For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कर नहीं सकता मैं करतब क्या करूं

हो गई ताज़ा ग़ज़ल अब क्या करूं

कोई न पूछे तो लब ख़ामोश हैं

ओर जो कोई पूछ ले तब क्या करूं

तेरी ना एहली पे जब उठठे सवाल

मेरे कहने का है मतलब क्या करूं

फिर जिहालत का अंधेरा छा गया

तू ही बतलादे मिरे रब क्या करूं

अपनी मरज़ी से तो जी सकता नहीं

मुझको लिखकर दीजिये कब क्या करूं

आख़िरत में सुर्ख़रू करना मुझे

लेके इस दुनिया का मनसब क्या करू

.

समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 1332

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by khursheed khairadi on January 26, 2015 at 2:31pm

 आदरणीय कबीर साहब उम्दा ग़ज़ल हुई है सभी अशहार दिल को छू गये हैं आदरणीय दिनेश भाई की तरह मुझे भी ''कोई न पूछे तो लब ख़ामोश हैं'' की तक्ती थोड़ी संशय में डाल रही है |कृपया मार्गदर्शन करावें |इन अशहार पर विशेष दाद |

फिर जिहालत का अंधेरा छा गया

तू ही बतलादे मिरे रब क्या करूं

अपनी मरज़ी से तो जी सकता नहीं

मुझको लिखकर दीजिये कब क्या करूं

सादर अभिनन्दन 

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 24, 2015 at 7:26pm
आदरणीय Samar kabeer मैं तो यहाँ गजल की कक्षा का सबसे कमजोर विधार्थी हुँ आप जैसे गुनीजनो से सीख रहा क्रपया हमारा ध्यान रखे! आपने मेरे प्रशन का इतनी विन्रमता से जवाब दिया उसके लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
Comment by दिनेश कुमार on January 24, 2015 at 12:35pm
दूर हो जाए न मेरी गलफत
अक्स मेरा न तू दिखा मुझको
सर जी, पहला मिसरा ठीक है क्या? अभी कहा है मैंने। आदरणीय, उत्सुकता वश ही पूछ रहा हूँ।
Comment by दिनेश कुमार on January 24, 2015 at 12:05pm
आदरणीय समर साहब। मतले का उदाहरण तो समझ में आ रहा है। लेकिन अब भी दूसरे शे'र के पहले मिसरे को मैं नहीं समझा कि २१२२ २१२२ २१२ के अरकान पर कैसे है। कोई-२१ न-२ पूछे-२२ तो-१ लब-२ खामोश-२२१ हैं-२ आपकी ग़ज़ल के अनुसार ये मैंने ठीक किया है क्या समर सर जी ..?? मैं सिर्फ अपने ज्ञान को सुधारने के लिये पूछ रहा हूँ, सर जी।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 24, 2015 at 12:18am

आदरणीय समीर कबीर साहब, आपकी कोई पहली ग़ज़ल इस मंच पर प्रस्तुत हुई है. आपका आपकी रचना के साथ हार्दिक स्वागत है. एक अच्छी कहन के साथ प्रस्तुत हुई इस ग़ज़ल के लिए हृदयतल से बधाई स्वीकारें.


एक महत्त्वपूर्ण बात जो मैं आपकी टिप्पणियों के हवाले से कहना चाहूँगा. विश्वास है, आप उस पर तथा इस ओर गंभीरता से ध्यान देंगे.
साहब, यह मंच परस्पर ’सीखने-सिखाने’ का मंच है. इस क्रम में आपकी प्रस्तुतियों को कई तरह के पाठक मिलेंगे. थोड़ा एहतियात बरतते हुए अपनी प्रतिक्रियाएँ दें.
दूसरी बात, इस मंच पर बर्ताव और परस्पर सम्बोधन की एक विशेष परिपाटी है. अपेक्षा है कि आप उसका अनुपालन करेंगे. चूँकि आप नये सदस्य हैं, अतः इस ओर आपका ध्यान आकृष्ट करना आवश्यक समझा जा रहा है. बाकी आपकी समझ और आपकी प्रस्तुति का सदा स्वागत है. विश्वास है, आपकी उपस्थिति मंच के सदस्यों की रचनात्मकता को और प्रगाढ़ करेगी.
शुभ-शुभ

Comment by Samar kabeer on January 23, 2015 at 11:02pm
ब्रादरम राहुल डांगी साहिब आदाब अर्ज़ करता हूं,आपकी बात का विस्तार पूर्वक जवाब दे रहा हूं,मेरी ग़ज़ल की बह्र का नाम "सेहले मुम्तना"और इस के अरकान "फ़ाईलातुन फ़ाईलातुन फ़ाईलुन",अब रही बात "ना" अक्षर की ,आपके कथानुसार इस का प्रयोग उर्दू ग़ज़ल में निषेध है ,आप सही फ़र्माते हैं ,लेकिन मेरे दोस्त शाइर का अपना भी कुछ इख़्तियार होता है,अक्षर बना हे तो उसका प्रयोग करना लाज़मी है मिसाल के तौर पर "दाग़" के घराने के उस्ताद शाईर "महशर इनायती" रामपुरी का एक मतला पेश करना चाहूंगा"न हम समझे न आप आए कहीं से , पसीना पोंछिये अपनी जबीं से"उम्मीद है कि बात पूरी तरह आपकी समझ में आ गई होगी मेरी हार्दिक इच्छा है कि यह कमेन्ट को मिथिलेश वामन्कर जी और दिनेश कुमार जी अवश्य पढें और मुझे बताऐं कि आप लोग मेरी बात से सहमत हैं या नहीं ? आपके जवाब के इन्तिज़ार में "आपका समर कबीर"!!
Comment by Samar kabeer on January 23, 2015 at 3:22pm
श्रीमान गिरिराज जी, आदाब ग़ज़ल पसंद करने के लिये शुक्रिया आपके मशवरे के मुताबिक़ Typing mistakes दुरुस्त कर ली है,धन्यवाद
Comment by Rahul Dangi Panchal on January 23, 2015 at 12:39pm
आदरणीय कबीर जी सादर नमन! क्रपया ना के प्रयोग और इस की बहर को थोडा मुझे समझा देते तो बडी मेहरबानी होगी! सादर!
मैं तो ना प्रयोग बन्द ही कर चुका हुँ जब से यह पता चला की गजल में ना का प्रयोग निषेध है! सादर! क्रपया समझाए!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 22, 2015 at 8:58pm

आदरणीय, एक अच्छी गज़ल के लिये आपको बधाइयाँ ।

में को मै और हें को हैं कर लीजियेगा , ये भाषा की अज्ञानता नहीं है , केवल टाइपिंग की गलती  है । गज़ल का मज़ा कम कर ही है टाइपिंग की गलती ।

Comment by दिनेश कुमार on January 22, 2015 at 6:04pm
क्यों कि मेरी जानकारी बहुत ही कम है इसलिए मुझे बार बार पूछना पड़ता है ताकि मैं अपने doubt दूर कर सकूँ। उम्मीद है आप बुरा नहीं मानेंगे। Doubt सिर्फ 'ना' के वजन को लेकर है। मैं जानता नहीं कि इसका वजन कब कब २ लेना है

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"गजल (विषय- पर्यावरण) 2122/ 2122/212 ******* धूप से नित  है  झुलसती जिंदगी नीर को इत उत…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सादर अभिवादन।"
5 hours ago
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
Jun 7

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Jun 6
Sushil Sarna posted blog posts
Jun 5
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Jun 5
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Jun 5
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Jun 3
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Jun 3

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Jun 3

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service