For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

फेरे '

घर के काम से फ़ुरसत हो थोड़ा आराम करने जा ही रही थी , वक़्त बेवक्त घंटी के बजते ही मन में आया इस समय कौन होगा, अभी सूरज के आने का समय तो हुआ नहीं है, दरवाज़े पर पति को देख मैं चकित रह गई।
"अरे आप !!!!" पति को अचानक सामने ,पसीने से तरबतर देख ,अपने आप को बोलने से रोक ना पाई।
पानी लेने जा रही थी, सूरज ने हाथ पकड़ कर रोक लिया।
"तुमसे कुछ कहना है मुझे सुमन, मैं फिसल गया, रोशनी से संबंध बना बैठा , मुझे माफ़ करोगी ना मुझे हर सज़ा मंज़ूर है।
तुम्हारे,बच्चों के बिना नहीं रह सकता। अब सब छोड़ दुंगा।" वह फूट फूट कर रोने लगा।

"अरे क्या हुआ है, आपको कौन छोड़ रहा है, अर्धागिंनी हूं, मुझे सब पता है, पर भरोसा था, विवाह के सात फेरे तुम्है घर वापिस लायेंगे ।

नीता कसार जबलपुर

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 529

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nita Kasar on December 29, 2015 at 12:57pm
आपका हार्दिक आभार आद०प्रतिभा पांडे जी ।दारोमदार दोनों पर है,सुबह का भूला शाम को घर वापस आ जाये तो उसे उसे भूला नही कहते है।पर यदि कोई एक भटके तो दूसरा उसे संभाल लें।पत्नि स्वार्थी नही होती वह दूरदृष्टि भी रखती है ।
Comment by Nita Kasar on December 29, 2015 at 12:50pm
कथा पर राय रखने के लिये,उत्साहवर्धन के लिये हार्दिक आभार आपका आद०आशतोष मिश्रा जी ।
Comment by pratibha pande on December 29, 2015 at 9:30am

 विवाह संस्था  मज़बूत होनी  ही चाहिए क्यों कि इससे सिर्फ दो व्यक्ति ही नहीं आने वाली पीढ़ी और स्वस्थ सामाजिक ढांचा भी जुड़ा है, ये बात भी सही है कि  इसका पूरा दारोमदार सिर्फ स्त्री पर ही क्यों ..?  आपकी कथा सोच को झंकझोरती है , बधाई आपको इस रचना पर आदरणीया  

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 28, 2015 at 8:14pm

आदरणीया नीता जी ..इस रचना के माध्यम से बिबाह संस्था के जड़ो की गहराई को जिस बेहतरीन तरीके से आपने इंगित किया है काबिले तारीफ़ है .....इस रचना पर मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by Nita Kasar on December 28, 2015 at 7:32pm
बिल्कुल पत्नि को घर निकाला मिलता सीता की तरह,कलयुग में सभी पति राम नही होते पर पत्नि सीता सरीखी चाहते है जो अग्नि परीक्षा देकर चरित्र साबित करें ।कथा पर राय रखने के लिये आपका ।
Comment by Nita Kasar on December 28, 2015 at 7:23pm
जी अमूमन पत्नि का उद्देश्य घर बचाना ही होता है इसलिये भरोसा करती है ।कथा पर उपस्थित हेतु हार्दिक आभार आद०सतविंदर कुमार जी ।
Comment by Pradeep kumar pandey on December 28, 2015 at 4:14pm

 एक प्रश्न पूछना चाहूंगा आदरणीय  Nita Kasar जी ,अगर इससे उलट पत्नी पति को बताती कि वो भटक गई थी तो पति का क्या जवाब होता , ?

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 28, 2015 at 12:44pm
सुंदर अभिव्यक्ति।ऐसा कमतर ही हो पाता है।बहुत ही उम्दा विषय चयन हुआ है,आदरणीया।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
8 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service