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दवाईयाँ (कहानी)

हमेशा चुस्त दुरूस्त रहने वाले त्यागी जी को अचानक पेट मेँ दर्द की शिकायत हुई। कुछ ज़रूरी परीक्षणोँ के बाद ईलाज की आवश्यकता महसूस हुई किन्तु समस्या यह थी कि वे अंग्रेज़ी दवाइयोँ पर कम ही भरोसा करते थे अतः हौम्योपैथिक विधि से इलाज शुरू हुआ। जिसमेँ चार दवाएँ एक एक घण्टे के अंतराल पर सुबह शाम 20 दिन तक लेनी थी।
उस समय उनकी श्रीमती जी शहर मेँ नही थी अतः वे फोन पर नियमित रूप से पूछताछ करतीँ-
-"आपने दवाईयाँ ले ली?"
-"हाँ। ले ली, पर तुम कभी खाने के बारे मेँ भी पूछ लिया करो। खाना खाने के बाद ही तो दवाई लूँगा ना?"
-"अच्छा, ठीक है।"

(दो घण्टे बाद)
-"आपने तीन नम्बर वाली दवाई ले ली?"
-"हाँ, बस लेने ही जा रहा था।"
-"सुनो! सोने से पहले दवाई ले लास्ट वाली दवाई ले लेना।"
-"हाँ, वो मैने ले ली है।"
-"क्या? ले ली? अभी तो तीसरी दवाई को पैँतालिस मिनिट ही हुए हैँ।"
-"अब यार, बार-बार कौन उठेगा?" त्यागी जी ने तर्क दिया।
-"देखो मैँ आपकी दवाईयोँ मेँ कोई लापरवाही बर्दाश्त नही करूँगी। जो डॉक्टर ने कहा है फॉलो करो। एक घण्टा मतलब एक घण्टा। आप समझ रहे हो न मैँ क्या कहना चाहती हूँ?"
"हूँ।"

यही रोज का नियम था। न तो त्यागी जी मानते और न श्रीमती जी हार मानतीँ।
वो हमेशा कहतीँ- "मेरी तो आप सुनते नही फिर समझाने का क्या फायदा? अब आपका मन हो तो दवाईयाँ लेना वरना नही लेकिन अब से मैँ नही कहूँगी।"

पर पत्नी प्रेम के हाथोँ बार-बार विवश हो जातीँ किन्तु अब उन्होने कुछ दूसरे अंदाज़ मेँ पूछताछ करना शुरू कर दिया-

-"सुनो आपने खाना खा लिया?"
-"हाँ।"
-"कितनी बार?
मेरा मतलब तीसरी बार खा लिया क्या?"
-"कितनी बार क्या? तबियत तो ठीक है? तुझे पता नही? मैँ बस दो बार खाना खाता हूँ एक बार दोपहर मेँ और एक बार रात मेँ।" उन्होने चिढ़ाते हुए उत्तर दिया।
-"आप समझ रहे हैँ, जो मैँ पूछना चाहती हूँ। आप बताते हो या मैँ पूछूँ ?" श्रीमती जी कुछ खिन्न हुईँ।

-"नही मैँ नही समझता, तू पूछ ले।" उन्होने छेड़ते हुए उत्तर दिया।
-"तो बताओ फिर दवाई ली आपने?" उन्होने कड़ाई से पूछा।
-"ये तेरी गाड़ी न घूम फिर के मेरी दवाईयोँ पर ही आ जाती है न?
हाँ, ले ली। तीसरी भी और चौथी भी।
-"चौथी भी? अभी से?"
-"अरे यार! ठीक हूँ अब मैँ और दर्द भी नही हो रहा फिर भी दवाई तो ले रहा हूँ न?"
-"ठीक हूँ मतलब क्या और ले रहा हूँ का क्या मतलब है? लेनी ही पड़ेगी। आपको खुद से डॉक्टर बनने की कोई ज़रूरत नही। कल से सारी दवाईयाँ टाइम पर लेना। जब रिपोर्टस् आएँगी तो पता चल ही जाएगा आप कितने ठीक हैं?"
"हुँ।"

यही सिलसिला चलता रहा। खैर, जल्दी ही त्यागी जी ठीक हो गए और श्रीमती जी की मेहनत सफल हुई।
पर वक्त बदलते देर नही लगती। एक दिवस श्रीमती जी की तबियत बिगड़ गई और पूरे एक महीने तक आराम की नसीहत दी गई। दस दिन मेँ ही वो दवाईयोँ से चिढ़ने लगीँ। पर त्यागी जी खुद अपने हाथोँ मेँ पानी और दवाईयाँ लेकर नियत समय पर मौजूद रहते तो वो कैसे मना करतीँ भला?
वो बड़े ही प्यार से समझाते-
"बाबू जल्दी ठीक होना है तो दवाई तो लेनी पड़ेँगी न?
तू ठीक हो जा फिर हम फिल्म देखने चलेँगे।" उन्होने बातोँ से बहलाने का प्रयास किया।
उनके इस व्यवहार को देखकर वो कुछ चकित थीँ और कुछ पूछना चाह रही थीँ सो
आज पूछ ही लिया- "आप तो कभी दवाई नही लेते थे पर मेरे लिए रोज़ यूँ खड़े हो जाते हो दवाई लेकर और यूँ समझाते हो जैसे मैँ दो साल की बच्ची हूँ। क्यूँ भला?"
-"अरे पगली! तू क्या जाने जब तू डाँटती है तो मुझे कितना अच्छा लगता है।"
-"और कारण वही है जो तेरे पास था- बहुत प्यार है तुझसे।" पलकोँ के कोर कुछ गीले थे।
उन्होने श्रीमती जी को गले लगा लिया लेकिन कुछ दवाईयाँ अभी भी टेबल पर रखी थीँ।

"पूजा"
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 554

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Join Open Books Online

Comment by pooja yadav on November 17, 2014 at 9:41pm
सराहना हेतु आभार आदरणीय जितेन्द्र जी।
Comment by pooja yadav on November 17, 2014 at 9:39pm
सराहना हेतु आभार आदरणीय जितेन्द्र जी।
Comment by pooja yadav on November 17, 2014 at 9:38pm
सराहना हेतु आभार आदरणीय जितेन्द्र जी।
Comment by pooja yadav on November 17, 2014 at 9:36pm
सराहना हेतु आभार आदरणीय जितेन्द्र जी।
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 16, 2014 at 10:53am

बहुत सुंदर कहानी साझा की है आपने आदरणीया पूजा जी.बधाई आपको

Comment by pooja yadav on November 15, 2014 at 8:28am
आपकी इस प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद वन्दना जी।
Comment by vandana on November 15, 2014 at 4:55am

अनूठे रिश्ते की सच्चाई को बहुत खूबसूरती से उभारा है आदरणीया पूजा जी  टीवी धारावाहिक बनाने वालों को यहाँ से सीख लेनी चाहिए कि कोरी करवाचौथ मनाने के नाटक में नहीं बल्कि इस सेवा भाव में छिपा है प्यार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 13, 2014 at 8:48pm

पति पत्नी की का एक दूसरे के प्रति गहन प्रेम और चुटीली नौक झोंक का क्या जीवंत द्रश्य उकेरा है कहानी में पढ़कर सभी को लगेगा की ये उनके घर की ही कहानी है बहुत सुन्दर ..हार्दिक बधाई पूजा जी 

Comment by pooja yadav on November 12, 2014 at 9:32pm
Dhanywaad somesh kumar ji. . . Aapki pratikriya hetu saadar aabhaar
Comment by somesh kumar on November 12, 2014 at 9:21pm

किसी पढ़ी हुई कविता की लाइने याद आ गई -उम्र बढ़ने पर हमें कुछ यूँ ईशारा हो गया /हमसफ़र इस ज़िन्दगी का और प्यारा हो गया |

दवाइयों का ये किस्सा लगभग हर घर की कथा है |सुंदर चित्रण एवं अर्थपूर्ण जीवंत  कहानी |बधाई 

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