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-------ग़ज़ल -------
2122 1212 22
बात तुम भी खरी नही करते ।
काम कोई सही नही करते ।

चोट दिल पर लगी है फिर उसके ।
काम ये मजहबी नहीं करते ।।

जब से अफसर बना दिया कोटा ।
बात अच्छी भली नहीं करते ।।

दोस्तों की किसी तरक्की में ।
यूँ मुसीबत खड़ी नहीं करते ।।

जिंदगी पर यकीन है जिनको । वो कभी खुदकुशी नहीं करते ।।

कुछ तो खुन्नस बनी रही होगी ।
बेसबब बेरुखी नहीं करते ।।

पेंग गर प्यार की बढ़ानी है ।
प्यार में हड़बड़ी नही करते ।।

है मुहब्बत का आसरा जिनको ।
हुस्न की रहबरी नहीं करते ।।

सिर्फ मिसरे से काम क्या चलता ।
टिप्पणी कुछ कभी नही करते ।।

थी गरीबी की दास्तां होगी ।
काम गन्दा सभी नहीं करते ।।

मुझ को मालूम राज की कीमत ।
बेवफाई कभी नही करते ।।

जिनको मंजिलकी फिक्रहै काफी ।
वक़्त से दुश्मनी नहीं करते ।।

है पता उन्को कैफियत अपनी ।
वो इधर तर्जनी नहीं करते ।।

ये मुहब्बत है खेल मत मुझसे ।
हम ।कभी दिल्लगी नहीं करते ।

रहनुमाई चली गई जब से ।
बात तब से बड़ी नहीं करते ।।

वोट पाकर वो गया वरना ।
लोग बे ।इज्जती नहीं करते ।।

है मुहब्बत का आसरा जिनको ।
हुस्न की रहबरी नहीं करते ।।

चोट दिल पर लगी है फिर उसके ।
काम ये मजहबी नहीं करते ।।

पेंग गर प्यार की ब बढ़ानी है ।
प्यार में हड़बड़ी नही करते ।।

सिर्फ मिसरे से काम क्या चलता ।
टिप्पणी कुछ किया नही करते ।।

वो निशाने पे तीर था वरना ।
वो कभी खलबली नहीं करते ।।

बैठ जाये कोई मेरे सर पर ।
छूट इतनी खुली नहीं करते ।।

सर फ़रोसी की है तमन्ना अब ।
वार में बुजदिली नहीँ करते ।।

कीमतें वह वसूलते हैं जो।
माल अपना दही नहीं करते ।।

शर्त है जिस्म दिल लगाने की ।
लोग क्या ज्यादती नहीं करते ।।

गर किसानों से वास्ता रखते ।
मुल्क में भुखमरी नहीँ करते ।।

कुछ तबीयत मचल गयी होगी ।
हम कभी आशिकी नही करते ।।

मुफ़्लिशी दौर से जो है वाकिफ़ ।
वो हमारी हसी नहीँ करते ।।

फंस न् जाएं ये पाँव ही अपने ।
हम जमीं दलदली नहीं करते ।।

खास शातिर हैं इश्क के मुजरिम ।
हाथ में हथकड़ी नहीं करते ।।

है छुपाना अगर ये धन काला ।
बिस्तरे मखमली नहीं करते ।।

खर्च का बोझ बढ़ गया जब से ।
बात अब रस भरी नही करते ।।

सर्जिकल हो गई वहां जब से ।
मूछ अपनी तनी नहीं करते ।।

ध्यान देतीं नहीं अगर मैडम ।
आज हम शायरी नहीं करते ।।

मैं तो ठहरा हूँ इस तरह दिल मे ।
आप अब हाजिरी नहीं करते ।।

देश द्रोही है कन्हैया उनका ।
दुश्मनों की कमी नहीं करते ।।

फिर हुए हैं जवान क्यो जख्मी।
लोग क्या मुखबिरी नहीं करते ?

नेकियाँ बेहिसाब हैं उनकी ।
हम कभी भी बदी नहीं करते ।।

क्यों उमीदें लगा के बैठे हो ।
अब्र ये चांदनी नहीं करते ।।

जब से लूटा है लाल कुर्ते ने ।
रेलवे में कुली नहीं करते ।।

बाम पंथी बिके हुए शायद ।
जुर्म पर सनसनी नहीं करते ।।

जब भी मारा है उसने आतंकी ।
क्यों वे जाहिर खुशी नहीं करते ।।

मैं भी आज़ाद हो गया होता ।
तेरे शिकवे बरी नहीं करते ।।

जब से दौलत का हाल जाना है ।
आँख वो शरबती नहीं करते ।।

कोई राधा नहीं दिखे तब तक ।
होठ पर बाँसुरी नहीं करते ।।

काफ़िया वो बना रहे काफी ।
ध्यान हर्फे रवी नहीं करते ।।

गर कलम जारही है मंजिल तक ।
रोक कर मन दुखी नहीं करते ।।

काम ऐसा बचा नहीं कोई ।
अब जिसे आदमी नहीं करते ।।

मिल गया जब से है उन्हें वोहदा ।
बात भी लाजिमी नहीं करते ।।

शुद्ध पण्डित का है लहू रग में ।
काम मे जाहिली नहीं करते ।।

हो गई हाफ सेंचुरी

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Comment

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Comment by Naveen Mani Tripathi on June 25, 2017 at 9:29pm
आ0 गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आभार ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on June 25, 2017 at 9:28pm
भाई जयनित मेहता जी आभार मित्र
Comment by जयनित कुमार मेहता on June 25, 2017 at 3:38pm
काम ऐसा बचा नहीं कोई ।
अब जिसे आदमी नहीं करते ।।

इस शेर ने अकेले ही दिल लूट लिया आदरणीय।
ग़ज़ल भी बहुत अच्छी हुई है।
हाफ सेंचुरी के लिए विशेष बधाई आपको।।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 23, 2017 at 10:15pm

सुभान  अल्लाह -------- ऐसा तो किसी ने नहीं किया .  एक प्रयोग के रूप  में  यह प्रयास ठीक कहा जाएगा पर मेरी मति में गजल इतनी बड़ी नहीं होनी चाहिए. सादर , साधुवाद .

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