For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

घर के काज (लघुकथा)

जनवरी की कड़ाके की ठंड। घना कोहरा। सुबह क़रीब पांच बजे का वक़्त। सरपट भागती ट्रेन की बोगी में सादी साड़ियां, पुराने से सादे स्वेटर और रबर की पुरानी से चप्पलें पहनी चार-पांच ग्रामीण महिलाओं की फुर्तीली गतिविधियां देख कर नज़दीक़ बैठा सहयात्री उनसे बातचीत करने लगा।

"ये चने की भाजी कहां ले जा रही हैं आप सब?"

"दिल्ली में बेचवे काजे, भैया!" एक महिला ने भाजी की खुली पोटली पर पानी के छींटे मारकर दोनों हाथों से भाजी पलटते हुए कहा।

"कहां से आईं हैं आप लोग?" सहयात्री ने उत्सुकता से पूछा।

"सागर से।"

"सागर में ही क्यों नहीं बेचतीं?"

"जहां पैदावार होत है, वहां के लोग खा-खा के उकता जात हैं। दिल्ली में पूरी भाजी अच्छे भाव में बिक जात है, भैया!" दूसरी महिला ने ठंड से कांपते हुए कहा।

"इतनी दूर, इतनी ठंड में! घर के मर्द क्यों नहीं जाते भाजी बेचने?" सहयात्री ने आश्चर्य से पूछा।

"मर्द को काम है खेत में काम करवो और तीज-त्योहारन पे सामान खरीदवो!  घर के काम तो हम औरतन को करने पड़त हैं!"

"घर का काम? इतनी दूर बेचने जाना घर का काम?"

"हओ भैया, जो हमाओ घर को ई काम है, मरदन को काम नईं!" एक महिला ने कहा और फिर उन सभी चने की भाजी वालियों के हाथ फुर्ती से पोटलियां बांधने लगे। अगला स्टेशन आ गया था।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 546

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 9, 2018 at 10:06pm

आद० शहजाद उस्मानी जी , बहुत अच्छी लघु कथा लिखी है बहुत बहुत बधाई आपको .आँखों के सामने रेल का ये द्रश्य सजीव सा हो उठा .

Comment by नाथ सोनांचली on January 8, 2018 at 1:33pm

आद0 शहज़ाद शेख उस्मानी साहब सादर अभिवादन। लघुकथा पढ़ते समय मेरे भी ट्रेन में भाजी बेचने वाली महिलाओं का दृश्य उभर आया। बहुत बेतरीन। लेखक किस तरह अपने चारों ओर के छोटी छोटी चीजों से कहानी बनता है, आपसे सीखता हूँ। बधाई इस लघुकथा पर।

Comment by SALIM RAZA REWA on January 7, 2018 at 6:53pm
वाह जनाब शेख शहज़ाद उस्मानी साहिब,
जनवरी की कड़ाके की ठंडी.. चने की भाजी और हिन्दी बुंदेली का मिश्रण मज़ा आ गया.. मुबारक़बाद
Comment by Mohammed Arif on January 7, 2018 at 2:07pm

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,

                            नारी घर के कामकाज के आलावा भी बाहर के कामकाज करती है इसमें कोई अचरज वाली बात कहाँ रही । शहर में कई नारियाँ हैं जो बाहर सर्विस करती है । उनको कोई कुछ नहीं कहता है । शहर में वह नारी सबलीकरण की प्रतीक बनी हुई है और अगर एक ग्रामीण नारी बाहर कामकाज के लिए निकलती तो उसे करूणा से देखते हैं आख़िर ऐसा क्यों ? सशक्त लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"अहसास (लघुकथा): कन्नू अपनी छोटी बहन कनिका के साथ बालकनी में रखे एक गमले में चल रही गतिविधियों को…"
14 hours ago
pratibha pande replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"सफल आयोजन की हार्दिक बधाई ओबीओ भोपाल की टीम को। "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय श्याम जी, हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय सुशील सरना जी, हार्दिक आभार आपका। सादर"
yesterday

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया छंद

आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार।त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।।बरस रहे अंगार, धरा ये तपती…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर

कहूं तो केवल कहूं मैं इतना कि कुछ तो परदा नशीन रखना।कदम अना के हजार कुचले,न आस रखते हैं आसमां…See More
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"ओबीओ द्वारा इस सफल आयोजन की हार्दिक बधाई।"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"धन्यवाद"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"ऑनलाइन संगोष्ठी एक बढ़िया विचार आदरणीया। "
Tuesday
KALPANA BHATT ('रौनक़') replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"इस सफ़ल आयोजन हेतु बहुत बहुत बधाई। ओबीओ ज़िंदाबाद!"
Tuesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service