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गीत-गुलसितां दिल का खिलाते रह गए//(अलका ललित )

2122 2122 212
.
गुलसितां दिल का खिलाते रह गए
फासले दिल के मिटाते रह गए
गुलसितां दिल का........

.

चाहतें अपनी बड़ी नादान थी
इश्क की राहें कहा आसान थी
फिर भी हम कसमें निभाते रह गए
फासले दिल के मिटाते ......

.

हाथ में तेरे मेरा जब हाथ हो
जिंदगी कट जाएगी गर साथ हो
हम भरोसा ही जताते रह गए
फासले दिल के मिटाते ...

.

चाह थी तो छोड़ कर ही क्यूँ गया
वास्ता देकर वफ़ा का क्यूँ भला
बेवजह दामन हि थामे रह गए
फासले दिल के मिटाते....


गुलसितां दिल का खिलाते रह गए

फासले दिल के मिटाते रह गए...

.

"मौलिक व अप्रकाशित" 

Views: 736

Comment

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Comment by अलका 'कृष्णांशी' on January 26, 2017 at 7:18pm

आदरणीय Dr.Aahutosh Mishra ji  , रचना को समय देने और पसन्द करने के लिए बहुत धन्यवाद । सादर

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on January 26, 2017 at 7:17pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , रचना को समय देने और पसन्द करने के लिए बहुत धन्यवाद । सादर

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 20, 2017 at 3:39pm

आदरणीया अलका जी शानदार गीत रचा है .इस गीत के लिए हार्दिक शुभकामनाये स्वीकार करें सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 19, 2017 at 9:38am

आदरणीया अलका जी , बढिया गीत रचा है आपने , दिल से बधाइयाँ !

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on January 17, 2017 at 4:07pm

आदरणीय Mohammed Arif जी ,रचना को समय देने और पसन्द करने के लिए बहुत धन्यवाद । सादर

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on January 17, 2017 at 4:06pm

आदरणीय समर कबीर जी ,रचना को समय देने और पसन्द करने के लिए बहुत धन्यवाद । सादर

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on January 17, 2017 at 4:03pm

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी ,आपको प्रयास पसन्द आया इसके लिए धन्यवाद। सादर

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on January 17, 2017 at 3:59pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी ,आपको प्रयास पसन्द आया इसके लिए धन्यवाद। आपने रचना को  समय दिया साथ ही उचित मार्गदर्शन के लिए बहुत आभार आपका। आपके सुझाव अनुसार संशोधन किया है।सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 17, 2017 at 12:26pm

आदरणीया अलका ललित जी, बढ़िया गीत लिखा है बधाई. गीत में मुखड़े का बार बार दोहराव प्रस्तुति को बोझिल बना देता है. संभव हो तो टेक की पंक्ति का भी दुहराव न हो. पाठक स्वयं टेक की पंक्ति गुनगुनाने लगते है. सादर 

Comment by नाथ सोनांचली on January 17, 2017 at 11:55am
आद0 अलका ललित जी सादर अभिवादन, अच्छा गीत है, बधाई स्वीकार करें।

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