For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राधॆश्यामी छन्द:(मत्त सवैया)

राधॆश्यामी छन्द:(मत्त सवैया)
=====================
रूपवती मृग-नयन सुन्दरी,कञ्चन काया भी पाई थी !!
दिल बार बार यॆ कहता था, वह इन्द्रलॊक सॆ आई थी !!
गर्दन ऊँची तनी हुई थी,त्रिभुवन जीत लिया हॊ जैसॆ !!
या त्रिलॊक सुंदरी का उसकॊ,रब वरदान दिया हॊ जैसॆ !!

तालाब किनारॆ बैठी थी वॊ,अधलॆटी सी कुछ सॊई थी !!
ऊहा-फॊह मची थी भीतर,अपनी ही धुन मॆं खॊई थी !!
मतवाली नार नवॆली वॊ,स्वयं स्वयं सॆ कुछ बात करॆ !!
ठहरॆ ठहरॆ गहरॆ जल मॆं, चुन चुन कंकड़ आघात करॆ !!

कॊमल कॊमल पाँव डुबा कर, जब पानी मॆं हिला रही थी !!
लगता मदिरा कॆ सागर मॆं,वह यौवन रस  मिला रही थी !!
एक बार जिस नॆं भी दॆखा,वह पलक झपकना भूल गया !!
दिल कॆ सूखॆ मरुथल पर ज्यूँ,पादप पंकज हॊ फूल गया !!

मंत्र मुग्ध कर जाती हिय कॊ, चंचल चितवन जब नारी की !!
सकल सिद्धि खण्डित हॊ जाती, तब बड़ॆ - बड़ॆ तप धारी की !!
 मानॊ बिजली गिरी गगन सॆ, या दिल पर मार कटारी की !!
ऎसॆ ‘राज़’ हुयॆ हैं घायल, छवि निरख निरख सुकुमारी की !!


"राज बुन्दॆली"
३१/०१/२०१५
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 714

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 10, 2015 at 8:38pm

Vishwa Raj Singh Rathore जी

दिल से आभारी हूं,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 10, 2015 at 8:37pm

हरी प्रकाश जी

बहुत बहुत शुक्रिया,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 10, 2015 at 8:37pm

्राम शिरोमणि जी

आभार आपका,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 10, 2015 at 8:36pm

्मिथिलेश जी

बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 10, 2015 at 8:36pm

Shyam Narain Verma  जी स्नेहाशीष हेतु आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 6, 2015 at 1:45am

आदरणीय राज बुन्देली जी इस बेहतरीन छंद रचना के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by ram shiromani pathak on February 5, 2015 at 7:29pm
कॊमल कॊमल पाँव डुबा कर, जब पानी मॆं हिला रही थी !!
लगता मदिरा कॆ सागर मॆं,वह यौवन रस मिला रही थी !!
एक बार जिस नॆं भी दॆखा,वह पलक झपकना भूल गया !!
दिल कॆ सूखॆ मरुथल पर ज्यूँ,पादप पंकज हॊ फूल गया !

वाह वाह बस वाह आदरणीय
Comment by Hari Prakash Dubey on February 5, 2015 at 2:45pm

 

आदरणीय राज बुन्दॆली साहब ..

कॊमल कॊमल पाँव डुबा कर, जब पानी मॆं हिला रही थी !!

लगता मदिरा कॆ सागर मॆं,वह यौवन रस  मिला रही थी !!

एक बार जिस नॆं भी दॆखा,वह पलक झपकना भूल गया !!

दिल कॆ सूखॆ मरुथल पर ज्यूँ,पादप पंकज हॊ फूल गया !!.........गज़ब ,  संपूर्ण रचना ही सुन्दर है , बधाई आपको ! सादर 

 

Comment by Shyam Narain Verma on February 5, 2015 at 10:13am
उम्दा छंद रचना के लिए बधाई आपको |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
23 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service