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मेरे 3 मुक्तक ....

1.

थोड़ा सा झूठा  हूँ  ....

थोड़ा सा झूठा  हूँ थोड़ा  सा सच्चा हूँ
थोड़ा सा  बुरा  हूँ थोड़ा  सा अच्छा हूँ
भुला देना दिल से  मेरी गल्तियों को
दिल से तो यारो मैं थोड़ा सा बच्चा हूँ

सुशील सरना

......................................................

2.

तेरे अल्फ़ाज़ों से....
तेरे अल्फ़ाज़ों से हसीन जज़्बात बयाँ होते हैं
तेरे ख़तूत में कुछ बीते लम्हात निहाँ होते हैं
हर शब तेरे जिस्म की बू  से लबरेज़ होती है
हर ख़्वाब में बस तेरे ख्यालात पिन्हाँ होते है

सुशील सरना

....................................................

3.

सजाओ गुलों से …

कौन देख पाया है लिबास आखिरी
बंद आँखों में भी हैं .प्यास आखिरी
सजाओ गुलों से कि लौटेंगे फिर न
यार के दीदार की है  आस आखिरी


सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on June 16, 2015 at 1:11pm

आदरणीया    kanta roy  जी मुक्तकों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।

Comment by kanta roy on June 15, 2015 at 11:21pm
बेहतरीन मुक्तक बनी है आदरणीय सुशील सरना जी
Comment by Sushil Sarna on June 14, 2015 at 9:49pm

आदरणीय  Samar kabeer  जी मुक्तकों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा और त्रुटि इंगित करने का हार्दिक आभार। वैसे मैंने त्रुटि को सुधार कर पुनः पोस्ट कर दी है। ये त्रुटि भाव में बह कर हो गयी और काफ़िया छूट गया।  आपका हार्दिक आभार। 

Comment by Samar kabeer on June 13, 2015 at 6:43pm
जनाब सुशील सरना जी,आदाब,अच्छे मुक्तक हैं आपके,तीसरे मुक्तक की आख़री लाइन में "सांस" क़ाफ़िया सही नहीं है,क्यूँकि ऊपर के दो क़ाफ़िये लिबास और प्यास हैं,देख लीजियेगा ।

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