For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओपन बुक्स आन लाइन, लखनऊ चैप्टर की मासिक काव्य गोष्ठी दिनांक 22 फ़रवरी 2015 पर एक रिपोर्ट

       

     मुख्य संयोजक आदरणीय शरदिंदु मुखर्जी और महनीया कुंती मुखर्जी की अनुपलब्धता के कारण ओपन बुक्स आन लाइन, लखनऊ चैप्टर की मासिक काव्य गोष्ठी गत माह की भांति इस माह भी डा0  गोपाल नारायण श्रीवास्तव के संयोजन और संचालन में दिनांक 22 -02 -2015 को  सेंट्रल आइडिया आफिस, द्वितीय तल एवं द्वितीय लेन, करामत मार्केट,  निशातगंज, लखनऊ में यथा पूर्वसूचना सायं 2 बजे से प्रारंभ हुयी I गोष्ठी की अध्यक्षता वीर-रस के सिद्धहस्त कवि आत्म हंस मिश्र ‘वैभव’ ने की I काव्य-पाठ और सरस्वती-वन्दना से पूर्व अध्यक्ष महोदय द्वारा माँ सरस्वती की प्रतिकृति पर माल्यार्पण किया गया और सभी उपस्थिति कवियों ने माँ के चरणों में फूल चदाये I कार्यक्रम में निम्नांकित महानुभावो ने भाग लिया I

  सर्व श्री/

1- आत्म हंस मिश्र वैभव             अध्यक्ष

2- डा0 गोपाल नारायन श्रीवास्तव               संचालक/संयोजक

3- डा0 एस सी ब्रह्मचारी

4-- केवल प्रसाद सत्यम

5-पवन कुमार

6-अमित ‘सौम्य’

7-रोमेश रंजन

       गोष्ठी का प्रारंभ माँ सरस्वती की वन्दना से हुआ I  श्री आत्म हंस मिश्र ‘वैभव’  ने अपने ओजपूर्ण स्वर में माँ को समर्पित अपने मधुर गीत से वातावरण को भक्ति-रस-मय कर दिया I तदनंतर केवल प्रसाद सत्यम ने  गीत, अतुकांत और छंद सुनाकर सभी का सुन्दर मनोरंजन किया I  उनके द्वारा पढा गया दुर्मिल सवैय्या निम्न प्रकार है –

 

                         समिधा सम दुर्गति नष्ट करे सत पुष्ट करे अति पावन हो

                         मन उज्जवल हो तब दान सधे तपनिष्ठ रहे मन पावन हो

                        अति दीन मलीन, कुलीन बने सुविचार दया गति पावन हो

                        नर-नारि  सदा समभाव रहे  हर काम दशा रति पावन हो  

 

          कवि और सम्मानित वैज्ञानिक डा0 एस0 सी0 ब्रह्मचारी ने इंसान की तलाश में अपने और अपने मन के पागलपन को बड़ी सुविचारित अभिव्यक्ति प्रदान की -

 

                                मंदिर द्वारे सुबह गुजारी

                                    मस्जिद  द्वारे  शाम ढली

                                         मिला न इंसा मुझको कोई

                                                जाने  कैसी  हवा  चली

                             आयेगी अब ऐसी बेला होगी जग से चला चली

                              मै पागल मेरा मन पागल ढूंढें इंसा गली गली

 

     जनपद गोरखपुर से आकर संकल्प के धनी युवा कवि पवन कुमार ने इस कार्यक्रम को अंतर्जनपदीय बना दिया I आसन्न होली के वातावरण से आलोड़ित कवि पवन ने फागुन की आहट अपने अंतर्मन से सुनी और उसे निम्नांकित रीति से रूपायित किया –

  

                                                     अंतर्मन  ने  राग सुनाया

                                                    देखो फिर से फागुन आया

 

                                                      धरती ओढ़े चादर धानी

                                                     पंछी  कहने लगे कहानी

                                                    अम्बर ने भी रस बरसाया

                                                    देखो फिर से फागुन आया

 

     संचालक डा0 गोपाल नारायन श्रीवास्तव ने माँ गंगा की व्यथा पर आधारित एक फैंटेसी ‘नारी आत्मा के स्वर‘ तथा ‘अनुभव’ शीर्षक से सजी एक अतुकांत कविता सुनायी और दो सुन्दर गीतों का भी सास्वर पाठ किया I उनके गीत ‘फिर वही अभिशाप’ की बानगी प्रस्तुत है-

  

                           यक्ष का  सन्देश लेकर  घिर उठी  काली घटाएं

                           रो रहा है  करुण बादल  गूंजती   सारी दिशायें

                           वृक्ष पर है  मौन चातक  दूर नभ में  लौ लगाए

                          खिलखिलाती बिजलियाँ भी व्यंग्य करती है हवाएं

                                                 तुम अकेले   ही नही हो   विश्व में   संताप मेरे

                                          फिर उभर आये क्षितिज पर क्यों वही अभिशाप मेरे ?  

 

    अंत में अध्यक्ष आत्म हंस मिश्र ‘वैभव’ जो न केवल वीर-रस के सिद्ध हस्त कवि है अपितु देश के पूर्व प्रधान-मंत्री माननीय अटल बिहारी बाजपेयी से एकाधिक बार पुरस्कृत भी हो चुके है और कवि समूह में ‘ज्वाला’ के कवि के रूप में प्रतिष्ठित हैं, उन्होंने श्रमिको के महत्त्व को प्रतिपादित करती अपनी कविता में श्रमिको को विधाता के रूप में परिकल्पित किया I निदर्शन निम्न प्रकार है –

 

                              श्रम का प्रकाश  बिखराते तुम  चारो ओर

                              तुम ही प्रदीप्त  तुम ही तो  दिनमान हो

                              श्रम से बनाते तुम जड़ को भी चेतन और

                             गढ़ते  नवीन  तुम  नित्य  प्रतिमान हो

                             विश्व सारा याचक बना है खडा तेरे द्वार

                             तुम  वरदानी  करते  जो  श्रमदान  हो

                             तुमको विलोक कर ‘वैभव’ यह कहता है

                             तुम हे श्रमिक ! विधाता  के  समान हो

 

        इस प्रकार सायं 6 बजे तक चली गोष्ठी का अवसान अध्यक्षीय भाषण के उपरान्त संयोजक गोपाल नारायन श्रीवास्तव के आभार ज्ञापन के साथ हुआ जिन्होंन सभी कवियों के योगदान को सराहा और अंततः कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा की I इति I

(मौलिक व् अप्रकाशित )

Views: 1434

Reply to This

Replies to This Discussion

लखनऊ चैप्टर की मासिक काव्य गोष्ठी का अपना एक अलग ही प्रभाव है।
यहां उपस्थित होकर आप सभी महानुभावों से बहुत से अनुभव प्राप्त होते हैं, ये चंचल मन कुछ पल स्थिर होकर सबकुछ समेट लेना चाहता है।
आदरणीय, आपके संयोजन और संचालन में मासिक काव्य गोष्ठी हर बार की तरह इस बार भी अपने उसी लय में था व बहुत ही आनन्द आया। हार्दिक आभार!

प्रिय पवन

गोष्ठी की सफलता आप और केवल कुमार जैसे प्रतिबद्ध सहभागियों  की वजह से है  i वरना  अग्रज शर्दिन्दुजी की अनुपस्थिति में इसे  प्रवाहमय रख पाना संभव न होता i आप गोरखपुर से आते है i लखनऊ चैप्टर के लिए यह फक्र  करने की बात है  i सस्नेह  i

आदरणीय, ये आप सभी के स्नेह का ही परिणाम है कि मैं काव्य गोष्ठी में उपस्थित होकर अपने आप को प्रबल करने की कोशिश करता हूँ   ! ऐसे ही सस्नेह वरद हस्त बनाए रखिएगा ! सादर !

ओबिओ के हर आयोजन में, मैं उपस्थित होना चाहता हूँ आ. गोपाल जी, पर क्या करें घर से दूर हैं और क्लास भी करनी होती है अतः मैं अनुपस्थित होने का छ्माप्रार्थी हूँ |

प्रिय  महर्षि

आपका इस मंच पर स्वागत है i  आप अपने क्लास को महत्त्व दे  कविता के लिए तो उमर पडी है i आप हम से दूर नहीं है  i यदि आप् काव्य  गोष्ठी की रिपोर्ट पर अपनी प्रतिक्रया देते है तो आप हमसे जुड़े  हुए है  i बिहारी को दोहा समर्पित है -

कहा भया  जो बीछुरे  तो मन मो मन साथ

उडी जात कितहूँ गुड़ी तऊ उड़ायक हाथ

हम बिछुड़ गए तो क्या हुआ  तुम्हारा और मेरा मन तो साथ है  i पतंग कही भी उड़े पर उसकी डोर तो उड़ाने वाले के ही हाथ में है i

सस्नेह i

बहुत सुन्दर आ.गोपाल जी ,आप की छवि निराली है ,जवाब भी दोहों में ,,,आप लोगों से जुड़कर मैं गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ ,,सादर धन्यवाद आप सभी को |

यह बात सत्य ही है कि आपकी लगन, परिश्रम व विवेक से ही ओ.बी.ओ. की मासिक गोष्ठी में चार चॉंद लग जाते हैं। जिसके कारण ही करामत मार्केट के आंगन में अदृश्य करामात से मासिक काव्य दरबार में नौ रसों का संयोजन, अलंकरण सहित सरसता व माधुर्य भर जाता है।   उप-िस्थत कविगणों के हृदयों को आलौकिक आनन्द से अभिभूत करके सदैव के लिए घर कर जाती है।  जिसके लिए आप और केवल आप ही बधाई के पा़त्र हैं,, शेष हम सब तो मंच के कठपुतली सदृश्य ही हैं। कार्यक्रम की सफलता हेतु आपको एक बार पुन: हार्दिक बधाई। हॉं ...मेंरा दुर्मिल सवैया......कुछ ऐसी है-

// समिधा सम दुर्गति नष्ट करें, सत पुष्ट करें अति पावन हो।

मन उज्वल हो कर दान सधे, तपनिष्ठ रहें मति पावन हो।।
अति दीन मलीन कुलीन बनें, सुविचार दया गति पावन हो।
नर-नारि सदा सम ज्ञान रहें, हर काम-दिशा रति पावन हो।।//

 

आ०  केवल जी

मुझे याद नहीं कभी आपने ओ बी ओ की काव्य गोष्ठी में शिरकत न की हो  i बल्कि आपका रुझान सदैव सहयोगात्मक रहा i आप ओ बी ओ लखनऊचैप्टर  क्वे अपरिहार्य अंग है i मैं आपकी प्रतिबद्धता के समक्ष नतमस्तक हूँ i  सादर i

आदरणीय गोपाल नारायण जी, आपके विद्वत्तापूर्ण संयोजन कला और अन्य सभी प्रतिभागी सदस्यों/अतिथि कविगणों के संयुक्त प्रयास से ओ.बी.ओ. लखनऊ चैप्टर की मासिक गोष्ठी जिस साफल्य के साथ आयोजित की जा रही है वह प्रशंसनीय है. मैं साधुवाद देता हूँ भाई पवन कुमार जी और महर्षि त्रिपाठी जी को जिन्होंने अपने विचार व्यक्त कर इस आयोजन के प्रति अपनी निष्ठा और प्रेम का परिचय दिया है. आशा करता हूँ कि नयी पीढ़ी के चिंताशील रचनाकार इस मंच से ऐसे ही जुड़ते रहेंगे और इसे अपनी सार्विक सक्रियता से सदैव समृद्ध करते रहेंगे. मुझे खेद है कि व्यक्तिगत व्यस्तता के कारण पिछले दो आयोजनों में सम्मिलित नहीं हो सका. आप सब इस आयोजन को जीवंत रखें और नयी दिशा दें, ईश्वर से मेरी ऐसी ही प्रार्थना है. हार्दिक शुभकामनाएँ. सादर.

आदरणीय अग्रज

पिछले दो गोष्ठियों में हमने किस कदर आपको और मैडम जी  को मिस किया ,यह हमी जानते है  i आपका मार्ग दर्शन , आपकी प्रेरणा और आपका आशीर्वाद सदैव मेरे साथ रहा  i  मैं माध्यम बना रहा  i कार्य स्वतः होता गया  i अब आप आ गए है  i हम आपके अनुगत है  i  सादर i

आदरणीय गोपालनारायनजी, गोष्ठी का सफल आयोजन संलग्न सदस्यों की मानसिक परिपक्वता का ही परिचायक है. मैं सभी उपस्थित सदस्यों के प्रति सादर भाव रखता हूँ.

आदरणीय शरदिन्दुजी से फोन पर हुई बातचीत के क्रम में इस तथ्य पर अवश्य बातें हुई हैं कि कैसे ओबीओ की मासिक गोष्ठी बिना किसी लाग-लपेट के निरंतर अयोजित हो रही है. इसका श्रेय सामुहिक संलग्नता को ही है. जो सदस्यों को समवेत जोड़ती है.
सादर बधाइयाँ और शुभकामनाएँ  

आदरणीय सौरभ जी

आपका आशीष भी हमारे साथ है जो हर गोष्ठी के रिपोर्ट पर अनिवार्य् रूप  से हमें मिलता है i सादर i

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"वाह, हर शेर क्या ही कमाल का कथ्य शाब्दिक कर रहा है, आदरणीय नीलेश भाई. ंअतले ने ही मन मोह…"
1 hour ago
Sushil Sarna posted blog posts
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"कैसे क्यों को  छोड़  कर, करते रहो  प्रयास ।  .. क्या-क्यों-कैसे सोच कर, यदि हो…"
2 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"  आदरणीय गिरिराज जी सादर, प्रस्तुत छंद की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. सादर "
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"  आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, वाह ! उम्दा ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विविध
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सभी दोहे सुन्दर रचे हैं आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर "
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . उल्फत
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय नीलेश भाई , खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई आपको "
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय बाग़पतवी भाई , बेहतरीन ग़ज़ल कही , हर एक शेर के लिए बधाई स्वीकार करें "
7 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । आपके द्वारा  इंगित…"
10 hours ago
Mayank Kumar Dwivedi commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"सादर प्रणाम आप सभी सम्मानित श्रेष्ठ मनीषियों को 🙏 धन्यवाद sir जी मै कोशिश करुँगा आगे से ध्यान रखूँ…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय सुशील सरना सर, सर्वप्रथम दोहावली के लिए बधाई, जा वन पर केंद्रित अच्छे दोहे हुए हैं। एक-दो…"
14 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service