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जब रात ढल गई तो सितारे भी घर चले,
कुछ रिंद लड़खड़ाके चले थे, मगर चले.
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कुछ सोचने दो मुझ को कमाई का रास्ता.
शेरो सुखन के दम पे भला कैसे घर चले.
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क्या है पड़ी मुझे कि जियूँ मै तेरे बग़ैर,
जब दिल की धड़कने हों थमीं, क्यूँ जिगर चले?
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अब छोड़िये भी फ़िक्र हमारी हुज़ूर आप,
हम ज़िन्दगी लो आप की आसान कर चले.
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आराम कर रहे हैं जहाँ ज़िन्दगी के बाद,
वाँ रात क्या चलेगी भला क्या सहर चले.
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कैसे हुनर मिला है ग़ज़लगोई का न पूछ,
हैं शेर आते ग़ैब से जब जब लहर चले.
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शाइर मुझे न मान मगर मान ऐ रक़ीब,
हर साँस बह्र में है चले 'नूर' गर चले.
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निलेश "नूर"
Comment
शुक्रिया आ. लक्ष्मण जी
कुछ सोचने दो मुझ को कमाई का रास्ता.
शेरो सुखन के दम पे भला कैसे घर चले.
आ० भाई नीलेश जी , बहुत लाजवाब बात कई है इस शेर में , ढेरों बधाइयाँ स्वीकारें .
शुक्रिया आ. गोपाल नारायण जी
नीलेश जी
बहुत उम्दा i कमाल के अशआर i
कुछ सोचने दो मुझ को कमाई का रास्ता.
शेरो सुखन के दम पे भला कैसे घर चले.
कैसे हुनर मिला है ग़ज़लगोई का न पूछ,
हैं शेर आते ग़ैब से जब जब लहर चले.
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शाइर मुझे न मान मगर मान ऐ रक़ीब,
हर साँस बह्र में है चले 'नूर' गर चले.
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