For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हर पर्व से पहले आते थे तुम

हँसती-हँसती, मैं रंगोली सजा देती ...

नाउमीदी में भी कोई उमीद हो मानो

मेरी अकुलाती इच्छाएँ तुम्हारी राह तकती थीं

श्रद्धा के द्वार पर अभी भी मेरे प्रिय परिजन

सूर्य की किरणें ठहर जाती हैं

चाँद जहाँ भी हो, पर्व की रातों कोई आस लिए

आकर छत पर रुक जाता है

तन्हा मैं, सोच-सोच में

ढूँढती हूँ बाँह-हाथ तुम्हारे

स्पर्श से पूर्व विलीन हो जाते हैं स्पर्श

उदास साँवले दिन की कलौंस

अन्धकार-अम्बर में हर रोज़

एक और लेप लगा जाती है

आन्तरिक खामोशी की दीवार

समय से और मोटी हुई जाती है

स्नेहिल शब्द ओंठों से तुम्हारे

सुखद बारिश-से बरसते

महकते थे वीरान हवाओं में भी

पर प्रणय के सूर्योदय से पहले ही

तुम चले गए क्षितिज के उस पार

दूर, बहुत दूर कहीं, मेरी पहुँच से परे

अनगिन अग्निमय फ़ासले, सदैव के लिए

मेरी सिकुड़ती बदनसीब सोच से भी परे

समय के खँडहरों के उजाड़ प्रसारों मे

मेरी आत्मा के कण्टकित एकान्तों में

ढूँढती रहती हूँ तुम्हारे वही स्नेहिल शब्द

आँसुओं-सिंचे अब दुखजनित शब्द

हृदय में बहती रहती है तुम्हारे प्रति स्नेह-लहरी

ममतामयी गंगा की लहरों-सी

तुम्हारे संवेदनमय सुगंधित शब्दों का विस्तार

मुस्काता है हर दिन मेरे क्षितिज के आर-पार

---------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 718

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on August 2, 2017 at 11:05am

अभी अपनी पुरानी पोस्ट से गुज़रा तो देखा कि मुझको आपसे मिली सराहना का आभार प्रकट करना रह गया। क्षमाप्रार्थी हूँ, आदरणीय नरेन्द्र्सिहं जी। हृदयतल से आपका धन्यवाद।

Comment by vijay nikore on August 2, 2017 at 11:04am

// ह्रदय की संवेदनाओं को बहुत ही खबसूरती से शब्दों में पिरोया है //

अभी अपनी पुरानी पोस्ट से गुज़रा तो देखा कि मुझको आपसे मिली सराहना का आभार प्रकट करना रह गया। क्षमाप्रार्थी हूँ, आदरणीय बृजेश जी। हृदयतल से आपका धन्यवाद।

Comment by vijay nikore on March 5, 2017 at 7:30am

रचना को समय देने के लिए आपका हार्दिक अभार, आदरणीय गोपाल नारायन जी।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 7, 2017 at 8:25pm

संचारी भावों में  'स्मृति' ' आपकी साधना का  प्रमाणिक दस्तावेज है . शुक्र है सर इस बार आप फनी विहीन सर्प की भाँति  सिर पटकते नजर नहीं  आये , इस बार स्मृतियाँ राहत सी दे रही हैं  . आ० निकोर जी . 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 4, 2017 at 10:07pm
ह्रदय की संवेदनाओं को बहुत ही खूबसूरती से शब्दों में पिरोया है आदरणीय..बहुत ही सुन्दर
Comment by narendrasinh chauhan on February 4, 2017 at 6:46pm

खूब सुन्दर रचना। ..

Comment by vijay nikore on February 3, 2017 at 9:42am

//हमेशा की तरह कविता पाठक को बांधे रखती है एक संवाद स्थापित कर लेती है//

आपसे मिली यह प्रतिक्रिया मेरे लिए पारितोषिक है। हार्दिक आभार, आदरणीया राजेश जी

Comment by vijay nikore on February 3, 2017 at 9:41am

//सरल शब्दों में गहन भावों की सरिता जो दूर तक अपने साथ ले जाती है। इस अप्रतिम प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई//

इस प्रकार अमूल्य प्रतिक्रिया से मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सुशील जी

Comment by vijay nikore on February 3, 2017 at 9:39am

//हर बार की तरह एक प्रभावशाली प्रस्तुति जो पाठक को बहा ले जाती है अपने साथ//

इन सुन्दर शब्दों से मुझको प्रोत्साहन देने के लिए आपका हार्दिक आभार, मित्र मिथिलेश जी

Comment by vijay nikore on February 3, 2017 at 9:36am

//हमेशा की तरह आपकी ये कविता भी दिल को छू गई//

रचना को मान देने के लिए आपका हादिक आभार, आदरणीय भाई समर जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी हार्दिक धन्यवाद आपका।सादर।"
9 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम. . . . रोटी
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। रोटी पर अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
14 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आदाब।‌ हार्दिक धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' साहिब। आपकी उपस्थिति और…"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं , हार्दिक बधाई।"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया छंद
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रेरणादायी छंद हुआ है। हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आ. भाई शेख सहजाद जी, सादर अभिवादन।सुंदर और प्रेरणादायक कथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"अहसास (लघुकथा): कन्नू अपनी छोटी बहन कनिका के साथ बालकनी में रखे एक गमले में चल रही गतिविधियों को…"
yesterday
pratibha pande replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"सफल आयोजन की हार्दिक बधाई ओबीओ भोपाल की टीम को। "
Friday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service