For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सहेजना  

बिखराव में समझ आता है

सहेजे का मोल

मनचाही चीज़ जब

आसानी से नहीं मिलती तो

याद आती है माँ/पत्नी//बहन  

सुबह-सुबह खाना पकाती

सेकेण्ड-सुई से रेस लगाती

हर पुकार पे प्रकट हो जाती

मुराद पूर्ण कर फिर जाती

कितना आसान बना देती है

ज़िन्दगी को,माँ/पत्नी/बहन  

सहेजना एक कौशल है

पर रोज़-रोज़ एक जैसे

को सहेजना बिना आपा खोये

समर्पण है प्यार है त्याग है

औरतें रोज़ इन्हें सहेजती हैं

और एक घर-घर बना रहता है |

सोमेश कुमार (मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 493

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 2, 2014 at 9:52pm

सत्य कथन ! आदरणीय औरत से ही चार दीवार से घिरा स्थान घर कहलाने लगता है ! दिली बधाइयाँ रचना के लिये !

Comment by ram shiromani pathak on December 2, 2014 at 1:26pm

वाह भाई बहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति  //बधाई आपको 

Comment by Hari Prakash Dubey on December 2, 2014 at 1:12pm

बिखराव में समझ आता है

सहेजे का मोल....सुन्दर एवं सत्य जीवन दर्शन ,हार्दिक  बधाई सोमेश जी !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on December 2, 2014 at 3:02am
बहुत अच्छे भाव.एक बेहद संवेदनशील मन चाहिए ऐसी रचना की सृष्टि के लिए....लेकिन पाठक की तृष्णा बनी रह गयी. कितना और आनंद आता यदि इस रचना को थोड़ा सा और विस्तार देने की चेष्टा होती. ऐसी अपेक्षा इसलिए कि आप ऐसा करने में सक्षम हैं...नहीं तो रचना तो अपने आप में सुंदर है ही आदरणीय. शुभकामनाएँ. सादर.
Comment by somesh kumar on December 1, 2014 at 11:03pm

शुक्रिया !अपनी अनुभवी दृष्टी से रचना को स्वीकर करने हेतु ,आप दोनों गुरु-मित्रों का 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 1, 2014 at 10:55am

सुन्दर अभिव्यक्ति  i  नारी के विविध रूपो का कल्याणकारी चित्रण  i

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on November 30, 2014 at 9:48pm

बिलकुल सही,  सहेजना , सजाना, परोसना, आदि कार्य घर की महिलाएं, माँ बहन, पत्नी, गृहिणी बखूबी करती हैं... 

Comment by somesh kumar on November 30, 2014 at 3:37pm

उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया भाई जी 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 30, 2014 at 3:00pm

सोमेश जी, बिलकुल यथार्थ बात कही है, घर को घर नारी ही बनाती है वरना दीवारों और छत से ढका स्ट्रक्चर तो गोदाम भी होता है। बधाई इस रचना पर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"धन्यवाद"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"ऑनलाइन संगोष्ठी एक बढ़िया विचार आदरणीया। "
9 hours ago
KALPANA BHATT ('रौनक़') replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"इस सफ़ल आयोजन हेतु बहुत बहुत बधाई। ओबीओ ज़िंदाबाद!"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"बहुत सुंदर अभी मन में इच्छा जन्मी कि ओबीओ की ऑनलाइन संगोष्ठी भी कर सकते हैं मासिक ईश्वर…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion

ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024

ओबीओ भोपाल इकाई की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी, दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी…See More
Sunday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित जी बहुत शुक्रिया आपका ,जी ज़रूर सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से जानकारी…"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ सुकून मिला अब जाकर सादर 🙏"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ठीक है "
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"शुक्रिया आ सादर हम जिसे अपना लहू लख़्त-ए-जिगर कहते थे सबसे पहले तो उसी हाथ में खंज़र निकला …"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"लख़्त ए जिगर अपने बच्चे के लिए इस्तेमाल किया जाता है  यहाँ सनम शब्द हटा दें "
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service