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सौगंध के बंधन ....

सौगंध के बंधन ....

मुझे
सब याद है
समय की गर्द में
कुछ भी तो नहीं छुपा
न तुम
न तुम्हारी
आँखों में आंखें डालकर
सात जन्मों तक
साथ निभाने की
सौगंध

चलते रहे
चलते रहे
साथ साथ
इक दूजे के दिल में
पुष्प भाव से गुंथे हुए
अर्थपूर्ण तृषा
और अर्थपूर्ण तृप्ति की
अभिलाष के साथ
इक दूसरे  के
अंतर्मन को छूते हुए

कब यथार्थ की नदी पर
एक किनारे ने
दूसरे किनारे को जन्म दे दिया
कुछ पता ही न चला

धीरे धीरे
हम का
विभाजन होने लगा
हमारा अस्तित्व
मैं और तुम के
किनारों में
परिवर्तित हो गया

सहर और सांझ का
खेल चलता रहा
शशांक
प्रणय को मचलता रहा
मैं शून्यता के
स्वरों को
अपनी आशा के दीपों से
प्रज्जवलित करती रही
ये जानते हुए भी कि तुम
अब शायद
लौट के न आओ

तुम अपने अहं के पाँव से
हर सौगंध को कुचल
चले गया
पर मैं न कुचल सकी
तुम्हारे स्पंदन
प्रणय पल
बिखरे हुए केश
और
टेबल पर रखा
अवसाद को जीता
काफ़ी का मग
जिसे उठा कर
तुमने खाई थी सात

सात जन्मों की सौगंध


तुमने भुला दी
पर मैं
बंधी रही
अपनी पलकों के किनारों पर
असंभव में
संभव को तलाशती
एक पराजित
सौगंध के बंधन में

अपने प्रणय को 

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 768

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Comment by Sushil Sarna on June 25, 2017 at 2:36pm

आ.सुनील प्रसाद जी सृजन आपकी आत्मीय प्रशंसा का आभारी है। 

Comment by Sushil Sarna on June 25, 2017 at 2:36pm

आ. विजय नोकोर साहिब सृजन के भावों को प्रशंसित करने का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on June 25, 2017 at 2:36pm

आ.डॉ. गोपाल जी भाई साहिब आपके मुखारविंद से निकले आशीर्वचनों से सृजन उपकृत हुआ।  हार्दिक आभार सर।

Comment by Sushil Sarna on June 25, 2017 at 2:36pm

आदरणीय मो. आरिफ़ साहिब सृजन के भावों को आत्मीय समर्थन देने का हार्दिक आभार। 

Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on June 24, 2017 at 2:02pm
बहुत ही भावपूर्ण रचना बधाई आपको ।
Comment by vijay nikore on June 24, 2017 at 11:13am

बहुत ही सुन्दर सर्जन किया है। बधाई, आदरणीय सुशील जी।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 23, 2017 at 9:23pm

वाह , आदरणीय सरना जी , बहुत  ही भावपूर्ण रचना . जय हो .

Comment by Mohammed Arif on June 23, 2017 at 8:40pm
आदरतीय सुशील सरना जी आदाब, बेहतरीन भावों की 'सौगंध के बंधन' से अनुबंधित रचना । बधाई स्वीकार करें ।

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