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तोटक छंद "विरह"

सब ओर छटा मनभावन है।
अति मौसम आज सुहावन है।।
चहुँ ओर नये सब रंग सजे।
दृग देख उन्हें सकुचाय लजे।।

सखि आज पिया मन माँहि बसे।
सब आतुर होयहु अंग लसे।।
कछु सोच उपाय करो सखिया।
पिय से किस भी विध हो बतिया।।

मन मोर बड़ा अकुलाय रहा।
विरहा अब और न जाय सहा।।
तन निश्चल सा बस श्वांस चले।
किस भी विध ये अब ना बहले।।

जलती यह शीत बयार लगे।
मचले मचले कुछ भाव जगे।।
बदली नभ की न जरा बदली।
पर मैं बदली अब हो पगली।।
=============
लक्षण छंद:-

जब द्वादश वर्ण "ससासस" हो।
तब 'तोटक' पावन छंदस हो।।

"ससासस" = चार सगण
112 112 112 112 = 12 वर्ण
******************

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on May 10, 2019 at 6:13pm

आदरणीय सुरेंद्र नाथ जी रचना को आपसे मान मिला लेखन सार्थक हुआ। बहुत आभार।

Comment by नाथ सोनांचली on May 9, 2019 at 8:00pm

आद0 बासुदेव अग्रवाल जी सादर अभिवादन। नए छंद से हम सभी को अवगत कराते हुए बेहतरीन सृजन के लिए आभार सँग बधाई निवेदित है। सादर

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on May 9, 2019 at 10:49am

आदरणीय छोटेलाल सिंह जी बहुत बहुत आभार।

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on May 9, 2019 at 10:49am

आदरणीय हरिओम श्रीवास्तव जी आपका अतिशय आभार।

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on May 9, 2019 at 6:43am

आदरणीय वासुदेव शरण अग्रवाल जी सादर अभिवादन बहुत ही सुंदर मनमोहक सृजन मन प्रसन्न हो गया, बहुत बहुत बधाई

Comment by Hariom Shrivastava on May 8, 2019 at 9:40pm

वाह,वाहहह,लाजवाब छंद है। हार्दिक बधाई आदरणीय 'बासुदेव अग्रवाल  'नमन' जी। मेरे लिए तो नया भी है।

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