For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-152

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 152 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है |

इस बार का मिसरा जनाब 'मजरूह' सुल्तानपुरी साहिब की ग़ज़ल से लिया गया है |

'लोग साथ आते गये और कारवाँ बनता गया'

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

2122 2122 2122 212

बह्र-ए-रमल मुसम्मन महज़ूफ़

रदीफ़ --बनता गया

क़ाफ़िया:-(आँ का)
गुलसिताँ, आशियाँ,दास्ताँ, राज़ दाँ, दरमियाँ आदि

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी | मुशायरे की शुरुआत दिनांक 24 फरवरी दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 25 फरवरी दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |

एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |

तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |

शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |

ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |

वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें

नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |

ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 24 फरवरी दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक...

मंच संचालक

जनाब समर कबीर 

(वरिष्ठ सदस्य)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 5334

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरणीय अमित जी नमस्कार

अच्छी ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार कीजिये

अमित जी की बातों से सहमत हूँ

डायरी वाला शेर क़ाबिले तारीफ़ है

सादर

आदरणीय रिचा ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया और हौसला अफजाई के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद

आदरणीया* रिचा जी*

आदरणीय अमित जी  ग़ज़ल के  हेतु बधाई स्वीकार करें ।

कहकशां स्त्रीलिंग शब्द है तो शेर पर पुनर्वििचार कर सकते हैं गिरह के  शेर में लय बाधित लगी  देखियेगा । सादर 

आदरणीय रवि शुक्ला जी गजल पर प्रतिक्रिया और हौसला अफजाई के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद ।

गिरह के शेर को लिखने का मैंने पुनः प्रयास किया है कृपया देखिएगा।

बस मुहब्बत का सलीका सीखने के वास्ते,
लोग साथ आते गये और कारवाँ बनता गया।।७।।

कहकशां स्त्रीलिंग शब्द है_ आपने सही फरमाया पुनः प्रयास करुंगा। आभार 

जनाब अमित कुमार 'अमित' जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का प्रयास अभी समय चाहता है, कुछ बातें Euphonic amit जी बता चुके हैं कुछ जो रह गई हैं मैं बता देता हूँ ।

'खुशगुमां इतना हुआ मैं बदगुमाँ बनता गया'

इस मिसरे में सहीह शब्द "ख़ुशनुमा" है ।

'इस वहम में पन्ना पन्ना राज दाँ बनता गया'

इस मिसरे में सहीह शब्द है "वह्म" 21

आदरणीय समर कबीर साहब चरण स्पर्श।  आपके सुझाव और यूूफोनिक अमित जी के सुझाव के अनुसार कुछ सुधार का प्रयास किया है।

देखिएगा....

फ़ासला हम दोनों के जब दरमियाँ बनता गया
इश्क़ मेरा दर्द की इक दास्ताँ बनता गया।।१।।

इक बनाकर साथ तेरे, सिर्फ अदना आशियां,
खुशनुमां इतना हुआ मैं बदगुमाँ बनता गया।।२।।


जाने कितनी दास्ताँ थीं, कहकशाँ सी बूंद में,
आंख से ढलकी तो गालों पर निशाँ बनता गया।।४।।

राज मुझ तक ही रहें, ये सोच लिख दी डायरी,
और फिर हर ऐक पन्ना राज दाँ बनता गया।।६।।

बस मुहब्बत का सलीका सीखने के वास्ते,
लोग साथ आते गये और कारवाँ गया।।७।।

सादर  आभार 

'खुशनुमां इतना हुआ मैं बदगुमाँ बनता गया'

इस मिसरे पर मेरी टिप्पणी फिर से पढ़ें ।

'इक बनाकर साथ तेरे, सिर्फ अदना आशियां'

इस मिसरे का शिल्प कमज़ोर है ।

'जाने कितनी दास्ताँ थीं, कहकशाँ सी बूंद में'

इस मिसरे का शिल्प और वाक्य विन्यस ठीक नहीं है ।

बाक़ी ठीक है ।

आदरणीय एक और प्रयास किया है कृपया मार्गदर्शन करें।

कोशिश:
बस बनाकर साथ तेरे, ऐक अदना आशियां'
खुशनुमां इतना हुआ मैं बदगुमाँ बनता गया।।२।।


एक आंसू तक छुपा पाये नहीं उनसे कभी,
आंख से ढलका तो गालों पर निशाँ बनता गया।।४।।

आभार 

आदरणीय अमित कुमार अमित जी सहीह लफ़्ज़ ख़ुशनुमा है। 

'बस बनाकर साथ तेरे, ऐक अदना आशियां'
खुशनुमां इतना हुआ मैं बदगुमाँ बनता गया'

ऊला कमज़ोर है, और सानी में आपने फिर 'खुशनुमां' लिख दिया कैसे समझाऊँ आपको ,अरे भाई 'खुशनुमां' नहीं, "ख़ुशनुमा" ।

'एक आंसू तक छुपा पाये नहीं उनसे कभी,
आंख से ढलका तो गालों पर निशाँ बनता गया'

इस शे'र का ऊला भी कमज़ोर है ।

आदरणीय मैं पुनः प्रयास करता हूं।

आभार। 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
3 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 182 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का…See More
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

गजल - सीसा टूटल रउआ पाछा // --सौरभ

२२ २२ २२ २२  आपन पहिले नाता पाछानाहक गइनीं उनका पाछा  का दइबा का आङन मीलल राहू-केतू आगा-पाछा  कवना…See More
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"सुझावों को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय सुशील सरना जी.  पहला पद अब सच में बेहतर हो…"
4 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . .

 धोते -धोते पाप को, थकी गंग की धार । कैसे होगा जीव का, इस जग में उद्धार । इस जग में उद्धार , धर्म…See More
11 hours ago
Aazi Tamaam commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"एकदम अलग अंदाज़ में धामी सर कमाल की रचना हुई है बहुत ख़ूब बधाई बस महल को तिजोरी रहा खोल सिक्के लाइन…"
19 hours ago
surender insan posted a blog post

जो समझता रहा कि है रब वो।

2122 1212 221देख लो महज़ ख़ाक है अब वो। जो समझता रहा कि है रब वो।।2हो जरूरत तो खोलता लब वो। बात करता…See More
yesterday
surender insan commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। अलग ही रदीफ़ पर शानदार मतले के साथ बेहतरीन गजल हुई है।  बधाई…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को मान देने तथा अपने अमूल्य सुझाव से मार्गदर्शन के लिए हार्दिक…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"गंगा-स्नान की मूल अवधारणा को सस्वर करती कुण्डलिया छंद में निबद्ध रचना के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . .

 धोते -धोते पाप को, थकी गंग की धार । कैसे होगा जीव का, इस जग में उद्धार । इस जग में उद्धार , धर्म…See More
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ सत्तरवाँ आयोजन है।.…See More
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service