For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हवा का झोंका (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी (42)

"बगल में दूसरी झुग्गी का इन्तज़ाम कर दिया, फिर भी तुम हमरे बेटे को ही हमसे से दूर करके सुखी रह सकती हो किराये के मकान में, तो जाओ, हम दोनों तो यहीं अपनी झुग्गी झोपड़ी में ही बाक़ी ज़िन्दगी बिता देंगे ! " - सावित्री ने बड़े उदास मन से बहू से कहा।

"देखो, मांजी, हमारे बच्चे बड़े हो गए हैं, अंग्रेजी मीडियम स्कूल में पढ़ेंगे, तो हमारा इस टिन- टप्पड़ वाली झुग्गी में रहना उन्हें और उनके दोस्तों को कैसा लगेगा ? मेरे मायके वाले भी यहाँ आना पसंद नहीं करते !"

"अगर तुम दोनों इतना कमा लेते हो, तो ठीक है, तुम्हारी जैसी मर्ज़ी ! लेकिन हमरा नसीब तो देखो, ये हमारा वही बेटा है जिसने खेती करने से मना कर दिया था और हम सबको शहर लेकर आया था यह कहकर कि ख़ूब कमायेगा और हमरे कैंसर का इलाज़ करायेगा ! "- ये कहकर सावित्री अपने आँसुओं को रोकने की कोशिश करने लगी।

" तुमने अपनी जी ली, अब तो हमें जी लेने दो अपने हिसाब से ! आते जाते तो रहेंगे न ! और ससुर जी इतनी मज़दूरी तो कर ही लेते हैं कि तुम दोनों का गुज़ारा चल जाये ! " -बहू ने अपना सामान बांधते हुए कहा - "मांजी, हम क्या कर सकते हैं, तुम्हारा कैंसर तो अब लाइलाज़ है, हम अपनी ज़िन्दगी में कैंसर क्यों लगायें !"

"कैंसर तो बहू तुमने मेरे बेटे को लगाया है शहर की आवो-हवा का ! "

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 439

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 16, 2015 at 5:12pm
तहे दिल बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय सतविंदर कुमार जी व आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, मेरी रचना पर टिप्पणी करने व सराहना करने के लिए।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 10, 2015 at 6:18am
हालात से भागना किसी की मजबूरी तो किसी के लिए जरुरी।पर रिश्तों से भाग जाना सच में अनुचित लगता है।भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय उस्मानी जी।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 9, 2015 at 11:10am

इस बेहतरीन लागूकथा के लिए हार्दिक बधाई

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 9, 2015 at 2:12am
मेरे ब्लोग पर उपस्थित हो कर रचना का अवलोकन कर समीक्षात्मक टिप्पणी के द्वारा मुझे प्रोत्साहित करने के लिए तहे दिल बहुत बहुत शुक्रिया जनाब सुनील वर्मा जी।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 8, 2015 at 4:54pm
उपेक्षा के ज़हर की समाज के समक्ष चुनौतियों पर रोशनी डालते हुए मुझे प्रोत्साहित करने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय सुशील सरना जी।
Comment by Sushil Sarna on December 8, 2015 at 12:50pm

आदरणीय शेख उस्मानी साहिब आज की हवा को आपने बहुत ही संजीदगी से पेश किया है। आज सब सम्बन्ध मैं में सिमट कर रह गए हैं। हम और हमारे जैसे शब्द कहीं किताबों में दफन हो गए हैं। व्यक्तिगत स्वार्थ के आगे हर दुःख दर्द गौण हो गए हैं। इस बढ़ती मानसिकता के लिए आखिर कौन दोषी है - हम -जो उन्हें संस्कार देते हैं , शिक्षा - जो ज्ञान देती है , रिश्ते - जो जीने का भाव सिखाते हैं , सोसाईटी - जो हर संस्कार ,हर ज्ञान ,हर रिश्ते से ऊंची है -- आखिर कौन है दोषी ? हमें सोचना होगा वरना उपेक्षा का ज़हर समाज को आत्महीन कर देगा।  बहरहाल इस संदेशप्रद लघुकथा के लिए के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
16 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , खूब सूरत मतल्ले के साथ , अच्छी ग़ज़ल कही है , हार्दिक  बधाई स्वीकार…"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल  के शेर पर आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया देख मन को सुकून मिला , आपको मेरे कुछ…"
18 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service