जिदे मंदर की जरुरत भला है क्या. 
पाकीज़ा मन तो कहीं बैठिये नमाज़ में.

********************************************************************************************************************

Ambarish Srivastava 


वो रोशनी सभी को मिले आफताब में, 

अहले वतन का महके पसीना गुलाब में. 

बाँटा हमें जरूर ये किससे करें गिला, 
लाखों हुए शहीद यहाँ इन्कलाब में. 

दिल मानता नहीं था मगर मैंने लिख दिया , 
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगें जवाब में. 

किसको नहीं खबर है कहाँ मुल्क जा रहा, 
लेकिन बजिद हैं लोग हिसाबो-किताब में. 

‘अम्बर’ को प्यार की ये जमीं  रास आ गयी, 
दिन को है आफताब शब–ए-माहताब में.

********************************************************************************************************************

Hilal Ahmad 'hilal' 


जब  हूँ  तुम्हारे  सामने  खुद  बेनकाब  मैं !

रखते हो अपने आप को तुम क्यूँ हिजाब मैं !!

क्या अपनी शोहरतों का तुम्हे दूँ हिसाब मैं !

उनकी  इनायतों  से  हुआ  कामयाब  मैं !!

 

दुनिया में क्या वुजूद बशर1 की हयात का !

जैसे  कोई  हुबाब2  समंदर  के  आब3 में !!

 

उनके जवाब का मै करूँ इंतज़ार क्यूँ  !

मै जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब मै !!

 

तुझसे बिछड़  के नींद मयस्सर नहीं मुझे !

किस तरह तुझको देखूं शबो रोज़ ख्वाब मैं !!

औराक़4  पर लिखा हुआ होगा हमारा नाम !

इक बार देखिये ज़रा दिल की किताब मैं !!

जुगनू सितारे शमअ  हिलाल5 और कहकशां !

 कितनो  के  नूर  क़ैद  है  इक आफताब6 मैं !!

********************************************************************************************************************

Arun Srivastava

वो दिन भले रहे जो वफ़ा थी हिजाब में
परदा हटा कि डूब चुके हम शराब में

वो तो जला चुका है सुगंधें बहार की
मैं सोचता हूँ फूल मिलेंगे किताब में

मैं बाटता रहा था खुशी घूम घूम कर
फिर यूँ हुआ कि डूब गया मैं अजाब में

वो तो सिले की बात कभी सोचता नहीं
है कर के नेकियाँ जो बहाता चनाब में

अपना पता लिखा न खतों में कभी उसे
मैं जानता हूँ वो जो लिखेंगे जवाब में

मैं जुगनुओं को कैद करूँगा नहीं कभी
कुछ रोशनी बची है मिरे आफ़ताब मे

********************************************************************************************************************

Ambarish Srivastava 

देशी को जो नकारे भला किसकी ताब में.

चीनी में है मज़ा वो कहाँ जो है राब में.

 

नाजुक बहुत हुजूर यहाँ दिल का मामला

इजहार कीजिये न मुहब्बत सिताब में,

 

जिन्दा हूँ आप से ही जुड़े दिल के तार हैं,

तशरीफ़ लाइएगा  कभी रात ख्वाब में,

 

कोई तो जिंदगानी में आ ही गया है जब

बनना नहीं मुझे कभी हड्डी कवाब में

 

माँगी जो इत्तला थी मिली आज तक कहाँ,

मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगें जवाब में.

 

‘अम्बर’ को आज इश्क तेरी रूह से सनम,

बेशक तेरा ये हुस्न न झलका हिजाब में.

********************************************************************************************************************

Seema agrawal 

तकदीर के सारे कमाल हैं नकाब में 
जैसे के चाँद बैठा हो छुप के हिजाब में 

हूँ मुन्तज़र उस दिन से ही जब दिल कह दिया 
मै जानता हूँ क्या वो लिखेंगे जवाब में 

उनकी समझ पे रो के या हँस के भी क्या करें 
जो ढूँढते हैं सुर की नज़ाकत गुऱाब में 

आँखों को हँसी ख़्वाब की दावत न दीजिये
खुशबू नहीं आती कभी नकली ग़ुलाब में 

जिनकी सिफ़त डूबी हैं सफ़ा ओ सबाब में 
उनको डुबो ना पाओगे ग़म के अज़ाब में 

जैसा नशा कविता ग़ज़ल या शायरी में है 
ऐसा नशा मिलेगा भला क्या शराब में..

********************************************************************************************************************

Tilak Raj Kapoor 

संदेश भेज दीजिये मौजे चिनाब में

है आज भी मुहब्‍बत गंगा के आब में।

 

जाना न फ़र्क जिसने लहू औ शहाब में

शामिल कभी हुआ न किसी इंकिलाब में।

शहाब (फ़ारसी) 'लाल रंग'

 

इक फ़ूल दे गया जो छुपा कर किताब में
उसने छुपा रखा था चेहरा, निक़ाब में।

 

भटका तमाम उम्र जो तेरे सराब में

थक हार कर वो डूब गया है शराब में।

सराब मृगतृष्‍णा

 

है इश्‍क भी अजब शै, जो इज्तिराब में
अक्‍सर बदल गया है किसी इल्तिहाब में ।

इज्तिराब बेचैनी, इल्तिहाब आग की लपटें

 

ऑंगन में छन के पेड़ से उतरी है चॉंदनी

देखा कभी न चॉंद को ऐसे हिज़ाब में।

हिजाब ओट, पर्दा

 

कहते हैं आप आपकी फि़त्रत बदल गयी

कुछ भी नया न हमको दिखा है जनाब में।

फित्रत स्‍वभाव

 

खत भी उन्‍हें लिखूँ तो भला किसलिये लिखूँ 
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में।

 

'राही' किसी से आप न शिकवा करें कभी

किस ने दिया है साथ किसी के अजाब में।

अजाब कष्‍ट

********************************************************************************************************************

विनोद अनुज

मैने पूछा सवाल कुछ उनसे है ख्वाब में

मैं जानता हूँ जो वो लिखेगें जबाब में

था जो लिखा हुआ खुशियों का पता यहाँ
गुम हो गया कहाँ वही पन्ना किताब में?

है धड्कनें तेरी बिखरी मेहफिल में
छुपा न पाएगा खुदको तू नकाब में

थी भूल एक छोटी उछाले जो बारबार
जो लाख अच्छा किया न आया हिसाब में

क्या खौफ है उसे कभी कुछ लुट जाने का?
'अनुज' जी रहा सदा यहाँ है अभाब में

********************************************************************************************************************

harkirat heer


बहता है लहू अब भी मिरा इस चनाब में .....



मत पूछ रुदादे इश्क़,रहा किस गिर्दाब में  
बहता है लहू अब भी मिरा इस चनाब में



अजीब शै है मोहब्बत ,मिल जाये तो हसीं 
फूल  वर्ना सूखा गुलाब , किसी किताब में


घबरा न यूँ अय  दिल , ख़त के इंतजार में 
''मैं जानती हूँ जो वो ,  लिखेंगे जवाब में ''



पढ़ सको तो पढ़ लो नजरों से दिल हमारा 
लब तो खामोश रहेंगे इश्क़ के हिजाब में



तुझसे की मोहब्बत औ' बदनाम हो गए हम 
आज लफ्ज़ 'बेहया' का मिला है खिताब में


दिल धड़कना संभल  के,ठहर गईं हैं सांसें 
बैठे हुए हैं जब से , वो आकर ख़्वाब में


'हीर'इश्क़ है अलालत तिश्नगी की ये  ऐसी 
जो बुझाये नहीं बुझती किसी भी तलाब में


रुदादे इश्क़- इश्क़ की कहानी , गिर्दाब-भंवर, हिजाब- लज्जा ,
अलालत-बीमारी, तिश्नगी-प्यास

********************************************************************************************************************

Yogendra B. Singh Alok Sitapuri 

ऐसी नफासतों की अदा है ज़नाब में

जैसी न रही होगी किसी भी नवाब में

 

बोतल में बंद लाल परी को सलाम कर

उभरा न ज़िंदगी में जो डूबा शराब में

 

तुमने जो रुख से पर्दा हटाया तो देख लूं

शरमा के कैसे चाँद छुपा है नकाब में

 

काले सुराख से ही निकलती है रोशनी

रोशन है हर्फ़-ए-स्याह हमारी किताब में

 

माले-ए-हराम मुफ्त का खाते रहे मियां

हो हाज़मा दुरुस्त करारे जुलाब में

 

पूजा नमाज़ दोनों में है तेरी बंदगी

फिर क्यों लगे हैं लोग सवाल-ओ-जवाब में

 

'आलोक' इन्कलाब सियाही में आजकल

लिपटा कोई हिजाब में कोई खिजाब में.

********************************************************************************************************************

Shanno Aggarwal 

ऐश वो रहे नहीं जिंदगी की रकाब में

ना ही असर है कोई उनके रुआब में

.

बस नाम रह गया पर रूतबा नहीं रहा   

अब बात ना वो रही किसी नबाब में l

 

जिंदगी में उलझनें बढ़ती ही जा रहीं    

गलतियाँ भी होती हैं कभी हिसाब में l

 

खिले थे फूल चमन में कितने तरह के

पर हम ढूँढते खुशबू रहे चंपा-गुलाब में l

 

इंसा ने पर्दा फाश किया जाके मून का

ना वो बात रही तब से है माहताब में l

 

कुरबतें बदल रहीं जमाने की सोच पर

मिलता नहीं सुकूं किसी को अहबाब में l

 

सितारों की मजलिस लगी स्याह रात में

पर अफ़सुर्दा चाँदनी थी छिपी हिजाब में l

 

माँ-बाप ने जिस पे किया नाज़ बहुत ही   

पढ़-लिख के ऐंठ आ गयी उन जनाब में l

 

चांटा जो पड़ा गाल पे तो हाथ ना उठा

दूसरा भी गाल कर दिया आगे जबाब में l

 

सरफ़रोशी की तमन्ना करी थी जिन्होनें    

वो शहीद हो गये वतन पे इंकलाब में l

 

हर बात तो लिखी नहीं होती किताब में

कुछ लोग होते आदतन हड्डी कबाब में l

 

हमें इंतज़ार मौत का रहता है जन्म भर   

फिर क्या मज़ा रखा किसी असबाब में l

  

पूछो किस तरह का दिल होता कसाब में

मैं जानती हूँ जो वो लिखेंगे जबाब में l

 

********************************************************************************************************************

Harjeet Singh Khalsa 

मिलना उनसे वो भी अदब-ओ-अदाब में,
जी चाहता है आग लगा दूँ नक़ाब में......[1]

उनके खतों का मुझको इंतज़ार यूँ नहीं,
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगें जवाब में....[2]

इक बार उनकी आँखों से पीकर जो देख ली,
फिर वो नशा नहीं मिला किसी भी शराब में...[3]

दिल को जो है समझना तो दिल में उतर के देख,
ये ज़ज़बा वो नहीं है जो लिखें हम किताब में....[4]

दुनिया के ज़ख्मो का जब हमने नहीं रखा,
कैसे रखे तुम्हारे सितम फिर हिसाब में.....[5]

या रब वो कब मिले है हमें आकर के रूबरू,
बस मिलते है तसव्वुर में या मेरे ख्वाब में.... [6]

*******************************************************************************************************************

AVINASH S BAGDE 

देह की मंडी में या डूबी शराब में!!

कलयुग की मस्तियाँ हैं यूँ पूरे शबाब में!!

आई जो उनकी याद तो नश्तर चुभो गई,

धोये है चश्म हमने तो अश्कों के आब में..

जुल्फों पे नाज़नीनो के करना नहीं यकीन,

रखतें हैं गेसुओं को वो अक्सर खिजाब में!

अपनी जमीं पे शेर  रही टीम-इण्डिया,

आ   फंसी  है देखिये दौरे-ख़राब में!!

ओहदे ने  उनसे आँख जो  फेरी है या खुदा,

आई कमी बला की है उनके रुआब में.

लिखकर मै तुमको देता हूँ होशो-हवास में,

मै सोचता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में.

दिल की लगी को दिल्लगी कहतें है बारहा!

पर पाक इबादत है ये मेरे हिसाब में.

नफरत के बीज बो के भला कौन है अविनाश?

गिनती हमेशा होती है उनकी ख़राब में!

********************************************************************************************************************

N .B. Nazeel 

रखने लगे है वो शायद खुद को हिजाब में |
दिखते  नहीं  तभी अब  वो  माहताब में ||

बस सोचता रहूँ कि मिटेंगे नहीं कभी ,
हैं फांसले बड़े अब मुझ में ,जनाब में ||

हक़ है ख़ुशी  मिरा , तू ही बता मुझे ,
आखिर क्यों जीता रहूँगा मै अज़ाब में ||

हर तरफ से घिरा बादलों में , क्या हुआ ,
है रोशनी अभी तक इस आफ़्ताब में ||

ख़त खून से लिखूं कि स्याही से ,फर्क नहीं ,
मैं  जानता हूँ  जो वो  लिखेंगे जवाब में ||

दोस्त कहें "नजील" यूँ खुदकशी न कर,मगर ,
मैं  जानता  नहीं  स्वाद कैसा  है  शराब में ||

********************************************************************************************************************

SURINDER RATTI  

बोले न मुंह से लिखे माही किताब में 

मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में 

जगमग हुआ है दिल कितने दिन के वास्ते 

महका खिला ये गुल उजड़े से सराब में

 

वो ऐब को हुनर कहते हैं सही नहीं 

मय लुत्फ़ दे मगर खुमारी शबाब में 

नाशाद दिल किसी दिन टूटे यक़ीन हैं 

तदबीर ढून्ढ लो इस पल तुम अज़ाब में 

हैवान, तिशन-ए-खूं सियासत पसंद जो 

फिर मुल्क लूटेंगे सब इस इन्तखाब में 

रहमो-करम दुआ करना भूल सा गये

तहज़ीब की झलक मिले "रत्ती" अब ख़ाब में     

********************************************************************************************************************

Mukesh Kumar Saxena

ज़रूरत क्या है चंदन की बागे गुलाब में .
इज़ाफ़ा इत्र से होता नहीं उनके शबाब में.

मुस्कराते हैं वो भी मुस्कराहट के ज़बाब में .
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे ज़बाब में.

नहीं है फायदा कोई भी खुश्बू मिलाने से .
सुना है एक मछली आ गयी है इस तलाब मे.

मौज़ूदगी किसी भी अज़ीज़ शक्स की.
दो प्रेमियो को लगती है हड्डी कबाब में.

इशके हकीकी का नशा लग गया जिसको .
आता नहीं उसको मज़ा साकी ओ शराब में.

मोड़ देते है तूफ़ानो को जिनके दिल में कुब्बत है.
मगर कमज़ोर बह जाते है मामूली बहाव मे.

शर्म से बात दिल की रु-ब-रु कह पाए न हमसे
छिपाया कुछ नहीं हमसे वो आये जो ख्वाब में

निकाला नुक्स है घोड़े में जिस आली जनाब ने .
नहीं सीखा है उसने पाँव भी रखना रकाब में. .

करोडो खर्च करते हो तुम जिसके रख रखाव में .
लेके आये हो तुम मुल्क को यह किस अज़ाब में.

एक मुजरिम है वो इंसा कोई पीर नहीं है .
क्यों ढूँढ़ते हो फ़रिश्ता तुम अजमल कसाब में.

नहीं झुकता है ये सर किसी भी बेजा दबाव में.
या गल्तियों से या अदब से मुर्शिद के रुआब में.

********************************************************************************************************************

arun kumar nigam 

उमर ढली पर अभी भी दिखते शवाब में

ये काली जुल्फें रँगी हैं जब से खिजाब में.

कवाब, हड्डी, कलेजी, कीमा हर एक दिन
उन्हें यकीं है बड़ा ही यारों जुलाब में.

मिली वसीयत में भारी दौलत नसीब से
समय बिताने पकड़ते मछली तालाब में.

व्ही.आर. लेने की सोचता हूँ मैं आजकल
मजा नहीं रह गया जरा भी है जॉब में.

सलाम ठोकूँ क्यों डाकिये को बिना वजह
"मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में"

 

 

Views: 2360

Reply to This

Replies to This Discussion

आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच-777-:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

ek hi misra ek hi manch itni saari ghazal ek saath maja aa gaya dekh kar.bahut achcha laga.

भाई राणा जी, ओ बी ओ सीखने सिखाने का मंच है
आपको "लाल - हरा" सूचक  का प्रयोग निः संकोच करना चाहिए था
जिन्होंने शेर बह्र में कहे हैं उनको  प्रोत्साहन/सम्मान मिलाना ही चाहिए
सादर

मैं वीनस जी की बातों का अनुमोदन करता हूँ.  लाल-हरा रंग की परिपाटी प्रारम्भ होते ही खत्म न हो जाये. इस परिपाटी को अपने तईं वीनसजी ने शुरू किया था जिसे राणाजी ने पिछले तरही मुशायरे में स्पष्टतः एक नई ऊँचाई दी थी. इस परिपाटी ने नये शायरों का कितना भला किया है या कितना भला कर सकती है इस पर चर्चा हो चुकी है. और, मैं स्वयं ही उक्त परिपाटी का ज्वलंत उदाहरण हूँ.

यदि कुछ बातें हुईं जिनकी अग्रजों और जानकारों से जानकारी मिले तो यह ’सीखने-सिखाने’ की परम्परा को और सुगठित करेगी. सम्यक, सकारात्मक और सार्थक बहस तथा किसी विन्दु पर मनन-चिंतन किसी लिखे का अपमान नहीं, पाठकों और नये शायरों के लिये पाठशाला होगी.

सधन्यवाद.

सौरभ जी, अनुमोदन के लिए धन्यवाद

वाह! वाह! बढ़िया संकलन बन गया आदरणीय राणा जी...

लाल हरा सूचक के सम्बन्ध में आदरणीय वीनस जी और आदरणीय सौरभ बड़े भईया जी की बातें अत्यंत महत्वपूर्ण और समर्थनीय है...

यह न केवल सीखने वालों को रास्ता दिखाता है बल्कि शिल्प संबंधी त्रुटियों को सुधारने का यह एक दमदार वसीला है...

सादर बधाई/आभार.

जय ओ बी ओ

मुझ तक कब उनकी बज़्म में आता था दौर-ए-जाम 
साक़ी ने कुछ मिला न दिया हो शराब में 

ग़ालिब चचा का ये शेर पढता हूँ तो झूम जाता हूँ 

जो जाम कभी न आया, वो आज आया है ... आया है यानी आज जरुर साकी ने कुछ मिलाया है 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय जी  इस दिलकश ग़ज़ल के लिए दिल से मुबारकबाद सर"
23 minutes ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया और सुझाव  का दिल से आभार । प्रयास रहेगा पालना…"
25 minutes ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार । भविष्य के लिए  अवगत…"
27 minutes ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय  अशोक रक्ताले जी सृजन को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार । बहुत सुन्दर सुझाव…"
32 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. शिज्जू भाई,एक लम्बे अंतराल के बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ..बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है.मैं देखता हूँ तुझे…"
3 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . लक्ष्य

दोहा सप्तक. . . . . लक्ष्यकैसे क्यों को  छोड़  कर, करते रहो  प्रयास । लक्ष्य  भेद  का मंत्र है, मन …See More
5 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज जी, ओबीओ के प्रधान संपादक हैं और हम सब के सम्माननीय और आदरणीय हैं। उन्होंने जो भी…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय अमीरुद्दीन साहब, आपने जो सुझाव बताए हैं वे वस्तुतः गजल को लेकर आपकी समृद्ध समझ और आपके…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सुशील भाई , दोहों के लिए आपको हार्दिक बधाई , आदरणीय सौरभ भाई जी की सलाहों कर ध्यान…"
6 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । "
7 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।... मतले पर…"
7 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service