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शायद सनम की आँख से छलकी शराब है ।

2212 2212 2212 12

शायद तेरी नज़र को मिला इंतखाब है ।

उगने लगा मगरिब में कोई आफताब है ।।

उड़ते परिंदे खूब हैं इस जश्ने प्यार में ।

छाया मुहब्बतों में कोई इन्क्लाब है ।।

मुद्दत से मैं था मुन्तज़िर अपने सवाल पर ।

ख़त में किसी का आज ही आया जबाब है ।।

कुछ दिन से वह भी होश में मिलता नहीं मुझे ।

कैसा नशा है इश्क़ में कैसा शबाब है ।।

फितरत नई है आपकी बहकी शबा मिली ।

चेहरा नया जो आपका खिलता गुलाब है ।।

इतनी जफ़ा के बाद भी कायम वफ़ा रही ।

मेरे लिए क्या आपने रक्खा ख़िताब है ।।

कब तक रहेगा कौन मेरे साथ उम्र भर ।

सच मानिए ये जिंदगी होती हबाब है ।।

कुछ दिन से वह भी होश में मिलता नहीं मुझे ।

कैसा नशा है इश्क़ में कैसा शबाब है ।।

पर्दे हजारों ओढ़ के मिलता है आजकल ।

किसने कहा है आदमी वह  बेनकाब   है ।।

अमनो सुकूँ के साथ मे जीना हराम अब ।

इस शह्र में हर शख्स की सुहबत खराब है ।।

यूँ ही नहीं वो आपकी तारीफ़ कर गया ।

वह शख्स पढ़के आपको लिखता किताब है ।।

बैठे दिखे हैं रिन्द भी लम्बी कतार में ।।

शायद सनम की आंख से छलकी शराब है ।।

- नवीन मणि त्रिपाठी मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Naveen Mani Tripathi on February 13, 2018 at 11:23am

आ0 लक्ष्मण धामी साहब बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 13, 2018 at 9:51am

बैठे दिखे हैं रिन्द भी लम्बी कतार में ।।

शायद सनम की आंख से छलकी शराब है ।।

क्या कहने..... हार्दिक बधाई ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on February 10, 2018 at 10:23am

आ0 मुहम्मद आरिफ़ साहब बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by Naveen Mani Tripathi on February 10, 2018 at 10:22am

आ0 आमोद श्रीवास्तव जी सप्रेम आभार 

Comment by amod shrivastav (bindouri) on February 9, 2018 at 6:28pm

वाहःहः सर बहुत खूब। सादर नमन

Comment by Mohammed Arif on February 9, 2018 at 5:50pm

आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,

                                  उम्दा ग़ज़ल , अच्छे अश'आर । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें । कुछ नुक्तागत अशुद्धियाँ हैं बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।

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