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ग़ज़ल....ऐ मुहब्बत मैं तेरा सजदा करूँ

बहरे रमल मुसद्दस् महज़ूफ़
फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
2122 2122 212
ऐ मुहब्बत मैं तेरा सजदा करूँ
रुख बदलती ज़िन्दगी है क्या करूँ

मोड़ पे रुकना पलट कर देखना
हाय उनकी सादगी का क्या करूँ

कुछ घड़ी बैठो हमारे रूबरू
भूल कर जग को तुम्हें देखा करूँ

थरथराती धड़कनों को थाम लो
दर्द को रख ताक पर जलसा करूँ

दूरियाँ हों लाख पर मुमकिन नहीं
नाम लूँ उनका उन्हें रुसवा करूँ

(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार'ब्रज'

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 25, 2016 at 11:26pm
आपके आशीर्वाद से सृजन सार्थक हुआ आदरणीय गिरिराज भंडारी जी...हार्दिक आभार
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 25, 2016 at 11:25pm
रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं आभार आदरणीय रामबली गुप्ता जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 25, 2016 at 10:07am

आदरनीय बृजेश भाई , बहुत अच्छी गज़ल हुई है , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by रामबली गुप्ता on October 25, 2016 at 1:44am
वाह सुंदर ग़ज़ल हुई है। दिल से मुबारकबाद लीजिये।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 23, 2016 at 10:36pm
हौसलाफ़ज़ाई का तहेदिल से शुक्रिया ज़नाब tasdiq ahmed khan साहब
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on October 23, 2016 at 7:43pm

 जनाब ब्रजेश कुमार     साहिब,  बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल हुई है दाद के साथ  मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं --

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 23, 2016 at 3:17pm
रचना पटल पे आपकी गरिमामई उपस्थिति वंदनीय है आदरणीय समर साहब..आभार संग नमन
Comment by Samar kabeer on October 23, 2016 at 3:12pm
जनाब बृजेश कुमार'ब्रज'साहिब आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।

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