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खेल दिल का अजीब होता है.....संतोष

फ़ाइलातून मफ़ाइलुन फेलुन

खेल दिल का अजीब होता है
कौन किसके क़रीब होता है

प्यार मिलता,किसी को रुसवाई
अपना अपना नसीब होता है

काम आए बुरे समय में जो
वो ही सच्चा हबीब होता है

प्यार है जिसके पास वो इंसां
इस जहाँ में ग़रीब होता है

राज़ जिसको बता दिया दिल का
वो ही मेरा रक़ीब होता है
#संतोष
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by santosh khirwadkar on November 18, 2017 at 10:24am

शुक्रिया ताई ..... 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 30, 2017 at 9:04pm

प्यारी ग़ज़ल कही है आपने आदरणीय संतोष जी , हार्दिक बधाई |

Comment by santosh khirwadkar on October 29, 2017 at 12:35pm
शुक्रिया ,चरण स्पर्श आदरणीय समर साहब ...
Comment by Samar kabeer on October 29, 2017 at 12:33pm
जनाब आशुतोष जी,बृजेश जी,
'प्यार है जिसके पास वो इंसां
इस जहाँ में ग़रीब होता है'
इस शैर के भाव शायद ये हैं कि,प्यार अमीरों के पास नहीं मिलता,ये ग़रीब के पास ही मिलेगा,जिसके पास प्यार होता है वो बज़ाहिर दुनिया में ग़रीब होता है ।
Comment by Samar kabeer on October 29, 2017 at 12:27pm
जनाब संतोष जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई,बधाई स्वीकार करें ।
Comment by santosh khirwadkar on October 29, 2017 at 12:20pm
शुक्रिया आदरणीय ब्रिजेश जी
Comment by santosh khirwadkar on October 29, 2017 at 12:19pm
हृदय से धन्यवाद आदरणीय आरिफ़ साहब!!!
Comment by santosh khirwadkar on October 29, 2017 at 12:18pm
शुक्रिया आदरणीय आशुतोष जी ...आप की असहमति का भी दिल से स्वागत!!!
Comment by Afroz 'sahr' on October 29, 2017 at 12:17pm
आदरणीय संतोष जी इस रचना पर बधाई आपको,,
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 29, 2017 at 12:03pm
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय..प्रेम तो अनमोल है..आदरणीय मिश्रा जी से सहमत हूँ..

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