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लघुकथा दोहरा सुख

दोहरा सुख   

“सरकारी नौकरी में रखा क्या है”

“क्यों बहुत परेशान लग रहे हो| इस नौकरी ने तुम्हें क्या नहीं दिया है? अच्छी तन्खवाह ,सरकारी घर, काम करने के तय घंटे, और क्या चाहिये |”

“बंधीबंधाई तनखा से गुजारा कहाँ ?”

“और जो बंगले की ज़मीन, हर मौसम की सब्जी ,फल ----ताज़े का मज़ा ही और है|”

“अपने पोती पोतियों को इन्हीं साग-भाजी की फोटो दिखाना और तो कुछ कमाई तो की नहीं जीवन में|”

“दादा जी आम तोड़ दीजीये ना, मेरा हाथ नहीं पहुँच रहा है|”

“पेड़ पर चढ़ कर तोड़ो|”

“आप चढाओ न|”

“देखो भाई, इससे बड़ी और क्या बात हो सकती है कि मेरे लगाए कलमी आम के पौधे फल देने लगे हैं और मेरे पोते अपने हाथ से तोड़ कर खा रहे हैं|”

“घर और पेड़ तो सरकारी है| इसका क्या मोह? अपने घर में लगाते तो बात है |”

“ठीक है, ४ साल बाद रिटायर हो जाऊंगा| जो इस घर में आयेगा वो इसका सुख उठायेगा, दुआएं तो मुझे ही मिलेंगी| मैंने तो अपने बच्चों को सिखाया है, अच्छी यादें दी हैं| अब पोते को पेड़ पर चढाकर अपना बचपन जी रहा हूँ| आम,केला जामुन शहतूत ,करौंदा ,पपीता और हर मौसमी फल को बड़े होते देख रहा है | पोते को प्रत्यक्ष दिखा कर पौधों के प्रति उसकी सम्वेदनशीलता विकसित कर रहा हूँ| ये क्या कम उपलब्धि है|”

“ये सब तो दिल बहलाने की बातें हैं| दोस्त, इतना होता ही कहाँ है कि एक बार की सब्जी बन जाए ---“

“ना सही, आलू ज़मीन के ऊपर होता है कि नीचे, जानकारी तो है| आँखों देखी बातें बच्चा नहीं भूलता|” यही है सरकारी नौकरी के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष फायदे |बच्चे संस्कारी, जानकार व अनुभवी बने यही सच्चा सुख है, इसी के कारण मैं भी सुखी हूँ, हुआ ना दोहरा सुख|”

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Manisha Saxena on August 4, 2017 at 4:43pm

आ. आरिफ साहब आपका कहना बिलकुल सही है दूसरों को देने से ही सच्ची ख़ुशी मिलती है|प्रतिक्रिया के लिए बहुत आभार ,धन्यवाद |

Comment by Manisha Saxena on August 4, 2017 at 4:39pm

आ. कबीर जी बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by Manisha Saxena on August 4, 2017 at 4:38pm

आगे से कोशिश करूंगी किकुछ बातें पाठकों के विवेक पर छोड़ दी जाएँमार्गदर्शन के लिए बहुत धन्यवाद|

Comment by Manisha Saxena on August 4, 2017 at 4:34pm

धन्यवाद सिंह साहब |

Comment by नाथ सोनांचली on August 4, 2017 at 6:18am
आद0 मनीषा सक्सेना जी सादर अभिवादन, अच्छी लघुकथा, वाकई में संस्कार के साथ साथ अनुभव से अगर बच्चे जानकारी हासिल करेंगे तो कभी हास्य के पात्र नही बनेंगे। बधाई इस लघुकथा पर
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 2, 2017 at 7:19pm
उम्दा बढ़िया प्रस्तुति के लिए सादर हार्दिक बधाई आदरणीय मनीषा सक्सेना जी। फलों व पेड़ों के कुछ नाम गिनाए बिना कम शब्दों में भी संवाद कहलवाये जा सकते हैं, कुछ बातें अनकहे में छोड़कर व पाठक के विवेक और चिंतन हेतु।
Comment by Samar kabeer on August 2, 2017 at 5:58pm
मोहतरमा मनीषा सक्सेना जी आदाब,बढ़िया लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Mohammed Arif on August 2, 2017 at 2:33pm
आदरणीया मनीषा सक्सेना जी आदाब, बेहतरीन कथानक में कसावट और संवादों में भी पूरी परिपक्वता । अगर व्यक्ति देने की भावना से काम करें तो उसे सच्चा सुख वैसे ही प्राप्त हो जाता है । हम समाज में जीने की भावना से नहीं अपितु औरों को भी देने की भावना से जीना चाहिए । हार्दिक बधाई स्वीकार करें इस सफल लघुकथा के लिए ।

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