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लालटेन(लघुकथा)

स्कूटर फर्राटे से थाने के सामने निकला।यह बात थाने को नागवार गुजरी।एक सिपाही ने हाथ दिया।स्कूटर रुक गया।उसने थाने के कंपाउंड में चलने का इशारा किया।अब स्कूटर थाने के मेन गेट पर खड़े इंचार्ज के सामने खड़ा था।सवार बगल में थे।इंचार्ज ने गाड़ी के कागज की माँग की,जो दिखा दिए गए।उसे गाड़ी का नंबर पढ़ने में दिक्कत हो रही थी।बार बार बताने के बावजूद वह अटक रहा था।अंत में स्कूटर सवार बुजुर्ग ने ध्यान दिलाया कि नंबर तो ठीक ही लिखा हुआ है।हाँ, लिखावट थोड़ी फीकी हो गयी है।लजाया-सा इंचार्ज झिझक भरे लहजे में बोला,'हाँ हाँ, है।ललटेन लगा लीजिये।'अंदर से क्रुद्ध बुजुर्ग ने अपने हाथ में लटके चश्मे की तरफ देखा और बिना कुछ कहे उसे आँखों पर चढ़ा चलते बने।स्कूटर चलानेवाले युवक ने कहा,'मार खा गए दारोगा जी।इसीलिए झुँझला रहे थे।'
-वो कैसे?
-वसंतपंचमी की वसूली जो नहीं हुई।'
-अच्छा,तो ये बात है।हाहाहा...।
-समझा होगा बच्चा ड्राइव कर रहा है।लाइसेंस वगैरह तो होगा नहीं।मछली फँसी जैसे।' युवक ने कहा।

-ओहो!',बुजुर्ग ने गहरी साँस ली।

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by Manan Kumar singh on May 14, 2018 at 10:52am

आदरणीय तेजवीर जी, शुक्रिया। 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 9, 2018 at 9:14pm

जनाब मनन साहिब ,अच्छी लघुकथा हुई है ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।

Comment by vijay nikore on May 9, 2018 at 8:47pm

लघुकथा में कटाक्ष अच्छा है।अच्छी रचना के किए बधाई।

Comment by Manan Kumar singh on May 9, 2018 at 5:49pm

आदरणीय समर जी ,नमन व आभार।

Comment by Manan Kumar singh on May 9, 2018 at 5:48pm

आपका आभारी हूँ आदरणीया राहिला जी।

Comment by Rahila on May 9, 2018 at 5:42pm

वाह... बहुत सटीक रचना । आजकल की व्यवस्था पर खूब तंज करती हुई। बधाई स्वीकार करें

Comment by Samar kabeer on May 9, 2018 at 2:53pm

जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,अच्छी लघुकथा, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Manan Kumar singh on May 9, 2018 at 10:00am

आदरणीया बबीता गुप्ता जी, शुक्रिया। 

Comment by Manan Kumar singh on May 9, 2018 at 9:59am

आदरणीया नीलम जी, आपका आभार। 

Comment by Manan Kumar singh on May 9, 2018 at 9:58am

आदरणीय तेजवीर सिंह जी, आपका  आभार। 

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