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होश की मैं पैमाइश हूँ:........ग़ज़ल, पंकज मिश्र..........इस्लाह की विनती के साथ

22 22 22 2

मयख़ानों की ख़ाहिश हूँ
होश की मैं पैमाइश हूँ

चाँद न कर मुझ पर काविश
ब्लैक होल की नाज़िश हूँ

हल ना कर पाओगे तुम
ज़िद की ऐसी नालिश हूँ

जल जाएगा हुस्न तेरा
मैं सूरज की ताबिश हूँ

आ मत मेरी राहों में
तूफ़ानों की जुंबिश हूँ

मौलिक अप्रकाशित

उर्दू का ज्ञान लगभग शून्य है, इसलिए, मुझे सन्देह है कि शायद मेरे भाव अस्पष्ट हों..….इसलिए हार्दिक विनती है कि इस ग़ज़ल के कथ्य पर भी सुझाव दिया जाए

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Comment

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 24, 2018 at 3:07pm

आदरणीय अजय सर सादर प्रणाम।

एक प्रयास था....बस....सुधार की कोशिह जारी है

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 24, 2018 at 3:06pm

आदरणीय बाऊजी सादर प्रणाम और बहुत बहुत आभार

Comment by Ajay Tiwari on November 17, 2018 at 4:48pm

आदरणीय पंकज जी, रदीफ़ और काफ़िया ऐसा चुने जिसमें कथ्य के प्रभावी विस्तार की पर्याप्त जगह हो. शेष आदरणीय समर साहब कह चुके हैं.आख़िरी शेर अच्छा लगा. एक अच्छी कोशिश के लिए हार्दिक बधाई.

Comment by Samar kabeer on November 15, 2018 at 2:32pm

अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब, सबसे पहले आपकी ग़ज़ल के क़वाफ़ी के अर्थ देखते हैं :-

"ख़्वागीश"--आरज़ू,तमन्ना

"पैमाइश"---नाप,ख़ुसूसन ज़मीन का नाप

"काविश"---तलाश

"नाज़िश"---फ़ख़्र(गर्व),घमण्ड,मुहावरा-नाज़ होना,फ़ख़्र(गर्व) होना

"नालिश"---रोना-पीटना,फ़रयाद,दुहाई

"ताबिश"---हरारत,गर्मी,तपिश,चमक,धूप की चमक,रोशनी,नूर

"जुम्बिश"--हरकत,हिलना-जुलना

'  मयख़ानों की ख़ाहिश हूँ
होश की मैं पैमाइश हूँ'

मतला क़वाफ़ी के अर्थ के मुताबिक़ सहीह नहीं,इन्हीं क़वाफ़ी में मतला यूँ हो सकता है:-

"नभ पाने की ख़्वाहिश हूँ

धरती की पैमाइश हूँ"

'  चाँद न कर मुझ पर काविश
ब्लैक होल की नाज़िश हूँ'

इस शैर को यूँ कर सकते हैं:-

'चाँद न कर मेरी काविश

ब्लैक होल की नाज़िश हूँ'

' हल ना कर पाओगे तुम
ज़िद की ऐसी नालिश हूँ'

इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं,इसे यूँ कर सकते हैं:;

'तोड़ न इसको पाओगे

मैं वो ज़िद की साज़िश हूँ''

जल जाएगा हुस्न तेरा
मैं सूरज की ताबिश हूँ

आ मत मेरी राहों में
तूफ़ानों की जुंबिश हूँ'

ये दो अशआर ठीक हैं ।

बाक़ी शुभ शुभ ।

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 14, 2018 at 3:28pm

जी प्रणाम, मुझे इन्तज़ार है

Comment by Samar kabeer on November 14, 2018 at 12:04pm

आपकी ग़ज़ल पर पुनः आता हूँ,समय मिलते ही ।

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