For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रतिज्ञा - लघुकथा –

प्रतिज्ञा - लघुकथा –

 एक खूँखार आतंकी संगठन के सिरफ़िरे मुखिया ने राज्य के मुख्यमंत्री को खूनी चुनौती भरा संदेश भेज कर पूरे राज्य में दहशत फ़ैला दी थी। उसने हिदायत की थी कि इस बार होली पर लाल चौक पर एक भी बंदा गुलाल या किसी भी प्रकार के रंग के साथ दिखा तो लाल चौक को खून से रंग दिया जायेगा। यह हमारा त्यौहार नहीं है इसलिये हम हमारे राज्य में किसी को भी होली खेलने की इज़ाज़त नहीं देंगे। मुख्यमंत्री की नींद उड़ चुकी थी।

आपातकालीन बैठक बुलाई गयी थी। पूरे राज्य में रेड अलर्ट तथा अघोषित कर्फ़्यू लगा दिया गया था। चप्पे चप्पे पर सेना, पुलिस और पैरा मिलिट्री फ़ोर्सेज के हथियार बंद जवान तैनात कर दिये गये थे। लाल चौक तो एक तरह से छावनी में  तब्दील कर दिया गया था। सुरक्षा व्यवस्था इस क़दर चाक़ चौबंद थी कि परिंदा भी पर नहीं मार सकता था। सरकार किसी भी नागरिक की जान को खतरे में डालना नहीं चाहती थी। इसलिये मीडिया के सभी साधनों, रेडियो , टी  वी, और अखबारों द्वारा यह संदेश प्रसारित हो रहा था कि जनता अपने घरों से बाहर ना निकले। सेना की  सशस्त्र गाड़ियाँ गस्त कर रही थीं।

लेकिन उधर जनता के मन में क्या चल रहा था कोई नहीं जानता था।हर शख्स के मन में क्रोध का एक तूफ़ान उमड़ रहा था। लोग आपस में एक दूसरे को संदेश भेज कर अपनी भावनाओं से अवगत करा रहे थे। तथा अपनी घुटन को व्यक्त करने की योजना बना रहे थे।

अचानक ठीक बारह बजे एक समुद्र की तरह जन सैलाब हाथों में रंग और गुलाल उड़ाते हुए लाल चौक पर इकट्ठा होने लगा। देखते देखते लाखों लोग एकत्र हो गये। समूचा आसमान रंगों से पटा पड़ा था। भीड़ में हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख और ईसाई सभी धर्म के लोग शामिल थे। लगता था जैसे राज्य के हर नागरिक ने आतंकी संगठनों को मुँह तोड़ जवाब देने की  प्रतिज्ञा ले रखी हो।

प्रशासन भी भौचक्का होकर इस क़दम को निहार रहा था। साथ ही इस बदली हुई फ़िज़ा का मुक्त कंठ से स्वागत भी कर रहा था।उधर आतंकी संगठन के मुखिया का कोई भी गुर्गा इस भीड़ का सामना करने को तैयार नहीं था। सब मुँह छिपाये घूम रहे थे।

उधर आतंकी संगठन के मुखिया के चेहरे पर हवाईंयाँ उड़ रहीं थीं। शर्म और घबराहट से उसका चेहरा ज़र्द हो गया था।

मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 581

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by TEJ VEER SINGH on March 9, 2018 at 12:34pm

हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी साहब जी।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 6, 2018 at 6:04pm

समसामयिक नकारात्मक वातावरण में कटाक्षपूर्ण सकारात्मक संदेश वाहक रचना के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब तेज वीर सिंह साहिब।

Comment by TEJ VEER SINGH on March 4, 2018 at 8:19pm

हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी।आदाब।

Comment by TEJ VEER SINGH on March 4, 2018 at 8:18pm

हार्दिक आभार आदरणीय कल्पना भट्ट जी।

Comment by TEJ VEER SINGH on March 4, 2018 at 8:17pm

हार्दिक आभार आदरणीय शरद सिंह जी।

Comment by Samar kabeer on March 4, 2018 at 7:47pm

जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,बहुत अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on March 3, 2018 at 9:49pm

अच्छी लघुकथा हुई है आदरणीय तेज वीर सिंह जी | हार्दिक बधाई |

Comment by SHARAD SINGH "VINOD" on March 3, 2018 at 3:55pm

आदरणीय तेज वीर जी सादर बधाई...... प्रासंगिक लेख व शीर्षक से बंधा हुआ अति सुंदर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service