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सबने पूंछा आदमी को क्या हुआ है ?
क्या बताता आदमी को क्या हुआ है ?
खूबसूरत जिन्दगी बख्सी खुदा ने
गम ने मारा आदमी को क्या हुआ है ?
कोख में पाला हैं जिसने आदमी को
उसको लूटा आदमी को क्या हुआ ?
अब नहीं महफूज बहनें भी वतन में
सबने सोचा आदमी को क्या हुआ है ?
जिन्दगी की दौड़ में हो बेखबर यूं
फर्ज भूला आदमी को क्या हुआ है ?
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
जिन्दगी की दौड़ में हो बेखबर यूं
फर्ज भूला आदमी को क्या हुआ है ?
बेहतरीन रचना!
आदरणीय आशुतोष भाई , बहुत बड़ी रदीफ़ ले कर आपने खुद को बाँधा लिया है , इसका निर्वहन सच में कठिन है , कुछ कमियों के साथ जो की आदरनीय सौरभ भाई ने इंगित किया है , अच्छी ग़ज़ल कही है | आपको बधाइयाँ |
सभी ने अपने हिसाब से ग़ज़ल पर अपनी बातें कहीं. लेकिन मेरी दिक्कत काफ़िया निर्वहन को लेकर अधिक है. ’आदमी को क्या हुआ है’ कई शेर में आरोपित सा लगा है, आदरणीय. यह मेरी समझ की सीमा भी है.
मतले के बाद दूसरे शेर में काफ़िया का है छूट गया है.
आदरणीय भुवन जी ..रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल बधाई सादर
कोख में पाला हैं जिसने आदमी को
उसको लूटा आदमी को क्या हुआ ?
क्या बात Dr Ashutosh Mishra साहब मजा आ गया …
आदरणीय विजय जी ..आपके स्नेहिल और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर
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