For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सैंटा क्लॉज़ (अतुकान्त कविता)

टाँग देना दरवाज़े पर अपने मोज़े
रख देना खिड़कियों पे चमका कर जूते
और फिर
सो जाना जल्दी
अच्छे बच्चों की तरह
क्योंकि
आने वाला है सैंटा क्लॉज़
ले कर अपने झोले में
ढेर सारे गिफ्ट्स
जैसे...
रोटिनुमा केक
शिक्षारूपी कैण्डी
टॉफ़ी का घर
चिकित्सा की चॉकलेट
रोज़गार का बिस्कुट
सुरक्षा, सम्मान व न्याय के
रंग-बिरंगे खिलौने
ख़ुशियों की टोपी
और अच्छे दिनों का
झुनझुना
तुम्हारे मोज़ों और जूतों में
भरने के लिए
अपनी ताजपोशी की
पूर्व संध्या पर
इन संकरी चिमनियों से
चुपके से उतर कर
ठीक वैसे ही
जैसे आता रहा है वो
पिछली कई सदियों से
स्लेज पर बैठ हुए
कभी दाँये
तो कभी बाँये
जिसे खींच रहे होते हैं
आठ जादुई रेनडियर
जो ढाल लेते हैं स्वयं को
मौसम के अनुसार
और पहुँचा देते हैं सैंटा को
तुम्हारे घरों से होते हुए
संसद के अन्दर तक।
पर...
क्या पिछले वाले सैंटा ने तुम्हें
दिए थे ये गिफ्ट्स?
और उससे पहले वाले सैंटाओं ने?
यदि हाँ
तो कहाँ गए ये गिफ्ट्स
सुबह होने से पहले ही
रातों रात?
कहीं तुम्हारे मोज़ों और जूतों में
कोई बहुत बड़ा छेद तो नहीं?
अगर हाँ
तो किसने किये थे ये छेद?
और क्या सी लिया है तुमने इन्हें इस बार
या ये अभी भी वैसे के वैसे हैं?
क्या इस बार भी अगर
सैंटा न आया गिफ्ट ले कर
तो बन्द कर दोगे उस पर विश्वास करना?
कहोगे उसे धोखेबाज़?
या कि चुन लोगे फिर कोई नया सैंटा
जैसा कि करते आये हो हर बार?
आखिर ये तुम्हारा प्यारा सैंटा
रात को ही क्यों आता है?
और क्यों सुला दिया जाता है तुम्हें जल्दी
सैंटा के आने से पहले ही?
कहीं इसके पीछे
कोई बहुत बड़ा षड़यंत्र तो नहीं?
तुम्हें तुम्हारे प्यारे-प्यारे गिफ्ट्स से
दूर रखने का?
यदि ये सच है
तो बात गम्भीर है
इसलिए इस बार
पता करो क्रिसमस पर
कौन सुलाता है तुम्हें?
क्या वही
जो कहता है सैंटा आएगा
उस पर विश्वास रखो?
या वो
जिसके बनाये हुए लाल-सफ़ेद कपड़े
पहनता है सैंटा?
या कि फिर वो
जो बता देता है जा कर
दयालु सैंटा से
कि सपने देखना
तुम्हारी कमज़ोरी है
बचपन से ले कर
अब तक?
और ये भी पता करो
कि ये सैंटा क्लॉज़
क्यों बजाता है
क्रिसमस बेल?
कहीं वह तुम्हारे बहरेपन का
मज़ाक तो नहीं उड़ाता
हो हो हो...
करते हुए?

[स्लेज = बिना पहियों की गाड़ी, रेनडियर = एक प्रकार का हिरण]

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 592

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mahendra Kumar on December 26, 2016 at 6:56am
आपका बहुत-बहुत आभार आदरणीय डॉ. गोपाल नारायन जी। सादर।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 25, 2016 at 6:20pm

आहा महेंद्र जी , शब्द दर शब्द आप हृदय में उतारते चले गए . इस प्रस्तुति पर आपको बहुत बहुत बधाई.

Comment by Mahendra Kumar on December 25, 2016 at 4:37pm
आदरणीया प्रतिभा जी, रचना को पसंद करने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार। सादर।
Comment by Mahendra Kumar on December 25, 2016 at 4:33pm
//मुझे लगा जैसे आपने मेरे दिल के दर्द को शब्द दे दिए// यह मेरे लिए बहुत बड़ा सम्मान है आदरणीय मिथिलेश सर। आपके शब्दों ने मुझे लिखने की प्रेरणा दी है। आपका हृदय ताल से बहुत-बहुत आभारी हूँ। सादर धन्यवाद।
Comment by Mahendra Kumar on December 25, 2016 at 4:28pm
हार्दिक आभार आदरणीय आशीष जी। सादर।
Comment by Mahendra Kumar on December 25, 2016 at 4:27pm
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय समर कबीर सर। सादर।
Comment by pratibha pande on December 24, 2016 at 9:09am

ये सारे सेंटा हमारे सपनों में सेंध लगाते आये   हैं और आगे भी लगाते रहेंगे ..जरूरत है हम खुद अपने सेंटा बन जाएँ ...इस वैचारिक अतुकांत के लिए बधाई आपको आदरणीय महेंद्र जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 24, 2016 at 1:31am

आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, अतुकांत में ऐसा अद्भुत प्रवाह देखकर मुग्ध हो गया. और रूपक देखकर चकित हूँ. सैंटा के बहाने आपने क्या खूब कलई खोली है. परत दर परत जो और जैसा खुलना था खुलता गया है. वह प्रस्तुति श्रेष्ठ होती है जो पाठक को अपनी सी लगे. मुझे लगा जैसे आपने मेरे दिल के दर्द को शब्द दे दिए. बहुत बढ़िया. दिल बधाईयाँ स्वीकारें. सादर 

Comment by आशीष यादव on December 23, 2016 at 2:00am
Bahut sundar roopak prastuti. Achchhi kawita hetu badhai.
Comment by Samar kabeer on December 21, 2016 at 5:06pm
जनाब महेन्द्र कुमार जी आदाब,बहुत बढ़िया कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
1 hour ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
10 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
10 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service