For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओबीओ ’चित्र से काव्य तक’ छंदोत्सव" अंक- 49 की समस्त रचनाएँ चिह्नित

सु्धीजनो !
 
दिनांक 16 मई 2015 को सम्पन्न हुए "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक - 49 की समस्त प्रविष्टियाँ संकलित कर ली गयी हैं.
 


इस बार प्रस्तुतियों के लिए पुनः जिस छन्द का चयन किया गया था, वह था शक्ति छन्द

वैधानिक रूप से अशुद्ध पदों को लाल रंग से तथा अक्षरी (हिज्जे) अथवा व्याकरण के लिहाज से अशुद्ध पद को हरे रंग से चिह्नित किया गया है.

आगे, यथासम्भव ध्यान रखा गया है कि इस आयोजन के सभी प्रतिभागियों की समस्त रचनाएँ प्रस्तुत हो सकें. फिर भी भूलवश किन्हीं प्रतिभागी की कोई रचना संकलित होने से रह गयी हो, वह अवश्य सूचित करे.

सादर
सौरभ पाण्डेय
संचालक - ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव

**********************************************************************

आदरणीय मिथिलेश वामनकरजी

जहाँ आज धरती नहीं होश में
वहीँ एक मासूम आगोश में
लिए है, बहन को लगा कर गले
कहे- “आज थम जा अरे जलजले

यही आरज़ू थी यही आसरा
कभी जिंदगी थी यही तो धरा
भला आज रूठी हुई क्यों बता ?
जरा बोल कुछ तो नहीं अब सता

कभी दौड़ते खेलते थे जहाँ
दरारें, दरारें, दरारें वहाँ
करो खेल जितना दहलती धरा
कि इक दूसरे का हमीं आसरा”
*********************************************

आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवजी

शहर गाँव भूकंप की मार है।
न दाना न पानी न घर द्वार है॥
लगे रोज अंतिम यही रात है।
प्रलय की तरह दृश्य हालात है।।

पिता मातु दादा सभी मर गए।

बहन और भाई बहुत डर गए॥..  .. .(संशोधित)
बड़ा है ज़िगर भी बड़ा कर लिया।
बहन से लिपट दूर डर कर दिया॥

गलतियाँ हमारी इसे मानिए।
नहीं बेरहम ये धरा जानिए॥
प्रकृति से कभी खेल करना नहीं।
सभी जीव को साथ रहना यहीं।।
*************************************

आदरणीय सत्यनारायण सिंहजी

सितम को ढहाता यथा मनचला
तबाही मचा यूँ गया जलजला
उजाडे हजारों चमन बस्तियाँ
जुदा लाख साहिल हुई कस्तियाँ

कहे बाल सहमा बहन को गहे
पिता मात स्नेही स्वजन ना रहे  
कुपित ईश का यह अजब है कहर
रहा घोल जीवन हमारे जहर   

जमी दर्द की इक हृदय में परत
सजल नैन नत, जल बहे अनवरत
अबोले व्यथित बाल मन कह रहे    
मिला भाग्य में जो उसे  सह रहे  

धरा कंप की तीव्रता नाप ली 

हवा में घुली आर्द्रता आँक ली ..  (संशोधित)
मनुज काश ! दुख दर्द को नापते
झुका शीश आभार हम मानते
*********************************************

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी

चलो कँप गई माँ धरा, ठीक है
अभी घाव है कुछ हरा, ठीक है
मगर जी रहे. वो डरेंगे नहीं
लड़ेंगे, अभी हम मरेंगे नहीं

सुरक्षा किसे है , कहाँ  देखिये ?
किसी के यक़ीं को यहाँ देखिये
उमर देखिये मत, न दम देखिये
निडर हैं, न खा कर रहम देखिये

कमी हो यक़ीं में, डरा दिल रहे
डरा दिल किसी के न काबिल रहे
मगर हाँ,  भरोसा न टूटे कभी  
अगर हाथ थामें , न छूटे कभी

यही इक यक़ीं पास इनके लगा
यक़ीं हो, पराया लगे है सगा
यही प्रेम है, सच, यही धर्म है
यही ईश की राह का कर्म  है
*********************************************

आदरणीया सीमा अग्रवाल जी

सुनो, मत डरो मैं अभी संग हूँ
खुदा तो नहीं पर निडर जंग हूँ
लडूंगा भले तुच्छ हूँ देह से
अगर नफरतों की ठनी नेह से

रुकी साँस है आस भी है डरी
रुँधे हैं गले आँख भी है भरी
थमे हैं भले पल को रस्ते सभी
मगर हार मानी नहीं है अभी

जहाँ चाँद सूरज झगड़ते न हों
जहाँ शूल से फूल गड़ते न हों
चलो हम चलें ढूँढने वो जहां
जहां प्यार हो प्यार के दरमियां

चलो नीड़ छोटा बुने हम कहीं
चलो और चल के रहें हम वहीं
जहाँ स्वस्ति का स्वप्न साकार हो
जहाँ प्यार बस प्यार बस प्यार हो
*********************************************

आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवालाजी

कही मौत भूकम्प से थी गमी,
धरा पर तभी साँस कुछ की थमी |
कि भूकंप से लोग सब ही हिले
बचे मौत से बाल बच्चें मिले |

न पहले कभी भी किसी से मिलें
तभी फूल दो आ वहां पर खिलें |
न माँ थी न बापू वहाँ साथ था
लगा ईश का ही कही हाथ था |

सटे आपसी बाँह जकड़ें मिले,... . .  (संशोधित)
लगे होंठ उनके कही से सिलें |
न ही जात का पूछते थे पता
न ही वैर कोई ह्रदय से जता |

छुपी बाल आगोश में बालिका
नहीं जानते क्या करे मालिका |
रहे साथ दोनों यही भावना
सुने ईश राही करे कामना |

द्वितीय प्रस्तुति

बड़ों में सदा स्नेह जो भी रखे,

सदा आत्म विश्वास उनमें दिखें |     

अगर जो मिले सीखने को जहाँ,    

मिले प्यार बच्चों सदा ही वहाँ ...............(संशोधित)

वरद हस्त अब ईश का हाथ ही
अकेली नहीं मै रहूँ साथ ही |
करे ईश से प्यार, बचते वही
रहे हाथ जिनपर डरे वे नहीं |

हुआ ये अजूबा यहाँ मान लों,
गले से लगी ये बहन जान लों
मिला है इसे खूब भाई अभी,
कलाई सजेगी इसी से कभी |  
*********************************************

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवजी

बहन आज रो मत संभालूं तुझे
गले से अभी तो लगा लूं तुझे
जीवन की है मंद मुस्कान तू
मुकद्दर तुही और ईमान तू

धरा में स्वसा की बड़ी आन है
धवल ईश का एक वरदान है
बड़े भाग्य से तू मिली है मुझे
गले से अभी तो लगा लूं तुझे

पिता तो नहीं किन्तु भाई सही
सहज डोर तू मैं कलाई सही
अभी तो निभाना सभी धर्म है
कसैला जगत है कठिन कर्म है

रहे दीप जलता न मग में बुझे
गले से अभी तो लगा लूं तुझे
बहन तू न घबरा अभी जान है
अँधेरा ज़रा देर मेहमान है

द्वितीय प्रस्तुति

स्वसा से भला कौन प्यारा मुझे
किसी  ने बता आज मारा तुझे
सताते  हमें  आज तो है सभी
अभी तो  नहीं देख  लेंगे कभी

बढ़ा  पापियो का यहाँ  हौसला
खुदा ही करेगा  जहाँ का भला
हुआ लुप्त है  धर्म  कांपी धरा
जरा देखिये ईश की  भी  त्वरा

घना है अँधेरा  स्वसा तू न रो
हमारे किये  आज हो या न हो
धरित्री  हमें किन्तु  जाने कभी
भला और सम्मान्य माने तभी
 
करूंगा कभी काम  मैं भी बड़ा
जमाना  रहेगा  पदों  में पड़ा
अभी पांव  आधार  मेरा  बने
ज़रा भाग्य में कर्म में भी ठने
*********************************************

सौरभ पाण्डेय

नहीं है सगा-साथ कोई बड़ा
मगर साथ है देख भाई खड़ा
भला क्यों डरी बोल कैसी बला ?
करे आँधियाँ क्या, करे जलजला ?

खड़े सामने हैं कई प्रश्न, हाँ !
वचन दे रहा एक भाई यहाँ..
न माता-पिता बन्धु कोई कहीं
मगर हौसला रख बहन डर नहीं

समन्दर सरीखी हुई ज़िन्दग़ी
अगर नाव जर्जर करें बन्दग़ी
नहीं तन सबल.. ज़ोर है भाव में
तभी है भरोसा हमें नाव में  

पता है, कठिन क्लिष्ट संसार है
यही जग मगर सींचता प्यार है
पिता-माँ नहीं पर सगे हैं भले
उन्हीं पर भरोसा करें, मिल गले
*********************************************

आदरणीय केवल प्रसाद जी

अगर प्यार टूटा जुड़ा भी यहां।
मिले हम वहीं पर उजाला जहां।।
सहारा मिला भ्रात का सत्य का।
निभाता वही देवता कथ्य का।।1

धरा पर पिता-मात बिछड़े सभी।
मगर हम अकेले नहीं हैं कभी।।
सभी मिल रहे जो पराये लगे।
सही अर्थ में अब पराये सगे।।2

ढहे घर हवेली मिनारे बड़ी।
धॅसीं हर सड़क आज सहमी घड़ी।।
उदासी रूॅआसी खड़ी सोचती।
अमरता जिसे दी वही कोसती।।3

वनों को उजाड़ा ढहाया शिखर।
नदी-ताल, झरने बॅधे सिंधु-सर।।
हवा, चॉद-मंगल हमारे हुए।
नहीं दीप हारा सदा मन छुए।।4
*********************************************

आदरणीय अरुण कुमार निगम जी

कहानी बता क्यों नई गढ़ चला
न भूकंप आया न था जलजला
पिता - मातु दोनों गये काम में
नया शख्स आया तभी ग्राम में

सहम-सी गई अजनबी देख कर
कहा भ्रात ने  व्यर्थ ही तू न डर
बड़ा  भ्रात तेरा   अभी है  यहाँ
डरे  जलजला  हौसला हो जहाँ  

अगर माँ-पिता दूर हैं इस घड़ी
न घबरा बहन  तू बहादुर बड़ी
खुशी से नया गीत तू गुनगुना  
अहा ! द्वार अपने खड़ा पाहुना

पिता ने सिखाया तुझे ध्यान है ?
अरे  !  पाहुना  एक  भगवान है
नहीं भूल सकते  सुसंस्कार को
चलो हम चलें शीघ्र सत्कार को
*********************************************

आदरणीया सरस दरबारीजी

कहर का मचा क्यूँ सियापा बता
खुदा ने किया क्या इशारा बता
ज़मीं फट गयी घर सभी हिल गए
पलों  में सभी ख़ाक में मिल गए

मचा मौत ही का रुदन हर तरफ
कराहें व आहें  बिछीं  हर तरफ
पलों में मकानों का ढहना दिखा
घरों का पत्तों सा बिखरना दिखा  

वहीँ पास था एक कोना जहाँ
बहन को उठाकर छिपा था वहाँ
लगाया  गले से चुपाया उसे
बड़ा भाई बनकर बचाया उसे

नहीं देख पायी उठा दर्द सा
चुभा एक नश्तर लगा सर्द सा
बढे थे कदम अब मना लूँ उन्हें
गले से लगाकर बचा लूँ उन्हें   
*********************************************

आदरणीय लक्ष्मण धामीजी

तना जा रहा था मनुज दम्भ से
अकड़  सब  हुई नष्ट भूकंप से
गिरे जो  महल और मीनार सब
हुआ  लापता आज परिवार दब

नहीं ज्ञात  मासूम  मन को अभी
कि  है  शेष  कोई  मिटे या सभी
मगर  जानता  वो समय है बुरा
बनो इस लिए अब स्वयं आसरा

तभी तो बहन से लिपट कह रहा
न मुझको  रूला तू न आँसू बहा
पकड़  हाथ  मेरा  कि  पीड़ा  पिएँ
लड़ें  मौत से जिन्दगी फिर जिएँ
*********************************************

आदरणीय शरद सिंह ’विनोद’जी

दुनियाँ से मुझको बड़े हैं गिले |
नहीं अब सहारा कहीं पे मिले |
प्रभो शक्ति जितना हमें है दिया |
बड़ी मुश्किलों से सहारा किया ||

प्रकृति की पड़ी मार सबने सहा |
महल स्वप्न का देखते ही ढहा |
छिना छत्र माता पिता का कहाँ ?
बची फ़ीक्र भूखी बहन का यहाँ ||

अभी गति हमारी बड़ी दीन है |
बिना नीर जैसे दिखे मीन है |
प्रकृति के कहर से बहन भी डरी |
बड़ी मुश्किलों से डगर है भरी ||
*********************************************
 
आदरणीय रमेश कुमार चौहानजी

वहां घोर भूकंप की मार से ।।
बहे आदमी अश्रु की धार से ।
घरौंदा जहां तो गये हैं बिखर ।
जहां पर बचे ही न ऊॅंचे शिखर ।।

सड़क पर बिलख रोय मासूम दो।
घरौंदा व माॅ-बाप को खोय जो ।।
दिखे आसरा ना कहीं पर अभी ।
परस्पर समेटे भुजा पर तभी ।।

डरी और सहमी बहुत है बहन ।
हुये स्तब्ध भाई करे दुख सहन ।।
नही धीर को धीरता शेष है ।
नहीं क्लेष को होे रहे क्लेष है ।।

रूठे रब सही पर नही हम छुटे ।
छुटे घर सही पर नही हम टुटे ।।
डरो मत बहन हम न तुमसे रूठे ।
रहेंगे धरा पर बिना हम झुके ।।
*********************************************
 

Views: 1650

Replies to This Discussion

आदरणीय , चाह तो मै भी यही रहा हूँ कि छूट जाये , पर एक बार मै छै महीने तक नही खाया था तो  क्या क्या झेला था  भूलता नहीं है , आपको फोन मे बताऊँगा । ये जगह ठीक नही है ॥ बस ये सच है कि '' छुटती नही है क़ाफिर मुँह से लगी हुई ' ॥

:-))

तो हम भी फोन पर सुनेंगे.  और तब बतायेंगे.. प्यार ने हमको क्या-क्या खेल दिखाये...

हा हा हा.....

आ० सौरभ जी ,छंदोत्सव के सफलता पूर्वक समापन तथा आपका ये त्वरित संकलन दोनों के लिए आपको हृदय से बहुत- बहुत बधाई सभी रचनाकारों को भी हार्दिक बधाई .इस बार आयोजन में पूर्णतः उपस्थित न हो सकी इसका पूर्व ज्ञान भी था  जिस कारण ब्लॉग में पहले ही पोस्ट कर दिया था जिस पर आपका अनुमान सही था |मोबाइल से कुछ की रचनाएँ पढ़ पाई तथा जैसे तैसे प्रतिक्रिया भी दी ,आपकी  चुहल भरी प्रतिक्रिया भी पढ़ी ...सुभाष घई ने बुलाया तो था जी पर  हमने कहा कि अभी हम ओबिओ के कांट्रेक्ट पर हैं आपको डेट नहीं दे सकते :-))))))))))))))))) .....आज इस संकलन में उन सभी की रचनाएं पढ़ रही हूँ जो पढ़ नहीं पाई थी ,सभी ने बहुत अच्छा लिखा जिसके लिए वो सब बधाई के पात्र हैं|शक्ति छंद पर लिखने का दो बार सबको अवसर मिला जिसका सभी रचनाकारों को निःसंदेह लाभ पंहुचा होगा |  

आदरणीया राजेश कुमारीजी, इस बार के आयोजन में जो छन्द लिया गया था, यही शक्ति छन्द पिछले आयोजन में भी था. आशय यही था कि इस छन्द का विन्यास रचनाकारों को जैसी स्वतंत्रता देता है, उसका लाभ रचनाकार अवश्य लेंगे. लेकिन कतिपय सक्रिय सदस्यों के मन में बन चुके कम्पार्टमेंण्ट पर कोई क्या कहे ? वस्तुतः, इस पर न ही कहा जाय वही श्रेयस्कर है.
आपकी सकारात्मक सोच और संलग्नता हमें भी उत्साहित रखती है.
शुभ-शुभ

आदरणीय सौरभ सर, छन्दोत्सव की सफलता के लिए हार्दिक बधाई और रचनाओं के संकलन के लिये हार्दिक आभार  । 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted discussions
17 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , खूब सूरत मतल्ले के साथ , अच्छी ग़ज़ल कही है , हार्दिक  बधाई स्वीकार…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service