For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-104 (विषय: युद्ध)

आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-104 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार का विषय 'युद्ध', तो आइए इस विषय के किसी भी पहलू को कलमबंद करके एक प्रभावोत्पादक लघुकथा रचकर इस गोष्ठी को सफल बनाएँ।  
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-104
विषय: 'युद्ध'
अवधि : 29-11-2023 से 30-11-2023 
.
अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पाए इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है। देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ-साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
.    
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सकें है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)

Views: 543

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

स्वागतम

लघुकथा : युद्ध

दिल को देखो चेहरा न देखो,
चेहरों ने लाखों को लूटा,
दिल सच्चा और चेहरा झूठा...

हाँ, यही गीत था जिसने मेरी जिंदगी प्रभावित कर दी। वह सुंदर तो नही था, किंतु बहुत प्यार करता था, और मैं उसके प्यार में डूब चुकी थी। माँ, पापा और भाईयों के विरोध के बावजूद मैंने अंतरजातीय विवाह कर लिया। परिणामस्वरूप मेरे और उसके घरवालों ने हम दोनों से संबंध समाप्त कर लिए। वह सरकारी दफ्तर में बाबू था। हम दोनों बहुत ही खुश थे, दो वर्ष कैसे बीत गये पता ही न चला, इसी दौरान हम दो बेटियों के माँ-पापा बन गए। उसके बाद पता नही उसे क्या हो गया। हर पल उसे आशंका होने लगी कि मैं बहुत ही सुंदर हूँ तो उसे छोड़ किसी और से संबंध बना लूँगी। धीरे-धीरे यह बात उसके मन-मस्तिष्क में गहराई तक बैठती चली गयी और वह मानसिक रुप से बीमार हो गया। डॉक्टरी इलाज से भी कुछ ख़ास फर्क नही पड़ा। एक दिन वह अचानक घर-परिवार और नौकरी छोड़ कहीं चला गया। तनख्वाह बंद हो गयी और मैं दोनों बेटियों को लेकर आर्थिक परेशानी का सामना करने लगी हूँ। कुछ लोग ने मदद भी की। किन्तु मेरे मायके और ससुरालवालों ने कोई मदद नही की। उनका कहना था - जैसी करनी वैसी भरनी। बेटियों के सामने रो भी नही पाती, जाने कितनी बार मुँह में कपड़ा ठूँसकर रो लेती हूँ ताकि बच्चे न जान सकें। एक प्राईवेट स्कूल में नौकरी भी कर रही हूँ किन्तु वहाँ से मिलने वाली राशि अपर्याप्त है। मैं जीवन से थक चुकी हूँ और अपनी जीवन लीला समाप्त कर रही हूँ। यह सुसाइड नोट इसलिए लिख रही हूँ ताकि मेरी मौत का जिम्मेदार किसी और को न ठहराया जा सके।

अभागिन
राजकुमारी

इससे पहले कि वह कुछ करती, दोनों बच्चियाँ दौड़ती हुई कमरे में आयीं और उसके गले में बाँहें डालते हुए बोलीं,
“मम्मी... प्यारी मम्मी! बहुत भूख लगी है, कुछ खाने को दो ना...”
मुट्ठी में पकड़े उस कागज़ के टुकड़े को भींचते हुए वह रसोई में चली गयी । खिचड़ी बनाने के लिए पतीला चूल्हे पर रखा... और चूल्हे में कागज़ का टुकड़ा।
दूर कही रेडियो पर बज रहा था...

हार नहीं मानूँगा, रार नई ठानूँगा,
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूँ,
गीत नया गाता हूँ, गीत नया गाता हूँ।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

हार्दिक स्वागत आदरणीय सर जी विषयांतर्गत नारी विमर्श की बहुत ही मार्मिक बढ़िया सृजन बढ़िया आग़ाज़ और अंजाम तक विचारोत्तेजक। हार्दिक बधाई जनाब इंजी. गणेश जी 'बाग़ी' साहिब। शीर्षक इससे बेहतर भी संभव थे।

प्रस्तुति पर एकमात्र टिप्पणी हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय उस्मानी जी । यदि कोई बेहतर शीर्षक आपके संज्ञान में हो तो सुझाव देने की कृपा हो ।

सादर ।

धन्यवाद सर जी। मुझे लगा कि गीतों की पंक्ति से ही या रचना में से ही शीर्षक बन सकते हैं। यथा : काल के कपाल पर या टुकड़े

आप द्वारा सुझाये गये दोनो शीर्षक लघुकथा का प्रतिनिधित्व नही कर पा रहे हैं । वास्तव में इस लघुकथा का शीर्षक मैंने 'जंग' रखा था और कुछ माह पहले ही सृजित किया था किंतु पोस्ट नही किया था । 

फिर इस आयोजन में प्राप्त विषय को ही शीर्षक बना लिया ।

जी, शुक्रिया मार्गदर्शन हेतु।

आ. भाई गणेश जी, सादर अभिवादन। एक सार्थक और संदेशपरक लघुकथा के लिए बहुत बहुत बधाई।

बहुत बहुत आभार भाई लक्ष्मण जी ।

लगे रहो (लघुकथा) :


नहीं, न तो मैं रणभूमि में हूँ और न ही मृत्युशैया पर .... मैं तो प्रयोगशाला में हूँ! लड़ रही हूँ लकवे के प्रकोप से! और मुझे चाहने वाले भी लड़ रहे हैं जीतने के लिये... मुझे पहले जैसा पाने के लिये। फ़ीज़ियोथैरेपिस्ट भी एक ऐसी लड़ाई लड़ रहे हैं जिसका नतीज़ा उन्हें भी नहीं मालूम मेरे न्यूरोलोजिस्ट डॉक्टर की तरह। मेरा घर... मेरा कमरा या मेरे और उन सबके जज़्बात एक प्रयोगशाला ही तो बन गये हैं! क्रियायें-प्रतिक्रियाएं, व्यायाम,खान-पान और दवाइयाँ सब कुछ प्रयोग हैं प्रयोगशाला में। मेरी संतान और पतिश्री सहित अज़ीज़ रिश्तेदार भी प्रयोग ही हैं। मैं चल-फ़िर नहीं पा रही हूँ... चलेगा... लेकिन मेरी भाषा चली गई... बोल भी नहीं पा रही हूँ... तो अपनी बात कह भी नहीं पा रही हूँ। संबंधित दिमाग़ी कोशिकाओं से जूझ रही हूँ। सुस्त या निकम्मे हो चुकी अपनी वाणी और शब्दकोश से जूझ रही हूँ। परिजनों की भावनाओं और झुँझलाहट और उनके भविष्य की चिंताओं से जूझ रही हूँ। मुझे पता है कि वे भी जूझ रहे हैं ... स्वार्थों से या दायित्वों से या पैसों की आवक-जावक की जद्दोजहद से? कुछ समझ पा रही हूँ... कुछ नहीं। रो रही हूँ ... परिजन भी रो रहे हैं... बल्कि ये कहूँ कि भोग रही हूँ और वे भी भोग रहे हैं अपनी कथनी और करनी पर... मेरी सेहत संबंधित अपनी लापरवाहियों पर.. अपेक्षाओं और उपेक्षाओं पर। ओह... इतना भी क्या सोचना... कितनी उम्र बची है मेरी ... मर भी जाऊं तो क्या... लेकिन ठीक हो जाऊं तो? बड़ी कशमकश है। ये लड़ाई... ये कशमकश कब तक चलेगी, पता नहीं! वे सब लोग मेरे लिए कब तक लगे रहेंगे, पता नहीं! लेकिन मुझे इतना पता चल गया है कि अपनी ही सेहत के संबंध में हर इंसान को स्वार्थी और गंभीर ही रहना चाहिए। सेहत गई... सब कुछ गया!


[न्यूरोलोजिस्ट = तंत्रिका विज्ञानी/स्नायुतंत्र विशेषज्ञ, फ़ीज़ियोथैरेपिस्ट= शारीरिक/भौतिक विज्ञानी]


(मौलिक व अप्रकाशित)

भाई इसमें कथा कहाँ है ?

धन्यवाद आदरणीय सर.जी टिप्पणी हेतु। एक शैली है.लघुकथा कहने की मेरे विचार से। मार्गदर्शन का निवेदन है।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"स्वागतम"
2 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"जी बहुत शुक्रिया आदरणीय चेतन प्रकाश जी "
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ.लक्ष्मण सिंह मुसाफिर साहब,  अच्छी ग़ज़ल हुई, और बेहतर निखार सकते आप । लेकिन  आ.श्री…"
6 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ.मिथिलेश वामनकर साहब,  अतिशय आभार आपका, प्रोत्साहन हेतु !"
6 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"देर आयद दुरुस्त आयद,  आ.नीलेश नूर साहब,  मुशायर की रौनक  लौट आयी। बहुत अच्छी ग़ज़ल…"
6 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
" ,आ, नीलेशजी कुल मिलाकर बहुत बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई,  जनाब!"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।  गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। भाई तिलकराज जी द्वार…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई तिलकराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए आभार।…"
8 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"तितलियों पर अपने खूब पकड़ा है। इस पर मेरा ध्यान नहीं गया। "
8 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी नमस्कार बहुत- बहुत शुक्रिया आपका आपने वक़्त निकाला विशेष बधाई के लिए भी…"
9 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service