For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेरी कराहों की

लोरियां सुनकर

तुम सो गए 

 

रस्सियों से जकड़ी

मेरी देह से

रिसते लहू ने

तुम्हारा मुख धोया 

मेरे पसीने की दुर्गन्ध से

तुम जग गए

 

तुमने और कस दी 

मेरी रस्सियाँ

जो मांस को चीर कर

हड्डियों तक धंस गयीं

मेरी पीड़ा कंठ से निकल 

कपाल में फंस गयी

 

तब तुमने किया

एक विराट अट्टहास

एक भयानक निनाद

और इस बार

मैं ही सो गया

कभी न जगने के लिए 

(मौलिक व् अप्रकाशित )

Views: 422

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 27, 2015 at 4:00pm

आदरणीय गोपाल नारायण सर, यातना की पीड़ा, वो त्रासदी और उसका संत्रास ..... क्या सधी हुई कलम चली है. झकझोर दिया रचना में भीतर तक. इस गहन प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 26, 2015 at 6:16pm
नींद भी कैसी कैसी यातनाओं में ( चिरनिंद्रा ) आ ही जाती है , बहुत मार्मिक कविता , आदरणीय डॉ o गोपाल नारायण जी , बधाई , सादर।
Comment by vijay nikore on July 26, 2015 at 3:52pm

अत्यंत कोमल भावनायेँ एवँ दार्शनिक अभिव्यक्ति| बहुत बहुत बधाई, आदरणीय गोपाल नारायन जी।

Comment by kanta roy on July 26, 2015 at 3:40pm
कितना कठोर है यह जीवनांत यात्रा ! मौत का जकड़ना इस तरह की हड्डियों तक चरमरा जाये .... बेहद कटुता से भरी जीवन सत्य के प्रस्तुति मर्मभेदक हुई हुई है । इतने सुंदर जीवन का अंत इतना कठोर ....जिस शरीर को पालते रहे पोषित करते रहे आत्ममुग्ध होकर वो निर्मम अग्नि में जल कर दग्ध हो जाने के क्रम में तत्पर हुआ । जीवन के अंत में .........
इस बार
मैं ही सो गया
कभी न जगने के लिए ....... बेहतरीन रचना आदरणीय डा . गोपाल नारायण जी ..... बधाई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 26, 2015 at 1:09pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , बहुत मार्मिक कविता हुई है  , वाह !! हार्दिक बधाइयाँ आपको ॥

Comment by Samar kabeer on July 26, 2015 at 11:23am
जनाब गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी,आदाब,बहुत शानदार ,बहुत ख़ूब,वाह वाह ,इस विधा में आपके क़लम को पकड़ पाना बहुत मुश्किल है,इस सुन्दर प्रस्तुति हेतु दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted discussions
1 hour ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Thursday
Sushil Sarna posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Jun 3
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Jun 3

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Jun 3
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Jun 2

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service