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निर्दोषों के हत्यारों की,

क्या बस निंदा काफी है.

घाटी में आतंकी मिलकर,

दिखा रहे हैं दानवता.

हृदय विलखता लिए हुए हम,

ओढ़े बैठे सज्जनता.

तड़प रही है भारत माता,

जयचंदों को माफ़ी है.

जाति धर्म की राजनीति में,

इंसान हो रहा गायब.

चमचों की कोशिश रहती है,

रहे हमेशा खुश साहब.

भोली जनता को गोली है,

पल पल नाइंसाफी है.

टूट गए हैं सारे सपने,

रुदन कर रहीं अबलाएँ.

बार बार वे प्रश्न पूछकर,

दग्ध हृदय को और तपाएँ.

टी वी पर चल रहे तमाशे,

होती फोटोग्राफी है.

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

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Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 23, 2017 at 1:08pm

आदरनीय विजय निकोरे जी आपका ह्रदय से आभार 

Comment by vijay nikore on July 21, 2017 at 11:18am

//

टूट गए हैं सारे सपने,

रुदन कर रहीं अबलाएँ.

बार बार वे प्रश्न पूछकर,

दग्ध हृदय को और तपाएँ.//

सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 21, 2017 at 10:29am

आदरणीय laxman dhami जी आपका दिल से शुक्रिया 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 21, 2017 at 10:26am

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , आपका दिल से शुक्रिया 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 20, 2017 at 8:53pm
अति सुंदर...

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 20, 2017 at 8:23pm

आदरणीय बसंत भाई ,  लाजवाब गीत रचना के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 19, 2017 at 5:02pm

 आदरणीय Samar kabeer जी हौसला अफजाई के लिए दिली शुक्रिया आपका 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 19, 2017 at 5:01pm

आदरणीय  Ravi Shukla जी  हौसला अफजाई के लिए दिली शुक्रिया आपका 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 19, 2017 at 5:01pm

आदरणीय KALPANA BHATT  जी हौसला अफजाई के लिए दिली शुक्रिया आपका 

Comment by Samar kabeer on July 19, 2017 at 12:12pm
जनाब बसंत कुमार जी आदाब,बहुत सुंदर रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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