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उत्कृष्ठ रचना बबीता जी
जायज़ , कितना जायज़ है ये तो वक़्त ही बताएगा , जो सही है वही यहां टिक पायेगा।
मुहब्बत हो या जंग लड़ाई तो नियम और मानको पर ही खेले जाए तो जीत ख़ुशी देती है।
दिखावे का जीत ये क्षणभंगुर होता है।
आत्मा तिल -तिल करके जलती रहती ऐसे ऐसे शहसवारों के।
बधाई स्वीकार करें आदरणीय बबिता जी इस अनुपम लघुकथा के लिए।
बहुत चुस्त और सार्थक लघु कथा हुई प्रदत्त विषय पर स्वार्थपरता की घिनौनी चाल का जीता जागता उदाहरण है ये लघु कथा हार्दिक बधाई आपको बबीता जी
एक बढ़िया रचना के लिए बधाई आपको आदरणीय बबिता जी
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