For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"माँ तो माँ है न "- (लघु कथा)

गुड्डी पर स्नेह की वर्षा पर उस समय क्षणिक विराम लगा जब सुमित ने अचानक कक्ष में प्रवेश किया।
"अरे, क्या आज ज़ल्दी आ गयीं थीं स्कूल से?"- सुमित ने आश्चर्य से पूछा।
"नहीं, आज मैं गई ही नहीं, छुट्टी ले ली मैंने ! मालूम है न तुम्हें, आज मैं कितनी अपसेट हूँ !"
"तुमसे कितनी बार कहा दीपा कि जब हमारे बीच बहस शुरू हो जाती है, तो तुम कुछ देर के लिए चुप्पी साध लिया करो। कहीं की भड़ास कहीं निकाली तुमने। सोचो अगर ये फोम का गद्दा न होता तो क्या होता। गुड्डी को इतनी ज़ोर से चांटा मारा तो मारा...... तुमने तो ताक़त से उसे बिस्तर पर भी पटक दिया ? कोई चोट -मोच आ जाती तो ?"

दीपा के बड़े बड़े नैत्रों से फिर से पश्चाताप के आँसू बहने लगे। गुड्डी को सीने से लगा कर उसने सारा गुबार निकाल दिया -" भड़ास तो मुझ पर निकाली जा रही है ।काम काज में सास- ननंद का कोई सहारा नहीं । ऊपर से दूध पर्याप्त नहीं उतरता। गुड्डी ऊपर का कुछ लेती ही नहीं अभी । ये भी तो कुछ चिड़चिड़ी सी हो गयी है। इसका क्या कसूर। दादी को तो पोता चाहिए था । पर माँ तो माँ है न !"

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 551

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 2, 2015 at 10:45pm
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय Krishna Mishra "jaan" Gorakhpuri जी कथा को पसंद कर प्रोत्साहन देने के लिए। क्षमा करें , कथा को अंत तक पढने पर सब स्पष्ट हो जाता है कि यह पति-पत्नि के मध्य वार्तालाप है। फिर भी यह सही है कि एक पंक्ति में सुधार कर यह लिखने से पाठकगण को परेशानी न होती-
"सुमित ने आश्चर्य से अपनी पत्नी से पूछा।" - संकेत करने के लिए सादर बहुत बहुत धन्यवाद।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 2, 2015 at 10:38pm
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया राजेश कुमारी जी मेरी रचना पर उपस्थिति दर्ज कर समीक्षा करते हुए मुझे प्रोत्साहित करने के लिए।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on October 2, 2015 at 11:44am

वार्तालाप ले क्रम में कौन-किससे कह रहा है,इसे समझने में समय लग रहा है, जिससे कथा बाधित सी लगी मुझे!

सार्थक विषय पर सुन्दर लघुकथा हार्दिक बधाई आ० शेख़ शहजाद उस्मानी ज़ी!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 2, 2015 at 8:33am

कामकाजी महिला को किसी का सहारा न होने पर यूं चिडचिडा होना स्वाभाविक है हर तीसरे घर की समस्या हो गई है ये पर मेरा विचार ये ही है कि जब तक बच्चों की परवरिश का सवाल है या तो उनका कोई सही बंदोबस्त हो ,या नौकरी मत करो या बच्चे सही वक़्त पर पैदा करो ,किन्तु इस लघु कथा में माँ बहन हैं किन्तु सहायता नहीं करती क्यूंकि उन्हें लड़का चाहिए था यह भी एक मुख्य पहलु है जो विचारणीय है बहुत कुछ प्रश्न खड़े करती हुई इस सुन्दर लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई आपको आ० शेख़ शहजाद जी 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 29, 2015 at 4:59am
तहे दिल बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया Nayana(Arati) Kantikar जी मेरी रचना पर उपस्थिति दर्ज कर प्रोत्साहन देने के लिए।
Comment by नयना(आरती)कानिटकर on September 28, 2015 at 11:12pm

वाह बढिया लघु कथा हुई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं हम कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२जब जिये हैं दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं हम कान देते आपके निर्देश हैं…See More
1 hour ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service