For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्यार/लघुकथा /कान्ता राॅय

पति को आॅफिस के लिये विदा करके ,सुबह की भाग - दौड़ निपटा पढने को अखबार उठाया , कि दरवाजे की डोर बेल बज उठी ।
"इस वक्त कौन हो सकता है !" सोचते हुए दरवाजा खोला। उसे मानों साँप सूँघ गया । पल भर के लिये जैसे पूरी धरती ही हिल गई थी । सामने प्रतीक खड़ा था ।

"यहाँ कैसे ?" खुद को संयत करते हुए बस इतने ही शब्द उसके काँपते हुए होठों पर आकर ठहरे थे ।

"बनारस से हैदराबाद तुमको  ढूंढते हुए बामुश्किल पहुँचा हूँ ।" वह बेतरतीब सा हो रहा था । सजीला सा प्रतीक जैसे कहीं खो गया था ।
"आओ अंदर, बैठो ,मै पानी लाती हूँ ।"

"नहीं , मुझे पानी नहीं चाहिए, मै तुम्हें लेने आया हूँ , चलो मेरे साथ । "

"मै कहाँ , मै अब नहीं चल सकती हूँ कहीं भी ।"

"क्यों, तुम तो मुझसे प्यार करती हो ना !"

"प्यार ! शायद दोस्ती के लिहाज़ से करती हूँ ।"

"तुम्हारी शादी जबरदस्ती हुई है ।हमें अलग किया गया है । तुम सिर्फ मुझे प्यार करती हो ।"

"नहीं, तुम गलत सोच रहे हो प्रतीक । मै उस वक्त भी तुमसे अधिक अपने मम्मी - पापा से प्यार करती थी ,इसलिए तो उनके प्यार के आगे तुम्हारे प्यार का वजूद कमजोर पड़ गया । "

"लेकिन जिस इंसान से तुम्हारी शादी हुई उससे प्यार ......"

"बस, अब आगे कुछ ना कहना , वो मेरे पति है और मै सबसे अधिक उन्हीं से प्यार करती हूँ ।उनसे मेरा जन्मों का नाता है । "

"और मै, मै कहाँ हूँ ?  "

"तुम दोस्त हो ,तुम परिकथाओं के राजकुमार रहे हो मेरे लिए, जो महज कथाओं तक ही सिमटे रहते है हकीकत से कहीं कोसों  दूर ।"

"अच्छा , तो मै अब चलता हूँ । तुमसे एकबार मिलना था सो मिल लिया । " बाहर आकर जेब में हाथ डाल टिकट फाड़ कर वहीं फेंक बिना पलटे वो निकल गया और वो जाते हुए उसे अपलक उसके ओझल होने तक यूँ ही वहीं ठिठकी रही ।

मौलिक औऱ अप्रकाशित

Views: 361

Comments are closed for this blog post

Comment by kanta roy on September 9, 2015 at 10:43am
जी , बिलकुल सही कह रहें है आप आदरणीय मिथिलेश जी ,सर जी का हम नवांकुरों के लिये मार्गदर्शन आशीर्वाद है । शत - शत नमन है उनको । मै उन शब्दों के प्रति भविष्य में सचेत रहने की कोशिश करूँगी । आभार आपको कथा पर मेरा हौसला बढाने के लिये ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 8, 2015 at 7:10pm
आदरणीया कान्ता जी बहुत बढ़िया लघुकथा है। इस प्रस्तुति हेतु आपको हार्दिक बधाई। इस प्रस्तुति में बोल्ड किये गए शब्दों से आपको मार्गदर्शन मिल ही गया है।
इस रचना से ये भी पता चला की किसी रचना के अनुमोदन के पूर्व आदरणीय योगराज सर कितना श्रम करते है। नमन उनके समर्पण को।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"धन्यवाद"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"ऑनलाइन संगोष्ठी एक बढ़िया विचार आदरणीया। "
11 hours ago
KALPANA BHATT ('रौनक़') replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"इस सफ़ल आयोजन हेतु बहुत बहुत बधाई। ओबीओ ज़िंदाबाद!"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"बहुत सुंदर अभी मन में इच्छा जन्मी कि ओबीओ की ऑनलाइन संगोष्ठी भी कर सकते हैं मासिक ईश्वर…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion

ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024

ओबीओ भोपाल इकाई की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी, दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी…See More
Sunday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित जी बहुत शुक्रिया आपका ,जी ज़रूर सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से जानकारी…"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ सुकून मिला अब जाकर सादर 🙏"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ठीक है "
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"शुक्रिया आ सादर हम जिसे अपना लहू लख़्त-ए-जिगर कहते थे सबसे पहले तो उसी हाथ में खंज़र निकला …"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"लख़्त ए जिगर अपने बच्चे के लिए इस्तेमाल किया जाता है  यहाँ सनम शब्द हटा दें "
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service