For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उजले-उजले सूरज खोये कैसे कैसे (ग़ज़ल 'राज')

२२२२ २२२२ २२२२   

दुनिया ने तो  काँटे बोये कैसे कैसे  

चुन-चुन कर हम कितना रोये कैसे कैसे  

 

काँटों तक ही दर्द नहीं सीमित था अपना  

बातों- बातों तीर  चुभोये कैसे कैसे

 

तुमको देखा तो जाने क्यों आया जाला

मल-मल कर आँखों को धोये कैसे कैसे

 

एक हथेली दूर जहाँ पर दूजी से हो 

हम नाते-रिश्तों को ढोये  कैसे कैसे

 

काले काले मेघों की थी भूलभुलैय्या  

उजले-उजले सूरज खोये कैसे कैसे  

 

सिमटी बैठी थी भीतर चन्दन की खुशबू   

 आजू-बाजू विषधर  सोये कैसे कैसे

 

जिन सपनों को फेंक दिया था घर से बाहर 

 पलकों ने वापस संजोये  कैसे कैसे

पुछल्ला –

सूख चुका है भीतर से जज्बाती सागर 

ग़ज़लों के अशआर भिगोये कैसे कैसे

(मौलिक एवं अप्रकाशित) 

Views: 821

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 25, 2015 at 11:32am

मिथिलेश जी ,अभिभूत हूँ ग़ज़ल पर शेर दर शेर समीक्षा पढ़कर आपका लाख लाख धन्यवाद मेरा लिखना सफल हुआ दिल खुश कर दिया आपने |ये मिसरा ऐसे लिखूँ तो कैसा लगेगा ---पलकों ने फिर आन सँजोये  कैसे कैसे


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on June 25, 2015 at 1:48am

वाह वाह दीदी क्या कमाल का मतला हुआ है ... बस झूम गया हूँ -

दुनिया ने तो  काँटे बोये कैसे कैसे  

चुन-चुन कर हम कितना रोये कैसे कैसे  

शेर दर शेर----->

काँटों तक ही दर्द नहीं सीमित था अपना  

बातों- बातों तीर  चुभोये कैसे कैसे........ वाह वाह क्या खूब शेर हुआ है दाद दाद दाद 

 

तुमको देखा तो जाने क्यों आया जाला

मल-मल कर आँखों को धोये कैसे कैसे...... कमाल का चित्र खींचा है वाह वाह 

 

एक हथेली दूर जहाँ पर दूजी से हो 

हम नाते-रिश्तों को ढोये  कैसे कैसे.........बढ़िया 

 

काले काले मेघों की थी भूलभुलैय्या  

उजले-उजले सूरज खोये कैसे कैसे  ..... बेहतरीन शेर ... बड़ा शेर 

 

सिमटी बैठी थी भीतर चन्दन की खुशबू   

 आजू-बाजू विषधर  सोये कैसे कैसे............ कहाँ से ले आई आप ये विचार ... बस झूम रहा हूँ इसे पढ़कर 

 

जिन सपनों को फेंक दिया था घर से बाहर 

 पलकों ने वापस संजोये  कैसे कैसे............ बढ़िया शेर...कमाल की कहन.. (दीदी संजोये/सँजोये दोनों रूप प्रचलित है पर एक बार और विचार कीजियेगा क्योकि बढ़िया शेर में थोड़ी अड़चन लग रही है यानि गेयता भंग हो रही है.)


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 13, 2015 at 9:51pm

कृष्ण मिश्रा जी, आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सफल हुआ तहे दिल से आभार आपका. 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 13, 2015 at 9:29pm

सिमटी बैठी थी भीतर चन्दन की खुशबू   

 आजू-बाजू विषधर  सोये कैसे कैसे        लाजवाब!

इस बेहतरीन गज़ल पर हार्दिक अभिनन्दन आदरणीया!बहुत कुछ सीखने को मिला! सादर!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 11, 2015 at 10:50pm

आ० मदन मोहन जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई दिल से आभार आपका. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 11, 2015 at 10:49pm

आ० नीलेश जी ,आपका बहुत बहुत आभार .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 11, 2015 at 9:23pm

आ० समर कबीर भाई जी,आपका बहुत बहुत शुक्रिया  -मिसरा -पलकों ने वापस संजोये कैसे कैसे -उला की बात को कम्प्लीट कर रहा है यदि ऐसे करुँगी तो ख़्वाब और स्वप्न एक ही बात का दुहराव हो जाएगा ""पलकों ने फिर ख़ाब संजोये कैसे कैसे " संजोये /सँजोए दोनों ही शब्द प्रचलित हैं अतः मैं समझती हूँ बह्र में ही हैं |

पुछल्ला भाई जी ,मैंने भी ओबिओ से ही सीखा था अतः भेड़ की चाल में मैं भी हूँ आपकी बात समझ गई ...दिल से आभार आपका .

Comment by Madan Mohan saxena on June 10, 2015 at 4:30pm

बहुत खूबसूरत अहसास पिरोये हैं आपने इस ग़ज़ल में आदरणीय। हार्दिक बधाई।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 10, 2015 at 3:22pm

आदरणीया राज जी ...मुझे तो ग़ज़ल के भाव पसंद आये ..रचनाकार की नयी सोच दिखी ..तकनीकी पक्ष के बारे में आदरणीय समरजी और गिरिराज भाईसाब के साथ हुई बिस्तृत चर्चा से और उस पर आपकी प्रतिक्रिया से तमाम कुछ सीखने को मिला ..इस रचना पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 10, 2015 at 12:52pm

बहुत ख़ूब आ. राजेश कुमारी जी.
समर साहब की विस्तृत चर्चा ए बहुत मार्गदर्शन हुआ है ..
बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service