For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लघुकथा : साहस (गणेश जी बागी)

“मास्टर साहब तनिक मेरे छोटका बेटा को समझाइये न, गलत संगत में पड़ वह अपनी जिन्दगी और खानदान का नाम... दोनों बर्बाद कर रहा है.”  

मास्टर साहब को चुप देख प्रधान जी पुनः बोल पड़े.

“आप तो उसे ऊँगली पकड़ कर चलना सिखाये हैं आप की बात वो जरुर मानेगा.”

“प्रधान जी आपके कहने से पहले ही मैंने सोचा था कि उसे समझाऊं किन्तु ...”

किन्तु क्या मास्टर साहब ?

"प्रधान जी क्षमा चाहूँगा किन्तु कीचड़ से सनी उसकी जूती तथा अपना उजला लिबास देख उसे समझाने का साहस मैं नहीं जुटा सका."

(मौलिक व अप्रकाशित)
पिछला पोस्ट =>अतुकांत कविता : मुक्ति

Views: 963

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on July 28, 2015 at 10:39am
वाह !!!!! कीचड़ में सनी जूती से उजले लिबास का बच कर निकलना ..... बहुत बडी़ बात कह गये आप आदरणीय गणेश बागी जी । बधाई
Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 4, 2015 at 4:42pm

आदरणीय बागी जी कथा लघु है मगर बहुत बड़ी बात की तरफ इशारा करती है आपकी यह रचना ..मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 20, 2015 at 5:02pm

लघुकथा पर उपस्थिति एवं सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीया सविता मिश्रा जी.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 20, 2015 at 5:00pm

आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी, लघुकथा पर खुबसूरत काव्य पक्तियों के साथ उपस्थित होना सुखकर लगा, बहुत बहुत आभार.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 20, 2015 at 4:59pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी, लघुकथा पर आपका आशीर्वाद मिला, बहुत बहुत आभार.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 20, 2015 at 4:58pm

सराहना हेतु हृदय से आभार आदरणीय जितेन्द्र पस्तारिया जी.

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 17, 2015 at 11:02pm

सुन्दर लघुकथा! बधाई आदरणीय!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 17, 2015 at 3:17pm

प्रधानजी को अपने बेटे के भविष्य़ को सुधारने की चिंता तब हुई जब वह पूरी तरह से लहेंडा हो चुका था. ऐसे ’बूढ़े तोते’ क्या पोस मानते हैं ? मास्टरजी के उत्तर के माध्यम से आपने संयत बात साझा की है.

वैसे इस लघुकथा में ’आपकी वाली बात’ तनिक कम है.

हार्दिक शुभकामनाएँ भाई गणॆश बाग़ीजी..

मेरी पहली वाली टिप्पणी लगता है, ’उड़’ गयी !!.. ..

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 17, 2015 at 10:14am

काजल की कोठ्ररी हो या कीचड भरी राह,   हम तो ऐसे ही बच निकलेंगे.....सच्चे गुरु की वाह !  परमार्थ से भरपूर लघु कथा.  हार्दिक बधाई.   सादर

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 17, 2015 at 9:45am
क्या समझायेंगे मास्टर साहब, जो परिवार और परिवेश समझा देता है। दुनियाँ भर के शिक्षाविद यही मानते हैं , बताते हैं , बस हम हैं जो इसे न जानते हैं , न मानते हैं।
बहुत सही, सशक्त , प्रभावशाली लघु- कथा , बहुत बहुत बधाई , आदरणीय इंजीo गणेश जी बागी जी, सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

दोहा सप्तक. . . . . नजरनजरें मंडी हो गईं, नजर बनी बाजार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार…See More
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"कौन है कसौटी पर? (लघुकथा): विकासशील देश का लोकतंत्र अपने संविधान को छाती से लगाये देश के कौने-कौने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"सादर नमस्कार। हार्दिक स्वागत आदरणीय दयाराम मेठानी साहिब।  आज की महत्वपूर्ण विषय पर गोष्ठी का…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी , सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ.भाई आजी तमाम जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"विषय - आत्म सम्मान शीर्षक - गहरी चोट नीरज एक 14 वर्षीय बालक था। वह शहर के विख्यात वकील धर्म नारायण…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उम्र  का खेल । स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।…See More
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर प्रणाम - सर सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार…"
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, आपकी लघुकविता का मामला समझ में नहीं आ रहा. आपकी पिछ्ली रचना पर भी मैंने…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service