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दशा और दिशा [लघुकथा] /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"कहता था न कि अच्छा साहित्य पढ़ा करो, अच्छी वेबसाइट पर ही जाया करो, वरना भटकने में देर नहीं लगती!"

"सबकी नज़र में 'अच्छा' एक जैसा हो, ज़रूरी तो नहीं? मेरी नज़र में यही सब 'अच्छा' था!" दोस्त की बात का जवाब देते हुए उसने सारी पर्चियां टेबल पर फैला दीं।

"तुम लड़कियों और औरतों के जितने नज़दीक़ गये, उतने ही औरत जात से दूर होते गये, क्या मिला तुम्हें?"

पर्चियां फिर से काँच के जार में डालते हुए दोस्त की बात का जवाब देते हुए उसने कहा- "जो नम्बर इन पर्चियों में लिखे हैं न, वे मेरी पसंद की अविवाहित और विवाहित महिलाओं या लड़कियों के एलबम नम्बर हैं!"

"कॉल-गर्ल्स?"

"हाँ, पहले कॉल-गर्ल्स थीं, अब मेरी रिकॉल-गर्ल्स हैं यादों की। कुछ इन्टरनेट की मॉडल्स और कुछ पोर्न-स्टार्स के फोटो नम्बर हैं ये। मैंने तो दोस्त दुनिया देख ली इतनी कम उम्र में! अब मरने का दुख भी न होगा!"

"फिर पूछता हूँ कि अपने पिताजी की दौलत यूँ उड़ा कर तुम्हें क्या मिला?" दोस्त ने उससे कहा।

अपनी मरियल सी काया को जोर का झटका देते हुए बैठ कर वह बोला- "क्या मिला? साहित्य और ज्योतिष की पुस्तकों में औरत के बारे में जो कुछ भी पढ़ा था, वह सब नज़दीक़ से जाना! शोध किया है मैंने औरतों पर, लड़कियों पर!"

"और फिर अविवाहित ही रह गया न, बीमारियाँ पाल कर! अब कोई लड़की या औरत आती है तुम्हारे नज़दीक़ इस कंगाली में!"

"यह मेरे शोध का विषय न था और न है!"

"तो तेरे वाले शोध से तुझे क्या मिला?"

"मैंने जान लिया मर्दों का सच और मर्दो की औक़ात!" यह कहते हुए उसने दोस्त की ओर देख कर कहा- "आज भी मर्द ही लड़कियों और औरतों को दशा और दिशा देता है!"

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 25, 2017 at 3:22pm
मोहतरम जनाब गिरिराज भंडारी साहब, आप जैसे मंझे हुए ग़ज़लकार, लघुकथाकार की लघुकथाग्राफी से भी हम सीखने की कोशिश करते हैं !
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 25, 2017 at 3:15pm
मेरी इस पोस्ट पर समय देकर अपने विचार साझा करने व हौसला अफ़ज़ाई हेतु बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ साहब, डॉ. आशुतोष मिश्र जी, जनाब तस्दीक़ अहमद खान साहब और जनाब गिरिराज भंडारी साहब।

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Comment by गिरिराज भंडारी on March 23, 2017 at 9:03am

बहुत खूब ... मै इस् विधा की बारीकैयाँ नही समझ सकता .. बात बहुत अच्छी लगी । बधाई

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 21, 2017 at 8:12pm
आदरणीय शेख जी वर्तमान सामाजिक परिदृश्य का खूब् चित्रण किया हैं आपने इस गंभीर लघुकथा से इस रचना पर हार्दिक बधाई सादर
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 19, 2017 at 7:36pm

मुहतरम जनाब शेख शहज़ाद उस्मानी साहिब , समाज को आईना दिखती हुई सुंदर
लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ---

Comment by Mohammed Arif on March 19, 2017 at 6:26pm
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब, आधुनिक समाज के चरित्र का उजागर करती लघुकथा । बधाई स्वीकार करें ।

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