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हे पथिक!
कुछ देर ठहर।

ले स्वास ,बांध आस
चलना ही तेरा काम
पर चलने का उद्देश्य
फिर सन्धान
चलते-चलते थका हुआ
उद्देश्य से भटका हुआ
कर तो तनिक आराम

हे पथिक!
कुछ देर ठहर।
कुछ सोच!
तूने जो अपना
पन्थ चुना है
सोच तो क्या
तू ठीक चला है?
या वह पन्थ ही
तुझको भटकाता
हुआ आगे बढ़ा है

पूरा रास्ता
तू भरमाया
खोता चला तू
न कुछ पाया
अब तो अपना
ध्येय बनाले
उस की लौ से
लौ तू लगाले
उसके लिए बीते
तेरी हर पहर

हे पथिक !
कुछ देर ठहर।

~~~~~~~~~~~~~~~~
मौलिक एवम् अप्रकाशित

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Comment

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on March 17, 2016 at 11:36pm
आभार आदरणीय पंकज भाई
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 17, 2016 at 3:09pm
सुन्दर

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