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आदरणीय काव्य-रसिको,

सादर अभिवादन !

चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का आयोजन लगातार क्रम में इस बार सतहत्तरवाँ आयोजन है.

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ  

15 सितंबर 2017 दिन शुक्रवार से 16 सितंबर 2017 दिन शनिवार तक

इस बार के छंद हैं -

सरसी छंद और आल्हा (वीर) छंद

हम आयोजन के अंतरगत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं.  छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है,  चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.

[प्रस्तुत चित्र अंतर्जाल से]

साथ ही, रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, उचित यही होगा कि एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो छन्द बदल दें.   

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगीं.

आल्हा या वीर छन्द के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक...

 

सरसी छन्द के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें

जैसा कि विदित है, अन्यान्य छन्दों के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.

 

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आयोजन सम्बन्धी नोट 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 15 सितंबर 2017 दिन शुक्रवार से 16 सितंबर 2017 दिन शनिवार तक यानी दो दिनों केलिए रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.

 

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करेंआयोजन की रचनाओं के संकलन के प्रकाशन के पोस्ट पर प्राप्त सुझावों के अनुसार संशोधन किया जायेगा.
  4. अपने पोस्ट या अपनी टिप्पणी को सदस्य स्वयं ही किसी हालत में डिलिट न करें। 
  5. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  6. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  7. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  8. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...

विशेष :

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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आदरणीय सुरेन्द्र ’कुश क्षत्रप जी, आपकी कोशिश के लिए हार्दिक बधाइयाँ. आपने चित्र को बडे ही मनोयोग से देखा है. ऐसा कि मुख्य नायको को भी संयमित स्थान ही मिल पाया है. लेकिन आपने चित्र को अवश्य तार्किक स्वर दिया है.

शिल्पगत बातें करूँ तो  .. नीरवता उन्मुक्त गगन में, फैल रही चहुँओर .. एक बेहतर  पंक्ति होती. 

इसी तरह, दोनों के पैर आकाश में.. किसी तरह से शब्दकलों को संतुष्ट करता हुआ नहीं है. 

बाकी रचना बेहतर है. हार्दिक शुभकामनाएँ 

आद0 सौरभ पांडेय जी सादर प्रणाम, आपकी रचना पर उपस्थिति को मैं अपना गौरव समझता हूँ, आपके कथनानुसार
नीरवता उन्मुक्त गगन में, फैल रही चहुँओर
संसोधित कर लिया जाए, सादर

दोनों के पैर आकाश में, के लिए भी कुछ सुझाव हो तो अवश्य बतायें, सादर

हालांकि, कुल मात्रा के हिसाब से .. दोनों के पैर आकाश में .. १६ है, जो सही है.  लेकिन शब्दों को पद्य की व्यवस्था के अनुसार न रखे जाने से इसकी गेयता मर गयी है. इसी कारण इस पद्यांश को विशेष रूप से उद्धृत किया गया है.

शब्दकलों से संज्ञान लें. 

शुभेच्छाएँ 

आभार आद0 सौरभ जी, पुनश्च आभार आपका, इसे देखता हूँ
जनाब सुरेन्द्र नाथ साहिब ,प्रदत्त चित्र के अनुकूल सुन्दर सरसी छन्द हुए हैं ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें
आद0 तस्दीक अहमद खान जी सादर अभिवादन, आपकी बधाइयाँ स्वीकार, आपका हृदय से आभार

आदरणीय सुरेन्द्र भाई

चित्र को ध्यान से देखकर सुंदर छंद प्रस्तुत किया है आपने। हार्दिक बधाई।

दोनों के पैर आकाश में, उड़ने को तैयार | ........ उछले दोनों आसमान में , उड़ने को तैयार |

आद0 अखिलेश भाई जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से हम नवागन्तुकों का उत्साहवर्धन होता है। अतिशय आभार आपका। आपके सुझाव अनुसार संसोधित कऱ लूंगा। सादर
जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह जी आदाब,सरसी छन्द पर आपका प्रथम प्रयास बहुत ख़ूब हुआ,प्रदत्त चित्र को आपने अपने नज़रिये से सार्थक किया है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
पहले छन्द के दूसरे पद में 'ओर'ओर'की तुकान्तता समझ नहीं आई ।
'औ बिजली के तार'जहाँ तक मुझे मालूम है छन्द में मात्रा नहीं गिराई जाती ।
'बस्ती के नज़दीक एक है'मेरे ख़याल में यहाँ 'एक'भर्ती का शब्द है ।
आद0 समर साहब सादर प्रणाम। रचना पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साह बढ़ा है, आपका हृदय से आभार।
और को औ लिखते छःन्द में देखा था इसलिए प्रयोग किया। फिर भी आपके सुझावों को गम्भीरता से देखूँगा, और दूर करने की कोशिश करूंगा।
भाई मैं तो ख़ुद छन्द सीख रहा हूँ,जनाब सौरभ भाई ही सही मार्गदर्शन देंगे इस बिन्दू पर ।

आदरणीय समर साहब, आपका प्रश्न उचित है. ओर को ल्कर हुई तुकान्तता शास्त्र सम्मत नहीं है. इसे मैं संकलन प्रस्तुत करते समय लाल रंग ही देने वाला हूँ. 

जहाँ तक और के लिए औ’ के प्रयोग की बात है, यह पूरी तरह सही है और इसका प्रयोग पद्य में मान्य है. और के तीन रूप हिन्दी पद्य में प्रचलित हैं 

और - तीन मात्रिक

औ - दो मात्रिक 

व - एक मात्रिक 

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