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चलो
लौट चलो
फिर उसी झील के किनारे
जहां आज तक
लहरों पे चाँद मुस्कुरता है
किनारों की कंकरियां
झील में सुप्त अहसासों को
जगाने के लिए आतुर हैं
वो शिला जिस पर बैठ कर
हमने दृग स्पर्शों से
मौनता का हरण किया था
आज एकान्तता में
उन्ही मधु पलों को जीने के लिए
कसमसा रहा है
हाँ और न के अंतर्द्वंद से
स्वयं को निकालो
प्रणय पलों के स्पंदन से
यूँ आँख न चुराओ
लौट आओ
हम अपने अस्तित्व को
अमर पहचान देंगे
अपने पावन प्रणय को
जीवित रहने का अभयदान देंगे
मेरे मौन आग्रह को
अपनी अधखुली पलक से
लौट चलने की स्वीकृति दे दो
निर्जीव होती अभिलाषाओं को
जीने का अवसर दे दो
एक बार
बस एक बार फिर
अपनी खोई मुस्कराहट को
लौटाने का वादा कर लो
झील की लहरों पर
उदास चाँद से
बतियाने का वादा करलो


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 361

Comment

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Comment by Sushil Sarna on April 24, 2015 at 9:36pm

आदरणीय   मिथिलेश वामनकर  जी रचना पर आपके स्नेह का तहे दिल से शुक्रिया। नेट व्यवधान के कारण प्रत्युत्तर में विलम्ब के लिए क्षमा चाहूँगा सर। 

Comment by Sushil Sarna on April 24, 2015 at 9:36pm

आदरणीय   लक्ष्मण रामानुज लडीवाला  जी रचना पर आपके स्नेह का तहे दिल से शुक्रिया। नेट व्यवधान के कारण प्रत्युत्तर में विलम्ब के लिए क्षमा चाहूँगा सर। 

Comment by Sushil Sarna on April 24, 2015 at 9:34pm

आदरणीय   Mohan Sethi 'इंतज़ार' जी रचना पर आपके स्नेह का तहे दिल से शुक्रिया। नेट व्यवधान के कारण प्रत्युत्तर में विलम्ब के लिए क्षमा चाहूँगा सर। 

Comment by Sushil Sarna on April 24, 2015 at 9:34pm

आदरणीय  shree suneel जी रचना पर आपके स्नेह का तहे दिल से शुक्रिया। नेट व्यवधान के कारण प्रत्युत्तर में विलम्ब के लिए क्षमा चाहूँगा सर। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 21, 2015 at 8:51pm

आदरणीय Sushil Sarna जी  इस सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 21, 2015 at 6:59pm

भावपूर्ण  रचना   

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 20, 2015 at 7:58am

आदरणीय Sushil Sarna जी लौट आने का मौन आग्रह अच्छा है ...बधाई ..सादर 

Comment by shree suneel on April 20, 2015 at 1:34am
//झील की लहरों पर
उदास चाँद से
बतियाने का वादा कर लो//
सुन्दर रचना आदरणीय सुशील सरना सर. बधाई

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