आदरणीय साथिओ,
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' ढहते किले का दर्द ' के अंतर्गत
मौलिक एवम अप्रकाशित )
अभियान
" निचले तबके की किशोर बच्चिओं की जागरूकता के अभियान के अंतर्गत इस कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है . कार्यक्रम प्रभावी और आकर्षक होना चाहिए . सरकार की तरफ से पैसे की कोई कमी नहीं आने दी जायेगी .किशोरिओं की जागरूकता के लिए सर्व शिक्षा अभियान का यह एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम है .".
" जी मैडम !"
" और हाँ , मेरे अलावा बड़े अधिकारी भी इस कार्यक्रम में उपस्थित हो सकते हैं , कार्यक्रम के प्रेजेंटेशन में इस बात का ध्यान जरूर रखें ."
." वेलकम मैंम , आप निश्चिन्त रहें . आप तो इस कार्यक्रम में पधारें हीं और साथ ही बड़े अधिकारिओं को भी अपने साथ लाएँ . इससे कार्यक्रम और भी प्रभावी हो जाएगा , आखिर यह बालिकाओं की जागरूकता का प्रश्न है . सही बच्चों तक सही संदेश पहुँचें , इस भावना का पूरा ध्यान रखा जाएगा , विभाग जब इतना पैसा खर्च कर रहा है तो उसका असर भी तो दिखना चाहिए ."
" ठीक समझे आप ."
तय समय पर कार्यक्रम शुरू हुआ . कार्यक्रम की रूप रेखा के अनुरूप आयोजन की व्यवस्था की गयी परन्तु अधिकारिओं में से कोई उपस्थित नहीं था . संचालक चिंतित हो गया . कार्यक्रम की गरिमा के लिए उसने अधिकारी मैडम को फोन मिलाया , " मैंम ! आप कब पहुँच रहीं हैं , प्रोग्राम शुरू करने में देर हो रही है ? "
" मिस्टर वर्मा , आफिस की गाड़ी को डायरेकटर साहब ले गए हैं , देर से आ पायेंगें , डिप्टी डायरेकटर साहब के साथ मैं इसी इन्तजार में हूँ कि आप हमारे लिए गाड़ी की व्यवस्था करके तुरंत भेज दें ."
" मैंम ! बजट मैं तो ऐसा कोई प्रावधान है नहीं , तो फिर व्यवस्था कहाँ से हो सकती है ."
" मिस्टर वर्मा , आपकी मासूमियत कबीले तारीफ़ है . हमारे विभाग में कभी - कभी न जाने कहाँ से अनुभव हीन व्यक्ति आ जाते हैं , बेहतर होगा कि ऐसे लोग कहीं और नौकरी ढूण लें ."
उसकी इच्छा हुई कि वह किशोरिओं के हिस्से के सारे अधिकार अपने अधिकारिओं को सौंप दे .
सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
अच्छी लघुकथा है आ० सुरेन्द्र कुमार अरोरा जी, बधाई प्रेषित है.
आदरणीय सुरेन्द्र जी, बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है आपने. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. सादर
डगमगाता वर्तमान
"सच कहूं तो ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे चार सौ मीटर के ट्रैक पर तुम्हारे पैरों की ताल से संगीत सा बज रहा है, कितना तेज़ दौड़े हो! ओलम्पिक स्वर्ण की दौड़ और तुम्हारी दौड़ में केवल पांच सेकंड का अन्तर रहा। तीन साल पहले यह तेज़ी थी तो अब क्या न होगी! तुम बहुत आगे जाओगे।"
मोबाइल फ़ोन पर वीडियो देखते हुए उसने बच्चों की तरह किलकारी मारी और अपने धावक मित्र को गले लगा लिया।
मित्र लेकिन प्रसन्न नहीं था, उसने दुखी स्वर में उत्तर दिया, "दो साल यूनिवर्सिटी को जिताया, पिछले साल भी कांस्य पदक मिला, लेकिन इस बार टीम में मेरा चयन ही नहीं हुआ, आगे क्या ख़ाक जाऊँगा?"
"क्यों!" वह भौचंका रह गया।
"हर जगह पक्षपात है, दौड़ते वक्त दो कदम लाइन से बाहर क्या चले गए तो पिछली सारी दौड़ भूल गए, कह दिया 'भाग मिल्खा भाग' ।"
"भाग मिल्खा...! यह तो फिल्म का नाम है, तो और क्या कहना चाहिये?" उसने जिज्ञासावश पूछा
थके हुए चेहरे पर सुस्त पड़ती आँखों से धावक मित्र ने उसे देखा और फिर भर्राये हुए स्वर में कहा, 
"काश! दौड़ मिल्खा दौड़ कहते।"
(मौलिक और अप्रकाशित)
बहुत देर की मेहरबाँ आते आते. अच्छी लघुकथा है भाई चन्द्रेश कुमार छतलानी जी बधाई स्वीकार करेंI
आपके आशीर्वाद हेतु सादर आभारी हूँ आदरणीय सर| तीन दिनों से कहीं व्यस्त चल रहा हूँ, इसलिए देरी हो गयी, क्षमा चाहता हूँ| चलते-फिरते पढ़ तो रहा था, लेकिन पोस्ट अभी कर पाया|
आदरणीय चंद्रेश जी, बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है आपने. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. सादर
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