For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुमसे अकेले में मुलाक़ात

आज झुरमुट से उजास में

शुभ्र नूतन सा गुलाबी प्रभात

तुम से की, शरमाते हुए ,

आज कितने दिनों के बाद

तुमसे अकेले में की मुलाक़ात

 

और अपलक रही थी निहार

गहरे सन्नाटे में जब तुम थे

बिल्कुल मेरे पास इस पार

किसी ने दबोचा अकस्मात

देख कर अकेले में

किन्तु ना फूटी मेरे मुख से बात

 

सुधियों की नौका में

भावनाओं की थी पतवार

जल-बिहार कर रहीं थी

इच्छाएँ बार-बार इस पार से उस पार

क्यों नहीं भूला मन मधुमास

जब बस तुम ही बसते थे मेरे-

रोम-रोम और सांस-सांस

और ये हार मैंने अभी स्वीकारी नहीं

क्यों की भावना संवेदना पर वारी नहीं

तुम हँसे थे एक बार

जब मैंने किया था खुद पर एतवार

मिली थी तुमसे नवपल्लव पर ओस सी

उतर आए थे तुम दिल की गहराई में

बन कर स्वर्णिम प्रकाश

 

और झरोखे में तुम झरते रहे

मेरी आँखों से बन कर अनुराग 

खिल रहा था मेरा केशरिया गात 

आज झुरमुट से उजास में

शुभ्र नूतन सा गुलाबी प्रभात

मौलिक व अप्रकाशित 

कल्पना मिश्रा बाजपेई 

 

Views: 416

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Hari Prakash Dubey on March 30, 2015 at 8:10pm

तुम हँसे थे एक बार

जब मैंने किया था खुद पर एतवार

मिली थी तुमसे नवपल्लव पर ओस सी

उतर आए थे तुम दिल की गहराई में

बन कर स्वर्णिम प्रकाश......सुन्दर रचना आदरणीया कल्पना मिश्रा जी ! हार्दिक बधाई 

Comment by kalpna mishra bajpai on March 28, 2015 at 10:48pm

आदरणीय  Shyam Narain Verma  जी आप का आभार /सादर 

Comment by kalpna mishra bajpai on March 28, 2015 at 10:47pm

आ0 pratibha tripathi जी आप का बहुत आभार 

Comment by kalpna mishra bajpai on March 28, 2015 at 10:47pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर बहुत आभार आप का /सादर 

और मुझे खेद है कि मैं गलती बहुत करती हूँ इसके लिए क्षमा चाहती हूँ 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 28, 2015 at 3:28pm

आ० कल्पना जी

अति सुन्दर भाव .

तुम हँसे थे एक बार

जब मैंने किया था खुद पर एतवार

मिली थी तुमसे नवपल्लव पर ओस सी

उतार आए थे तुम दिल की गहराई में

बन कर स्वर्णिम प्रकाश--------------------------बस गुलबी को गुलाबी कर ले . सादर .

Comment by Shyam Narain Verma on March 28, 2015 at 12:03pm

बहुत सुंदर रचना बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service