For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सुलगन :

तुम
अपना तमाम धुआँ
मुझे सौंप
चले गए
मुझे अकेला छोड़

मेरी देह
तुम्हारे धुएँ की गर्मी से
देर तक
ऐसे सुलगती रही
जैसे
गरम सिगरेट की
झड़ी हुई राख से
सुलगती है
कोई
ऐश -ट्रे
देर तक

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 416

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on May 9, 2018 at 3:02pm

आदरणीय डॉ छोटेलाल जी सृजन के भावों की आत्मीय सराहना का दिल से शुक्रिया।

Comment by Sushil Sarna on May 9, 2018 at 3:02pm

आदरणीय समर कबीर साहिब , आदाब .... सर आपकी स्नेहाशीष से सृजन सार्थक हुआ। हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on May 9, 2018 at 3:02pm

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी सृजन आपकी मधुर प्रशंसा का आभारी है।

Comment by Sushil Sarna on May 9, 2018 at 3:02pm

आदरणीय शेख़ उस्मानी साहिब, आदाब ... सृजन के भावों को मान देने का दिल से शुक्रिया।

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on May 8, 2018 at 8:42pm
आदरणीय सरना जी कम से कम शब्दों में आपने सब कह दी जबरदस्त कविता हुई दिली मुबारकबाद कुबूल कीजिये
Comment by Samar kabeer on May 8, 2018 at 2:53pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत उम्दा कविता हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by नाथ सोनांचली on May 8, 2018 at 10:08am

आद0 सुशील सरना जी सादर अभिवादन। बढिया सृजन पर मेरी बधाई स्वीकार कीजिये।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 7, 2018 at 9:01pm

बेहतरीन सांकेतिक संदेश वाहक  रचना के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब सुशील सरना साहिब।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted discussions
3 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Thursday
Sushil Sarna posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Jun 5
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Jun 3
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Jun 3

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Jun 3
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Jun 2

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service